ढाई लाख से अधिक संपत्तियों के अभिलेख में सुधार का इंतजार
भोपाल। संपत्तियों को ज्योग्राफिक इंफोरमेशन सिस्टम यानि जीआइएस के तहत मॉनीटरिंग सिस्टम में शामिल कर पूरा टैक्स वसूलने की योजना भोपाल में फेल हो गई। सात साल में निगम प्रशासन ने इसपर करीब नौ करोड़ रुपए खर्च कर डाले। स्थिति ये कि 2016 से अब तक महज एक लाख संपत्तियों की ही सही जीआइएस टैगिंग हो पाई, जबकि ढाई लाख से अधिक संपत्तियों के मालिक गड़बड़ी को दुरूस्त कराने जोन- वार्ड कार्यालयों के साथ निगम मुख्यालय में उच्चाधिकारियों के यहां चक्कर लगा रहे हैं। जीआइएस टैगिंग से निगम ने करीब 100 करोड़ रुपए की वसूली बढऩे की उम्मीद थी, लेकिन ये 20 करोड़ रुपए भी नहीं बढ़ पाई। आयुक्त शहरी आवास एवं विकास भरत यादव का कहना हैकि कई शहरों में ये प्रोजेक्ट है। भोपाल समेत सबकी समीक्षा कर स्थिति पर रिपोर्ट बनाएंगे। उसके आधार पर कार्रवाइ्र शुरू की जाएगी।
जीआइएस बिंदूवार
- 2016 में शुरू किया सर्वे
- 4.75 करोड़ रुपए शुरुआत बजट तय किया
- 04 लाख घरों की जीआइएस टैगिंग करना थी
- 01 लाख की ही सही हो पाई
- 2.50 लाख से अधिक में गड़बड़ी है
- 50 हजार से अधिक संपत्तियों की अब तक नहीं हो पाई
- 09 करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए अब तक
- 100 करोड़ रुपए वसूली बढऩे की उम्मद थी
- 20 करोड़ रुपए ही बढ़ पाए
ठेका एजेंसी ने काम नहीं किया, निगम कर्मचारियों ने मॉनीटरिंग से चुके
- हर घर को जीआइएस से टैग करने महाराष्ट्र की कंपनी को ठेका दिया था। कंपनी को सॉफ्टवेयर से ज्योग्राफिकली टेगिंग के साथ हर घर तक पहुंचकर वास्तविकता भी देखना थी। कंपनी ने राशि ली, लेकिन फिजिकल वेरिफिकेशन नहीं किया। बाद में 300 छात्रों को काम पर रखा गया। 9200 रुपए की सैलरी दी, लेकिन ये भी काम छोडक़र चले गए। निगम के जोन व वार्ड कर्मचारियों को ऑनलाइन जीआइएस के आधार पर फिजिकल वेरिफिकेशन का कहा, लेकिन इन्होंने भी ऑफिस में बैठे हुए ही प्रक्रिया पूरी कर दी।
राज्य सरकार का प्रोजेक्ट, भोपाल मे फेल
- संपत्तियों की जीआइएस टैगिंग राज्य सरकार का महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है। इ-नगर पालिक सॉफ्टवेयर के साथ ही इसे भी शुरू किया था। भोपाल में पहले किया, लेकिन यहां इसपर ज्यादा गंभीरता नहीं जताई। अब भी लोग मैन्युअली ही संपत्ति का साइज बताते हैं और उसके आधार पर टैक्स बनता है।