देश की सर्वोच्च अदालत ने सोमवार 16 अक्टूबर को गर्भपात के अनुरोध वाली याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की जांच रिपोर्ट के आधार पर ये फैसला दिया। अदालत ने अपनी बीमारी के कारण 26 सप्ताह से अधिक के स्वस्थ भ्रूण को समाप्त करने की महिला की याचिका खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि भ्रूण स्वस्थ था और एम्स मेडिकल बोर्ड को इसमें कोई असामान्यता नहीं मिली।
इस मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘गर्भ 26 सप्ताह और 5 दिन का है। गर्भपात की अनुमति देना गर्भपात अधिनियम की धारा 3 और 5 का उल्लंघन होगा क्योंकि इससे मां को तत्काल कोई खतरा नहीं है और भ्रूण में भी विकृतियां नहीं हैं।’
न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने अजन्मे बच्चे के अधिकारों का हवाला देते हुए कहा कि बच्चे को इस धरती पर जन्म लेने का पूरा अधिकार है। उन्होंने कहा, “भ्रूण की जांच रिपोर्ट में कोई भी असामान्यता देखने को नहीं मिली और एम्स तय समय पर ही महिला का प्रसव कराएगा। हम किसी की धड़कन नहीं रोक सकते हैं। उन्होंने कहा, “अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल पूर्ण न्याय के लिए किया जा सकता है, लेकिन इसका इस्तेमाल हर मामले में नहीं हो सकता।”