रविवार 21 अक्टूबर 2023 यानी कल शारदीय नवरात्रि का 8वां दिन है इससे महाअष्टमी और दुर्गाष्टमी भी कहते हैं।। नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाते है। माँ महागौरी का ध्यान, स्मरण, पूजन-आराधना भक्तों के लिए सर्वविध कल्याणकारी है। हमें सदैव इनका ध्यान करना चाहिए। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। इनकी उपासना से अर्तजनों के असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। महागौरी के पूजन से सभी नौ देवियां प्रसन्न होती है। अष्टमी के दिन कई घरों में कन्या पूजन किया जाता है। जाने क्या है मां महागौरी की पूजा का शुभ मुहूर्त और कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त, पूजन की विधि और मां को प्रसन्न करने के लिए कौन सा प्रसाद और किन मंत्रो का करे जाप।
मां महागौरी पूजन का सही मुहूर्त
अश्विन शुक्ल अष्टमी तिथि आरंभ- 21 अक्टूबर 2023 को रात 9 बजकर 53 मिनट से
अश्विन शुक्ल अष्टमी तिथि समाप्त- 22 अक्टूबर 2023 को रात 7 बजकर 58 तक
नवरात्रि 2023 महा अष्टमी तिथि- 22 अक्टूबर 2023
महाअष्टमी कन्या पूजन शुभ मुहूर्त
अष्टमी के दिन 22 अक्टूबर को सुबह 7 बजकर 51 मिनट से 9 बजकर 16 मिनट तक का समय कन्या पूजन के लिए उत्तम रहेगा। इसके बाद 9 बजकर 16 मिनट से लेकर 10 बजकर 41 मिनट तक। साथ ही अमृतकाल में आप 10 बजकर 41 मिनट से 12 बजकर 1 मिनट तक आप अष्टमी तिथि के दिन कन्या पूजन करना शुभ रहेगा।
महाअष्ठमी को पूजा की सही विधि
मासिक दुर्गाष्टमी के दिन साधक को सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करने के बाद लाल वस्त्र धारण करने चाहिए। पूरे घर को गंगाजल छिड़ककर पवित्र करें। इसके बाद चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर मां दुर्गा की प्रतिमा या फोटो स्थापित करें। इसके बाद देवी मां को जल अर्पित करें और उन्हें लाल चुनरी और सोलह श्रृंगार, लाल रंग का पुष्प,पुष्पमाला और अक्षत आदि अर्पित करें।
देवी दुर्गा की मूर्ति को प्रसाद चढ़ाएं और दुर्गा मूर्ति को चरणामृत भी अर्पित करें। इसके बाद घी का दीपक और अगरबत्ती जलाकर मां दुर्गा चालीसा का पाठ करके विधि-विधान के साथ मां की आरती करें। बाद में प्रसाद या नैवेद्य दूसरों को देकर अपना व्रत समाप्त करें और शाम के समय गेहूं और गुड़ से बनी वस्तुओं से अपना व्रत खोलें।
महाअष्ठमी कन्या पूजन की सही विधि
विधि शास्त्रों के मुताबिक, नवरात्रि की अष्टमी या नवमी तिथि पर कन्याओं को उनके घर जाकर निमंत्रण दें. गृह प्रवेश पर कन्याओं का पूरे परिवार के साथ पुष्पवर्षा से स्वागत करें और नव दुर्गा के सभी नामों के जयकारे लगाएं। अब इन कन्याओं को आरामदायक और स्वच्छ जगह पर बिठाएं। अब इन कन्याओं को आरामदायक और स्वच्छ जगह पर बिठाएं. सभी के पैरों को दूध से भरे थाल में रखकर अपने हाथों से धोएं। कन्याओं के माथे पर अक्षत, फूल या कुमकुम लगाएं फिर मां भगवती का ध्यान करके इन देवी रूपी कन्याओं को इच्छा अनुसार भोजन कराएं। भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा, उपहार दें और उनके पैर छूकर आशीष लें।
इस प्रकार बनाए मां महागौरी का भोग
अष्टमी तिथि के दिन मां महागौरी को नारियल या नारियल से बनी चीजों का भोग लगाया जाता है। भोग लगाने के बाद नारियल को ब्राह्मण को दे दें और प्रसाद स्वरूप भक्तों में बांट दें। आप प्रसाद के रूप में मां महागौरी को नारियल की बर्फी भी भोग लगा सकते है जाने इसी आसान विधि।
नारियल की बर्फी
सामग्री
1 कप नारियल, कद्दूकस, 1 टेबल स्पून घी, 3/4 कप खोया, 1/2 कप चीनी, 1/2 कप पानीघी लगी हुई एक प्लेट
विधि
एक पैन में घी और खोया डालें और खोए को नॉर्मल होने तक भूनें। इसे आंच से उतार लें और ठंडा होने दें। इसमें नारियल मिलाएं और एक तरफ रख दें। एक दूसरे पैन को गर्म करें इसमें पानी के साथ चीनी डालकर धीमी आंच पर रखें, कुछ देर इसे चलाए जब तक चीनी पानी में न घुल जाए। इसमें उबाल आने दें और चीनी पूरी तरह घुल जाए। इसे तेज आंच पर पकाएं ताकि यह गाढ़ा हो जाए, एक कप पानी में एक बूंद डालकर देखें, यह पानी पर एक बार में सेट हो जाए पर से सख्त न हो। इसे तुरंत ही खोया के मिश्रण में डालकर मिला लें, इसे लगातार मिक्स करें। आप जैसे ही मिक्स करेंगे यह मिश्रण सेट होने लगेगा इसलिए जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी करें। अब इस मिश्रण को घी लगी प्लेट में पलटें, थोड़ी मोटी लेयर रहने दें और इसे ठंडा होकर सेट होने दें। एक तेज धार वाले चाकू से मनचाहे आकार में बर्फी के पीस निकालें और माता रानी को भोग लगा दे।
महाअष्ठमी के दिन करे इन मंत्रो का करे जप
वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चतुर्भुजा महागौरी यशस्विनीम्॥
पूर्णन्दु निभाम् गौरी सोमचक्रस्थिताम् अष्टमम् महागौरी त्रिनेत्राम् ।
वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥ पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किड्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम् ॥ प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् त्रैलोक्य मोहनम् । कमनीयां लावण्यां मृणालां चन्दन गन्धलिप्ताम् ॥