कांतिलाल मांडोत। कुदरत की इस मार से कोई बच नही सकता है।एक मिनट पहले भविष्य के सपने बुनने वाला इंसान दूसरे ही क्षण काल के गर्त में डूब जाता है।जीवन क्षणभंगुर है।इस बात की जानकारी सभी को है।अफगानिस्तान की तबाही की कहानी तख्तापलट होने के बाद लिखी जा चुकी थी।सत्ता को हथियाने के बाद अफगानिस्तान में सुकून गायब है। रोटी के मोहताज नागरिकों की हालत खराब होती जा रही है। आदमी तो क्या आदमी के हर तरह की आजादी पर तालिबानी सरकार का नियंत्रण है।
तालिबानी हुकूमत के बाद खासकर महिलाओ के साथ भेदभाव ज्यादा हो रहा है।उनकी शिक्षा पर पाबंदी लगाई जा रही है। अफगानिस्तान के हालात खराब होने के बाद अफगानिस्तान में भूकम्प में करीब दो हजार से ज्यादा लोग मौत को गले लगा चुके है। हजारो लोग मकानों के नीचे दबे हुए है।यह कुदरत की मार न सही जाती है और न ही इसमे से बाहर निकलने का कोई रास्ता सूझता है। हेरात में छह गांव बर्बाद हो गए है।मानवतावादी अभिगम अपना कर हर एक देश को मदद पहुंचाने और अस्पताल में इलाज में मदद करने की जरूरत आ पड़ी है।
सत्तारूढ़सरकार ने युद्ध स्तर पर कार्य करने की मुहिम तेज कर दी गई। मरने वालों की संख्या बढ़ेगी।क्योकि मलबे में दबे लोग की स्वांस कुछ समय तक चल सकती है।क्योंकि ऑक्सीजन के अभाव और चोट के कारण व्यक्ति की मौत हो सकती है।लोगो को राहत शिविर में रखा गया है।प्रशासन की नजर है। पिछले चालीस साल में भीषण भूकंप की चपेट में आने के बाद अनेक गांव मलबे में तब्दील हो गए है। राहत दी जा रही है बचाव अभियान चलाया जा रहा है। लेकिन इसके बाद भी जिनकी जान चली गई है। उस परिवार के लिए दुःखद और पीड़ादायक है। पड़ोसी देशों की इस दुःख की घड़ी में राहत और मदद की दरकार है। सभी अफगानिस्तान की मदद के लिए आगे आये,जिससे दुःख भुला जा सके।