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- प्रभुनाथ शुक्ल
दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में आयोजित ब्रिक्स सम्मेलन से भारत -चीन के संबंधों पर एक सकारात्मक संदेश आया है। दोकलाम विवाद के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग कई सालों बाद हाथ बढ़ाया है। हालांकि दोनों नेताओं के मुलाकात की कोई उम्मीद नहीं थी। क्योंकि ब्रिक्स सम्मेलन का यह अंतिम दिन था। इस मुलाकात को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं कि पहल किसकी ओर से की गई। वैसे दोनों शीर्ष नेताओं की मुलाकात के बाद भारत-चीन ने बीच सीमा विवाद पर आपसी सहमति बनी है। दोनों देशों के बीच संवेदनशील सीमा क्षेत्र से सैन्यबलों की वापसी पर भी बातचीत हुई है। चीन ने भी कहा है कि दोनों देशों के मध्य आपसी सहमति और शांति आवश्यक है। हालांकि भारत, चीन को पहले ही तल्ख़ संदेश दे चुका था कि जब तक सीमा पर शांति नहीं होगी तबतक बातचीत संभव नहीं है।
दक्षिण अफ्रीका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग ने सकारात्मक संदेश देने का काम किया है। एशिया में भारत और चीन सशक्त राष्ट्र हैं। लेकिन दोनों महाशक्तियों के बीच शांति की बात पश्चिमी देशों को नहीं पचती। वे चाहते हैं कि भारत और चीन आपसी विवादों में उलझे रहे जिससे दोनों देशों में हथियार की होड़ बढ़ती रहे। भारत और चीन के लिए यह बेहतर होगा कि सीमा की सुरक्षा के लेकर दोनों एक दूसरे के भरोसे का सम्मान करें। एक दूसरे से आंतरिक भय से बचें और आपस में विश्वास कायम रखें। लेकिन चालबाज चीन अपनी नीति पर कितना अडिग रहेगा यह वक्त बताएगा।
भारत -चीन के विदेश सचिवों ने मोदी और जिनपिंग की मुलाकात के बाद यह कहा है कि लद्दाख क्षेत्र में दोनों देश सीमा पर शांति बहाली के लिए तैयार हो गए। सैन्य अधिकारियों को निर्देश भी दिए गए हैं कि संबंधित इलाकों में सैन्य दबाव कम किया जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग से साफ तौर पर कहा है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर जब तक शांति नहीं होगी तब तक दोनों देशों के बीच तनाव कम नहीं हो पाएगा। निश्चित रूप से ऐसे हालात तभी बनेंगे जब दोनों देश एक दूसरे पर भरोसा करेंगे। इसके पूर्व इंडोनेशिया में दोनों नेताओं की जी-20 के सम्मेलन में सीमा विवाद पर बातचीत हुई थी।
भारत और चीन के मध्य अगर सीमा विवाद सुलझ जाते हैं तो दोनों देश सैन्य सुरक्षा पर अधिक खर्च करने के बजाय अपनी विकास योजनाओं पर पैसा लगाएंगे। दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह होगी कि भारत और चीन की सीमा विवाद का लाभ ताकतवर पश्चिमी देश नहीं उठा पाएंगे। अमेरिका और दूसरे यूरोपीय देश यह नहीं चाहते हैं कि भारत और चीन के मध्य सीमा विवाद खत्म हो जाए। अमेरिका वैश्विक मंच पर भारत के साथ भले खड़ा दिखता है। लेकिन आंतरिक रूप से वह नहीं चाहता कि भारत और चीन आपस में शांति से रहे। क्योंकि चीन अमेरिका को चुनौती देने की तरफ बढ़ रहा है। दूसरी तरफ चीन और रूस में नजदीकियां है। जबकि अमेरिका दोनों का दुश्मन। लेकिन भारत के साथ खड़ा होना सिर्फ उसकी की व्यवसाय नीति है।
सीमा सुरक्षा को लेकर दोनों देश एक दूसरे से आंतरिक रूप से डरते हैं। दोनों देश अपने -अपने सीमा क्षेत्र में सड़क, सैन्य एयरवेस, पुल और अन्य महत्वपूर्ण विकास कर रहे हैं। जिसकी वजह से दोनों देशों के मध्य हमेशा सीमा सुरक्षा को लेकर तनाव बना रहता है। हालांकि भारतीय सुरक्षा बलों की तरफ से सीमा का कभी उल्लंघन नहीं किया जाता। लेकिन चीन अपनी चाल से बाज नहीं आता। क्योंकि चीन भरोसे लायक नहीं है। वह भारत की बढ़ती तागत से भी घबराने लगा है। चंद्रयान- 3 की सफलता ने दुनिया भर में भारत का दबदबा कायम किया है। इस कामयाबी से आंतरिक रूप से चीन भी प्रभावित हुआ है। भारत अब काफी बदल चुका है। दुनिया भारत पर भरोसा करती है। ग्लोबल स्तर भर भारत की तागत बढ़ी है। भारत और चीन के बीच सीमा विवाद कोई नया नहीं है। 1950 से यह विवाद चला आ रहा है। इसी सीमा विवाद को लेकर 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध भी हुए। दोनों देशों के बीच तकरीबन 3500 किलोमीटर की वास्तविक नियंत्रण रेखा। अक्साई चीन जो भारत का है। वह लद्दाख का क्षेत्र है लेकिन इस पर चीन का कब्जा है। चीन की पीपुल्स आर्मी अक्सर वास्तविक नियंत्रण रेखा को पार कर भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करती है। गलवान विवाद इसी का नतीजा था। अब तक कई हजार बार चीन एलएसी पार कर घुसपैठ कर चुका है। लेकिन हमारी सेना ने मुंहतोड़ जबाब दिया है। दोकलाम और पैगोंग में उसे मुँह की खानी पड़ी।
भारत नई दिल्ली में जी-20 समिट की मेजबानी करेगा। उस समिति में चीन भी आएगा। ऐसे हालत में दक्षिण अफ्रीका के ब्रिक्स से दिया गया शांति का संदेश दोनों देशों के लिए अहम है। एशिया में भारत और चीन दो महाशक्तियां हैं। दोनों देशों के मध्य अगर अमन-चैन रहता है तो इसका सकारात्मक परिणाम दोनों देशों के अर्थव्यवस्था और विकास पर पड़ेगा। इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर सकारात्मक संदेश जाएगा। फिलहाल ब्रिक्स से दोनों देशों के मध्य शुरू हुई शांति प्रक्रिया का हमें स्वागत करना चाहिए।