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सीएम धामी को सौंपा गया समान नागरिक सहिंता का मसौदा, जानिए इसके लागू होने के बाद प्रदेश में होंगे क्या बड़े बदलाव

उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का मसौदा तैयार करने के लिए गठित पांच सदस्यीय पैनल ने शुक्रवार को सीएम कैंप कार्यालय में एक कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अपनी अंतिम मसौदा रिपोर्ट सौंप दी है। जिसके बाद अब राज्य सरकार जल्द ही यूसीसी लागू करने की तैयारी में है। हालांकि, गोवा में यह कानून शुरुआत से ही लागू है।

इस दौरान सीएम धामी ने खुशी व्यक्त करते हुए कहा, 12 फरवरी, 2022 को हमने उत्तराखंड के लोगों से यूसीसी लागू करने का वादा किया था। अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करना हमारी प्रतिबद्धता को पूरा करने की दिशा में एक कदम है। “समिति ने आज चार खंडों में यूसीसी के मसौदे के साथ 749 पेज की रिपोर्ट सौंपी। इसे चर्चा के लिए 6 फरवरी को राज्य विधानसभा में पेश किया जाएगा। इसकी जांच की जाएगी और फिर इसे लागू किया जाएगा”

इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी देश में यूसीसी लागू करने की बात कर चुके हैं। इसके अलावा कई भाजपा शासित राज्य भी इसे लागू करने की तैयारी में है। ऐसे में जब पूरे देश में इसको लागू करने की बात कही जा रही है तो हमारा दायित्व है आपको सामान नागरिक सहिंता के बारे में पूरी जानकारी दें। आइये समझते है इस कानून के लागू होने के बाद क्या बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे।

उत्तराखंड में प्रस्तावित समान नागरिक संहिता मसौदे के प्रमुख प्रावधान

  1. समान नागरिक संहिता राज्य में सभी नागरिकों के लिए एक समान विवाह, तलाक, भूमि, संपत्ति और विरासत कानूनों के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करेगी, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। इसके साथ ही यूसीसी विवाह, तलाक, भरण-पोषण, विरासत, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे क्षेत्रों को भी कवर करेगा।
  2. जानकारी के मुताबिक, यूसीसी के 300 पेज के ड्राफ्ट में लगभग 400 धाराएं होंगी और ड्राफ्ट में अनुसूचित जनजाति, ट्रांसजेंडर अधिकारों, धार्मिक मामलों और परंपराओं के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी।
  3. रिपोर्टों के अनुसार, मसौदे का मुख्य पहलू हलाला, इद्दत और तीन तलाक – जो कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में विवाह और तलाक को नियंत्रित करने वाली प्रथाएं हैं – को दंडनीय अपराध बनाया जाएगा। यूसीसी ड्राफ्ट में बहुविवाह पर भी प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की गई है।
  4. इसके साथ ही समिति ने लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी बनाने का प्रयास किया है, जो अनिवार्य पंजीकरण के अधीन है। लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों को अपनी पहचान सार्वजनिक करनी होगी और सरकारी पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराना होगा। पंजीकरण के लिए आधार कार्ड सहित कुछ महत्वपूर्ण पहचान पत्र अनिवार्य होंगे जबकि 18 से 21 वर्ष के बीच के जोड़ों को माता-पिता से सहमति पत्र देना होगा।
  5. समान नागरिक सहिंता में अलग-अलग धर्मों में शादी की अलग-अलग परंपराओं के बावजूद तलाक और भरण-पोषण के लिए एक समान कानून होगा। इसी तरह गोद लेने और उत्तराधिकारी तय करने के लिए भी एक समान कानून होगा।
  6. इसके साथ ही समिति ने लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी बनाने का प्रयास किया है, जो अनिवार्य पंजीकरण के अधीन है। लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों को अपनी पहचान सार्वजनिक करनी होगी और सरकारी पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराना होगा। पंजीकरण के लिए आधार कार्ड सहित कुछ महत्वपूर्ण पहचान पत्र अनिवार्य होंगे जबकि 18 से 21 वर्ष के बीच के जोड़ों को माता-पिता से सहमति पत्र देना होगा।
  7. समान नागरिक सहिंता में अलग-अलग धर्मों में शादी की अलग-अलग परंपराओं के बावजूद तलाक और भरण-पोषण के लिए एक समान कानून होगा। इसी तरह गोद लेने और उत्तराधिकारी तय करने के लिए भी एक समान कानून होगा।
  8. मुसलमानों समेत सभी धर्मों की महिलाओं को अपने पिता की संपत्ति में समान अधिकार होगा। हालांकि, मसौदे में बच्चों की संख्या निर्धारित करने, विवाह की उम्र बढ़ाने का कोई प्रावधान नहीं है। प्रस्तावित कानून के तहत सभी धर्मों के लोगों को गोद लेने की इजाजत दी जा सकती है, लेकिन उन्हें गोद लेने के लिए अपने ही धर्म का बच्चा चुनना होगा।
  9. मसौदे में महिलाओं की न्यूनतम कानूनी विवाह आयु से संबंधित प्रावधान भी शामिल हैं, साथ ही कानूनी आयु 18 वर्ष बरकरार रखने के साथ-साथ इसे बढ़ाकर 21 वर्ष करने पर भी सुझाव दिए गए हैं।

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