देश के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बुरा-भला बोलने का क्रम कांग्रेसी नेता टूटने नहीं देते हैं। इस बार राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी के लिए सोशल मीडिया के ट्रोलर वाली बेहद आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया है। राजस्थान के चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को ‘पनौती’ कहा और अवैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देते हुए कहा कि ‘अच्छा भला वहां हमारे लड़के वर्ल्ड कप जीत जाते, लेकिन वहां पन्नौती ने हरवा दिया’। राहुल गांधी का यह बयान प्रधानमंत्री मोदी के प्रति उनकी नफरत को तो दिखाता ही है लेकिन यह भी साबित करता है कि वे एक अपरिपक्व व्यक्ति हैं। ‘पनौती’ जैसी धारणा को स्वीकार्यता देकर उन्होंने देश में अंधविश्वास को बढ़ाने का भी काम किया है। इसके साथ ही उन खिलाड़ियों की प्रतिभा, योग्यता और परिश्रम का भी मजाक बनाया है, जो विश्व कप प्रतियोगिता में लगातार जीत रहे थे। उनके इस बयान से यह भी स्पष्ट होता है कि उन्हें न तो राजनीति की समझ है और न ही क्रिकेट की। स्मरण रखें कि प्रधानमंत्री मोदी जब मैच देखने पहुँचे थे, तब हमारी टीम लगभग हार की कगार पर थी। कोई और प्रधानमंत्री या नेता होता, तो हार को सामने देखकर स्टेडियम में जाता ही नहीं। जैसे राहुल गांधी उन राज्यों एवं संसदीय सीटों पर प्रचार के लिए नहीं जाते, जहाँ कांग्रेस की पराजय स्पष्ट तौर पर दिखायी देती है। प्रधानमंत्री मोदी न केवल मैच देखने पहुँचे बल्कि पराजय के बाद एक अभिभावक की भाँति अपने खिलाड़ियों का हाथ थामने और उनके कंधे पर हाथ रखकर उनको हौसला देने भी पहुँचे। संभव है कि भारतीय टीम के ड्रेसिंग रूम से प्रधानमंत्री मोदी की जो तस्वीरें सामने आईं, उन्हें देखकर कांग्रेस के नेता अपना संयम खो बैठे हों। क्योंकि राहुल गांधी ने जो कुछ कहा, उनके दूसरे नेता भी सोशल मीडिया एवं सार्वजनिक भाषणों में वही कह रहे हैं। यानी एक तरह से प्रधानमंत्री मोदी के प्रति यह नफरत कांग्रेस की नीति का हिस्सा दिखायी देती है। देश की जनता को यह भी समझने में कठिनाई हो रही है कि आखिर राहुल गांधी ने कौन-सी ‘मुहब्बत की दुकान’ खोली है? क्या यहाँ भी कांग्रेस ने घोटाला कर दिया है? ‘मुहब्बत की दुकान’ का बोर्ड लगाकर ‘नफरत, घृणा और द्वेष’ की थोक भाव में बिक्री की जा रही है। राहुल गांधी के बयान से मणिशंकर अय्यर की याद ताजा हो गईं। क्योंकि यह बयान भी मणिशंकर के बयान से कमतर नहीं है। जिस प्रकार मणिशंकर अय्यर के बयान ने कांग्रेस को भट्टा बैठाया था, संभव है कि राजस्थान में राहुल गांधी का यह बयान कांग्रेस को बहुत पीछे धकेल थे। विधानसभा चुनाव में जहाँ कांग्रेस अब तक मुकाबले में दिख रही थी, वहीं अब वह जनता के आक्रोश का शिकार भी हो सकती है। याद रखें कि जब भी कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री मोदी का अपमान करने का प्रयास हुआ है, उसका उत्तर जनता ने अपने मताधिकार से दिया है। 2019 का लोकसभा चुनाव भी इसका उदाहरण है। प्रधानमंत्री को ‘चौकीदार चोर है’ कहकर, राहुल गांधी ने कांग्रेस का भारी नुकसान कराया था। गुजरात में सोनिया गांधी ने ‘मौत का सौदागर’ कहकर, कांग्रेस के पतन की पटकथा लिख दी थी। बहरहाल, यदि राहुल गांधी जय-पराजय का कारण ‘पनौती’ जैसी अवैज्ञानिक एवं अंधविश्वासी सोच को मानते हैं, तब उन्हें यह भी बताना चाहिए कि पिछले 10 वर्षों में राष्ट्रीय राजनीतिक दल कांग्रेस के पतन की ‘पनौती’ कौन है? किसके कारण कांग्रेस अर्श से फर्श पर आ गिरी है। बहरहाल, सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को अपनी जिम्मेदारी का अहसास करना चाहिए। आरोप-प्रत्यारोप और एक-दूसरे की आलोचना में भाषा की मर्यादा को बनाए रखने की आवश्यकता है। यदि नेता ही स्तरहीन भाषा का उपयोग करेंगे, तब उनके आम कार्यकर्ता किस स्तर पर जाकर बयानबाजी करेंगे, इसकी सहज कल्पना की जा सकती है। हमारे देश का संविधान कहता है कि हमें समाज में वैज्ञानक चेतना का प्रसार करना चाहिए। यदि नेता ही अवैज्ञानिक सोच और अंधविश्वास को स्थापित करेंगे, तब वे किस तरह संविधान की रक्षा कर पाएंगे। यह तो एक तरह से संविधान की अवमानना, संविधान के विचार को कमजोर करना और संविधान को दरकिनार करना है।
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