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रामलला को हर दिन सरयू के जल से करवाया जाएगा स्नान, मूर्ति पर दूध-जल का नहीं पड़ेगा कोई दुष्प्रभाव

अयोध्या। प्राण प्रतिष्ठा के बाद हर दिन सरयू के जल से रामलला को स्नान करवाया जाएगा। स्नान के जल को भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाएगा। रामलला 5 साल के विष्णु के अवतार हैं। प्रतिमा पैर की उंगली से ललाट तक 51 इंच ऊंची है। मूर्ति का वजन डेढ़ टन यानी 1500 किलो है। श्रीराम जन्मभूमि क्षेत्र के महासचिव चंपत राय ने बताया कि भगवान को हर दिन सरयू के जल से स्नान कराने की परंपरा है। उनके स्नान यानी अभिषेक का जल, प्रसाद के रूप में भक्तों को दर्शन के दौरान दिया जाता है। हर साल चैत्र राम नवमी के दिन दोपहर 12 बजे सूर्य की किरणें भगवान राम की श्यामल मूर्ति के ललाट पर पड़ेंगी। चंपत राय ने बताया कि भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की सलाह पर मूर्ति की लंबाई और उसे स्थापित करने की ऊंचाई तय की गई है।

ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय के मुताबिक, 3 शिल्पकारों ने प्रभु श्रीराम की 3 मूर्तियां बनाई हैं। इसमें से प्राण प्रतिष्ठा के लिए श्यामल मूर्ति का चयन किया गया है। यह मूर्ति बेहद खास पत्थर से बनी है। इस मूर्ति पर जल और दूध का आचमन करने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

161 फीट ऊंचे राम मंदिर पर लहराएगा 44 फीट ऊंचा ध्वज

अहमदाबाद से 44 फीट ऊंचा ध्वज अयोध्या लाया गया है। यह 161 फीट ऊंचे राम मंदिर पर लहराएगा। इस हिसाब से मंदिर और ध्वज की कुल ऊंचाई 205 फीट होगी। अंबिका इंजीनियर्स कंपनी ने इस ध्वज को 7 महीने में तैयार किया है। 5 जनवरी को गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने अहमदाबाद से ध्वज को रवाना किया था। ट्रक से 5 लोग ध्वज लेकर 3 दिन में राम जन्मभूमि पहुंच गए।यहां सोमवार सुबह श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्यों को दंड और विजय पताका सौंपी गई। प्राण-प्रतिष्ठा यानी 22 जनवरी को दंड में पीएम नरेंद्र मोदी विजय पताका लगाएंगे।

प्रतिष्ठा पूजा विधि को 16 से

चंपत राय ने बताया- राम लला की प्रतिष्ठा पूजा विधि को 16 जनवरी से प्रारंभ कर दिया जाएगा। इसके अलावा 18 जनवरी को गर्भगृह में राम लला को आसन पर स्थापित कर दिया जाएगा। राम मंदिर परिसर में ही महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, निषाद राज, माता शबरी और देवी अहिल्या का भी मंदिर बनाया जाएगा। इसके अलावा जटायु की प्रतिमा को पहले से ही स्थापित कर दिया गया है।

उत्तर भारत में ऐसा कोई मंदिर नहीं

उन्होंने बताया, “श्रीराम का मंदिर अद्भुत होगा, क्योंकि दक्षिण भारत में ऐसे मंदिर हैं, मगर उत्तर भारत में बीते 300 साल में ऐसा कोई मंदिर निर्मित नहीं हुआ है। निर्माण करने वाले इंजीनियर भी यही मानते हैं। पत्थर की आयु एक हजार साल होती है। जमीन के संपर्क में होने के बाद भी पत्थर नमी नहीं सोख पाएगा, क्योंकि उसके नीचे ग्रेनाइट लगाया गया है।इस प्रकार की रचना की गई है कि जैसे-जैसे मंदिर की आयु बढ़ेगी, जमीन के नीचे एक बहुत ताकतवर चट्टान तैयार हो जाएगी। जमीन के ऊपर किसी भी प्रकार के कंक्रीट का इस्तेमाल नहीं किया गया है, क्योंकि कंक्रीट की आयु 150 साल से ज्यादा नहीं होती।”

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