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‘उन्मेष’और ‘उत्कर्ष’ का शुभारंभ : आदिवासी समाज की परंपराएं जीवित रहें, यह हम सबका दायित्व : राष्ट्रपति

साहित्य व कला मनुष्यता को बचाए रखा है : राष्ट्रपति

आदिवासी समुदाय से राष्ट्रपति का आह्वान : जनजातीय समाज अपनी परंपराओं बनाए रखने के साथ आधुनिक विकास में भागीदार बनें

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने ऐशिया के सबसे बड़े साहित्य उत्सव ‘उन्मेष’ और जनजातीय अभिव्यक्तियों के राष्ट्रीय उत्सव ‘उत्कर्ष’ का किया शुभारंभ

राष्ट्रपति बोलीं मेरी बोली संथाली और उडिय़ा है, लेकिन देश की 140 करोड़ – जनता मेरा परिवार, देश की सभी भाषाएं मेरी भाषा

भारत में 700 आदिवासी कम्यूनिटी, उनकी भाषा उससे कहीं दोगुनी

राष्ट्रपति बनने के बाद मेरी सबेस ज्यादा यात्राएं मध्यप्रदेश में हुईं, यह मेरी पांचवीं यात्रा है

राष्ट्रपति ने कहा – साहित्य लोगों को जोड़ता है और जुड़ता भी है

भोपाल। एशिया के सबसे बड़े साहित्य उत्सव ‘उन्मेष’ और जनजातीय अभिव्यक्तियों के राष्ट्रीय उत्सव ‘उत्कर्ष’ का गुरुवार को प्रदेश की राजधानी भोपाल के रवीन्द्र भवन में गरिमामय समारोह में शुभारंभ हो गया। ‘उन्मेष’ और ‘उत्कर्ष’ का शुभारंभ देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने किया है। गुरुवार दोपहर ‘उन्मेष’ और ‘उत्कर्ष’ का शुभारंभ करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहा कि साहित्य कला ने मनुष्य की मनुष्यता को बचाए रखा है। उन्मेष का अर्थ आखों का खुलना और फूलों का खिलना होता है। साहित्य के पुरोधाओं ने उत्तर से दक्षिण तक, पूर्व से पश्चिम तक स्वाधीनता व पुनर्जागरण का काम किया है।

साहित्य में अपना योगदान देने वाले सभी लोगों का उल्लेख असंभव है। उत्कृष्ट – मेरी दृष्टि में भारत का हर स्थान जगन्नाथ पुरी की तरह पवित्र है। मैं और मेरा से ऊपर उठकर जो रचना की जाती है, वह समाज को जोड़ता है। संथाली और उडिय़ा मेरी भाषा है। लेकिन देश की सभी भाषाएं मेरी हैं, 140 करोड़ जनता मेरा परिवार है। संथाली उडिय़ा वाचिक परंपरा में पाया जाता है। पहले संथाली बांग्ला लिपि में प्रकाशित की जाती थी। संथाली को आधार प्रदान किया है।

आदिवासियों की भाषा व परंपरा को संरक्षित करना हमारा दायित्व

राष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्र प्रेम और विश्व बंदुत्व हमारे देश के आदर्श संगम में दिखाई देता है। साहित्य और कला ने संवेदनशीलता और करुणा को बनाए रखा है। हमारा प्रयास अपनी संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित रखने का होना चाहिए। हर 50 किमी में भाषा और बोली बदल जाती है। आदिवासियों की भाषा और बोली को संरक्षित करना हमारा दायित्व है। मध्यप्रदेश में बड़ी संख्या में आदिवासी जाति के लोग यहां निवास करते हैं, इसलिए इस कार्यक्रम को मध्य प्रदेश में करना तर्क संगत भी है।

साहित्य का दूसरी भाषाओं में अनुवाद करने से सुदृढ़ होगा

राष्ट्रपति ने कहा कि संथाली और उडिय़ा भाषा का साहित्य पहले वाचिक परंपराओं में था। उडिय़ा भाषा का साहित्स अब 100 प्रतिशत प्रकाशित हो चुका है। देश में बोली और लिखी जाने वाली सभी भाषाओं का अपना अलग स्थान है। उडिय़ा और संथाली भाषाओं में कई विद्वानों ने महत्वपूर्ण साहित्य लिखे हैं। साहित्य का दूसरी भाषाओं में अनुवाद होने से साहित्य सुदृढ़ होता है।

संथाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए कवि हृदय स्व. अटल बिहारी वाजपेयी को साधुवाद। साहित्य का दूसरी भाषाओं में अनुवाद होने से साहित्य को दूसरी भाषा के लोग भी पढ़ सकेंगे। इससे साहित्य का उपयोग दूसरी भाषा के लोग करें और साहित्य भी अधिक सुदृढ़ हो सकेगा।

परंपराओं के साथ आधुनिक विकास में भागीदार बनें

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी परंपरा में ‘यत्र विश्वम् भत्येकनीडम्Ó (जहां सारा विश्व चिडिय़ों का एक घोंसला बनके रहे) की भावना प्राचीनकाल से है। राष्ट्रप्रेम और विश्व बंधुत्व के आदर्श का संगम हमारे देश में दिखाई देता रहता है। हमारा सामूहिक प्रयास अपनी संस्कृति, लोकाचार, रीति-रिवाज और प्राकृतिक परिवेश को सुरक्षित रखने का होना चाहिए। हमारे जनजाती समुदाय के भाई-बहन और युवा अपनी लोक कलाओं, परंपराओं और भाषा को जीवित रखने के साथ आधुनिक विकास में भागीदार बनें।

भाषाओं का बचाकर रखना लेखकों का कर्तव्य

राष्ट्रपति ने कहा कि भारत में 700 कम्युनिटी के आदिवासी हैं, लेकिन उनकी भाषाएं इससे डबल हैं। भाषाओं को बचाकर रखना लेखकों का कर्तव्य है।

लोक कलाओं के रूप में पूरा भारत एक साथ दिखा

राष्ट्रपति के उद्बोधन के बाद सभी अतिथिगण मंच के सामने आकर बैठ गए और देश के 36 राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों के जनजातीय कलाकारों ने अपनी अलग-अलग लोक कलाओं का प्रदर्शन किया। मंच पर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, बहार, महाराष्ट्र से लेकर दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर के राज्यों के जनजातीय कलाकारों ने अपनी लोक नृत्यों का शानदार प्रस्तुतिकरण दिया।

मंच पर एक के बाद एक प्रदेश के कलाकार आते गए और अपने क्षेत्र के लोक नृत्यों का प्रस्तुतिकरण किया। अंत में सभी कलाकारों ने एक साथ मंच पर उपस्थित हुए, जिसे देखकर पूरा ऑडिटोरियम तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंज उठा। मंच पर लोक कताओं के रूप में पूरा भारत एक साथ दिखा।

मप्र प्राचीनकाल से कला और संस्कृति की संगम स्थली रहा , आत्मा का सुख साहित्य, संगीत और कला देती है

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ‘उन्मेष’ और ‘उत्कर्ष’ कार्यक्रम के शुभारंभ अवसर पर अपने संबोधन में कहा कि मध्यप्रदेश प्राचीनकाल से कला और संस्कृति की संगम स्थली है। रोटी, कपड़ा और मकान संपूर्ण सुख नहीं है। मन, बुद्धि और आत्मा का सुख अगर कोई देता है तो साहित्य, संगीत और कला देती है। यह साहित्यकारों की कर्मभूमि और कलाकारों की प्रिय भूमि है।

खजुराहो, भीम बैठका आदि इसके प्रमाण हैं। मेरा-तेरा की सोच छोटे मन वालों की होती है। हमारी धरती वो धरती है, जहां बच्चा-बच्चा वसुधैव कुटुंबकम का उद्घोष करता है। दुनिया के विकसित देश में जब सभ्यता के सूर्य का उदय भी नहीं हुआ था, तब हमारे यहां वेद की ऋचाएं थीं।

जीवन मूल्य सामने ला रहे

मुख्यमंत्री ने कहा कि कला, संस्कृति, परंपराएं जीवन मूल्य सामने ला रहे हैं। काशी और महाकाल पुराने मूल्यों को याद कराता है। मध्यप्रदेश का सौभाग्य है कि इतने बड़े आयोजन का अवसर मिला। राजा भोज, अहिल्याबाई से लेकर कालिदास, लता मंगेशकर से लेकर किशोर कुमार, हरिशंकर परसाई, अमृतलाल बेगड़, भवानी प्रसाद मिश्र तक यहां साहित्य और कला को संवारने वाली विभूतियां हुई हैं।

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