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तमसा के तट पर वाल्मीकि को सूझी थी कविता

डॉ. आनंद सिंह राणा। तमसा (टौंस) नदी के किनारे महर्षि भारद्वाज और महर्षि वाल्मीकि आए थे। यहीं जब क्रौंच वध हुआ तो महर्षि वाल्मीकि शोकाकुल हो गए और उनके मुख से एक श्लोक उद्भूत हुआ कि “मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः। यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी: काममोहितम। यही श्लोक रामायण की रचना का सूत्र बना और महर्षि वाल्मीकि आदि कवि के रुप में प्रतिष्ठित हुए। श्री राम महर्षि जाबालि को मनाने जिलहरी घाट, जबलपुर स्थित आश्रम में आए थे। गौरी घाट में शक्ति पूजा की तथा गुप्तेश्वर में उपलिंग रामेश्वरम की स्थापना कर वैष्णव और शैवों को समरसता का पाठ पढ़ाया। शहपुरा के पास स्थित रामघाट और बालाघाट में स्थित रामपायली में श्री राम के पद चिन्ह अंकित हैं।


दशरथ ने सुचारू रूप से शासन संचालन के लिए ऋषि-मुनियों का मार्गदर्शक मंडल बनाया था जिसमें महर्षि वशिष्ठ के उपरांत महर्षि जाबालि का स्थान था। भरत को राजगद्दी स्वीकार न थी, अतः उन्होंने महर्षि जाबालि को श्रीराम को मनाने के लिए भेजा। महर्षि ने श्रीराम को अयोध्या लौटने तथा राज्य करने के लिए प्रेरित किया। अयोध्या काण्ड के 108 वें सर्ग के तीसरे, चौथे और सोलहवें श्लोक सहित कुल 18 श्लोक में इसका जिक्र है। महर्षि जाबालि पश्चाताप के लिए श्री राम को बिना बताए तप के लिए अपने आश्रम जबलपुर चले आए तब रघुनंदन भी उनको मनाने के लिए निकल पड़े। भगवान राम, सीता और लक्ष्मण महर्षि सुतीक्ष्ण के आश्रम पहुंचे थे। यह आश्रम वर्तमान में सतना के जैतवारा स्टेशन के पास पूर्व दिशा में 4-5 किमी दूर है। पश्चात्ताप के लिए महर्षि जाबालि जिलहरी घाट स्थित अपने आश्रम में तपस्या में लीन हो गए। श्रीराम महर्षि जाबालि को मनाने चित्रकूट से नर्मदा तट जबलपुर पहुंच गए। उस दौरान महर्षि जाबालि ध्यान में थे अतः श्रीराम ने महर्षि जाबालि का ध्यान भंग नहीं किया।


श्रीराम ने नर्मदा तट पर एक माह का गुप्तवास भी किया था। शिव पुराण स्कंद पुराण, नर्मदा पुराण, मत्स्य पुराण, और वाल्मीकि रामायण में इसके प्रमाण मिलते हैं। गुप्तेश्वर रामेश्वरम उपलिंग, पीठाधीश्वर स्वामी डॉ. मुकुंददास महाराज पुराणों के आधार पर बताते हैं कि वनवास के समय भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण महर्षि जाबालि को ढूंढते हुए नर्मदा के उत्तर तट पहुंचे थे। यहाँ वे महर्षि को प्रसन्न करने और आशीर्वाद लेने के लिए आए थे। उस समय भगवान् श्रीराम ने अपने प्रिय आराध्य शिव की पूजा हेतु गुप्तेश्वर में शिवलिंग की स्थापना की थी। (लेखक जबलपुर में इतिहास विभाग अध्यक्ष हैं। (लेखक जबलपुर के महाविद्यालय में इतिहास के विभागाध्यक्ष हैं।)

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