ऐसी मान्यता है कि महिषासुर दानव का वध जिस देवी ने किया था उस देवी का प्रथम पूजन महर्षि कात्यायन के द्वारा किया था। इसलिए इन्हें माता कात्यानी नाम दिया गया। माता की आराधना करने से अदभुत शक्ति का संचार होता है। माता का स्वरूप अत्यंत चमकीला है। इनके एक हाथ में तलवार दिखाया जाता है जो ज्ञान का प्रतीक है।
कर्मों का सही ज्ञान ना होने के कारण आज मनुष्य गलत कर्मों में फंस जाता है लेकिन ज्ञान रूपी तलवार को अपने जीवन में थामे रहने से हम हर विपदा का सामना आसानी से कर सकते हैं और सहज ही हमारी विजय हो जायेगी। मनुष्य के कर्म ही उसके सच्चे साथी हैं। संकल्प, बोल और कर्म में संपूर्ण पवित्रता होना ही पुण्य कर्म हैं जो मनुष्य की बुरे समय में रक्षा करते हैं। एक ही हादसे में पूरा परिवार अपनी जान गवां देता है वहीं कोई एक सदस्य जिंदा रह जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि उस व्यक्ति के पूर्व जन्मों के संचित पुण्य कर्म बुरे समय में उसकी ढाल बनकर रक्षा करते हैं।
माता कात्यानी सभी को प्रसन्नता और सदा हर्षित रहने का वरदान देती है। माता के एक हाथ में कमल का पुष्प सुशोभित होता है जो पवित्रता का प्रतीक है। आज कोई व्यक्ति उदास है तो कोई दुखी हम भी माता कात्यानी के इन शक्तियों को अपने जीवन में धारण कर दूसरों को सुख और शांति का वरदान दे सकते हैं। ईश्वर की निरंतर याद में टिकने से हमारे अंदर प्रेम, पवित्रता, सुख और शांति जागृत हो जाती है और चारों तरफ प्रवाहित होती है। जब एक एक मनुष्य अपने अंदर एक एक शक्ति धारण करेगा तो दूसरे बदलेंगे और धीरे धीरे ये संपूर्ण विश्व परिवर्तन हो जायेगा क्योंकि “स्व परिवर्तन ही विश्व परिवर्तन का आधार है।