विशाल रजक तेंदूखेड़ा/दमोह शासन-प्रशासन के विकास के वादे और दावों की हकीकत तेंदूखेड़ा ब्लॉक के कुछ गांव स्वयं बयां करते हुए नजर आ रहे हैं। कहने को तो यहां सड़क, बिजली, पानी और रोजगार आदि के लिए बहुत काम हुए, लेकिन कागजों में। क्योंकि ये विकास कार्य धरातल पर नजर नहीं आ रहे है। कुछ गांव तो लोगों के पलायन कर जाने से वीरान हो गए है। अब वहां सिर्फ टूटे-फूटे और जर्जर घर ही नजर आ रहे हैं।ग्रामीणों का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले मजदूरहर एवं खेतीहर वर्ग को योजनाओं का लाभ बहुत कम मिला। खेती किसानी में भी नुकसान हुआ, बिजली, पानी की समस्या और गांव में रोजगार नहीं मिलने के कारण रोजी रोटी के लिए अपना गांव, घर द्वार, खेत खलिहान छोड़कर शहरों की पलायन करने मजबूर, अधिकतर तो बड़े शहरों की ओर जा चुके हैं। ऐसा ही एक गांव तेंदूखेड़ा ब्लॉक के पहाड़ी क्षेत्र की ग्राम पंचायत सहजपुर के आश्रित पाड़ाझिर है। कुछ साल पहले तक ये गांव आबाद था । करीब . 400 की आबादी निवासरत थी।
वर्तमान समय में महज 8 से 10 परिवार ही बचे हैं और शेष सभी गांव से पलायन कर चुके हैं। पलायन भी ऐसा कि गांव के सभी घरों में ताला ही पड़ा है। कुछ घर गिर चुके हैं और कुछ गिरने की कगार पर है। गांव में जो लोग मिले उन्होंने बताया कि एक समय ये गांव आबाद था, लेकिन गर्मियों में बिजली, पानी का संकट और रोजगार का अभाव युवाओं के लिए अखरने लगा। धीरे- धीरे कर युवा वर्ग काम की तलाश में दूसरे शहरों की ओर जाने लगे और वहीं बस गए। बाद में वह अपने परिवार के अन्य लोगों को भी लेकर चले गए। यहां जल संकट सबसे बड़ी वजह बना। बरसात में पहले लोग आ जाते थे और ठंडी तक रूकते थे, लेकिन गर्मी लगते ही घरों के दरवाजे में ताला या पत्थर की खकरी लगाकर चले जाते थे, लेकिन इसके बाद आना ही बंद कर दिया है। अब गिने- चुने परिवार बचे हैं।
बुजुर्ग घरों में और युवा वर्ग बाहर
ग्राम पाइाझिर में जहां तकरीबन सभी लोग पलायन कर चुके हैं, तो वहीं दूसरे ग्रामीण इलाकों में रोजगार नहीं मिलने से युवा वर्ग पलायन कर चुका है। वहां सिर्फ घरों में बूढ़े-बुजुर्ग ही नजर आ रहे हैं। गौर करने वाली बात ये है कि गांव में ही रोजगार मुहैया कराने के उद्देश्य से लागू की गई मनरेगा के तहत काम तो बहुत हुए पर रोजगार किसी को नसीब नहीं हुआ। गांव के बुजुर्ग जहां घर की देखभाल कर रहे हैं तो वहीं युवा वर्ग दूसरे नगरों में जाकर रोजी-रोटी के लिए पैसा कमाने मजबूर है। अब ये युवा दीपावली, होली या अन्य त्यौहार में ही घर आते हैं।
पंडा बाबा की झिरिया बनी प्राण दायिनी
ग्राम पंचायत सहजपुर से 3 से 4 किलोमीटर दूर स्थित सिद्ध बाबा पंडों की झिरिया इस क्षेत्र के लोगों को 12 माह पानी देती है। यहां से 24 घंटे आसपास के लोग साईकिल पर बर्तन कुप्पा लादकर पानी ढोते नजर आते हैं। इसके अलावा आसपास के 10 किलोमीटर के ग्राम के लोग पानी भरते हैं।
लगातार मांग पर पानी तो पहुंचा पर बिजली नहीं
दैनिक स्वदेश ने सोमवार को पाड़ाझिर गांव पहुंचा। जो मिले वह खुश भी नजर आए और मायूश भी। क्योंकि इस गांव में सतधरू योजना के तहत पानी तो पहुंचा, पर बिजली नहीं। आज भी पूरा गांव अंधेरे में रहने को मजबूर है। गांव जगेश तुन्हई ने बताया कि एक माह पहले से ही नल जल योजना के तहत पानी आना शुरू हुआ है। लेकिन बिजली का इंतजार है। रात अंधेरे में काटने मजबूर हैं। बट्टों ने बताया कि 8 से 10 परिवार ही निवास कर रहे, लेकिन बिजली की समस्या के कारण शाम 6 बजे के बाद घरों में कैद हो जाते हैं।- क्योंकि गांव जंगल से घिरा है और वीरान भी है। जंगली जानवरों का भी आना-जाना होता है। जिसके कारण 6 बजे घरों में केद हो जाते हैं। भारत नुनुया ने बताया पूरे गांव में कुल 12 लोग ही रहते हैं, बाकी सभी जबलपुर सहित अन्य शहरों में रहकर काम कर रहे हैं।
सुविधाएं मिले तो फिर बस जाएगा गांव
बुजुर्गों ने कहा तीज-त्योहार में गांव में रौनकता होती है। नवरात्र की अष्टमी पूजा पर पूरा गांव एक साथ जवारों का विसर्जन करता है। इस अवसर बाहर रहने वाले बच्चे भी आ जाते हैं। इससे गांव भरा- पूरा दिखने लगता है। लेकिन जवारे विसर्जन के बाद फिर चले जाते हैं और फिर दीपावली, होली में ही चहल पहल दिखाई देती है। मुन्ना लाल कहते हैं कि यदि गांव में बिजली, पानी, सड़क, रोजगार सहित योजनाओं का लाभ मिलने लगे तो ये गांव फिर से आबाद हो जाएगा।
नहीं मिलता काम
बता दें कि तेंदूखेड़ा ब्लॉक में 62 ग्राम पंचायत है और 100 से ज्यादा गांव है। इन पंचायतों में मनरेगा योजना के तहत कार्य तो स्वीकृत होते हैं, लेकिन शासन- प्रशासन में बैठे जिम्मेदार ग्रामीण युवाओं को काम न देकर मशीनों से करा लेते हैं। इस वजह से युवा रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं।