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जानिए बौद्ध धर्म का संक्षिप्त इतिहास, क्या इससे जुड़ा इतिहास और महत्वपूर्ण बातें

बौद्ध धर्म एक प्राचीन भारतीय धर्म हैं। बौद्ध धर्म का इतिहास गौतम बुद्ध से आरम्भ होता है। 2600 वर्ष पहले इसकी स्थापना भगवान बुद्ध ने की थी। उनका का जन्म 563 ईसा पूर्व कपिलवस्तु के लुंबिनी नामक स्थान (वर्तमान नेपाल) में हुआ था। उनके पिता का नाम शुद्धोधन था जो शाक्य गण के मुखिया थे। उनकी माता का नाम मायादेवी था। जिनकी मृत्यु गौतम बुद्ध के जन्म के सातवें दिन बाद हो गई जिसके बाद उनका पालन पोषण उनकी मौसी प्रजापति गौतमी ने की । बुद्ध के बजपन का नाम सिद्धार्थ था। निरंजना नदी के तट पर स्थित उरूवेला (बोधगया) में पीपल वृक्ष के नीचे वैशाख पूर्णिमा के दिन उन्हे ज्ञान की प्राप्ति हुई। जिसके बाद उन्होंने अपना प्रथम उपदेश सारनाथ में दिया ।इस धर्म के लोग अदिकतर चीन, कोरिया, जापान. श्रीलंका, भारत आदि देशों में रहते हैं।बौद्ध धर्म की उत्पति ईसाइ और इस्लाम धर्म से पहले हुई थी।

बुद्ध को एशिया का ज्योति पुंज कहा जाता है। सिद्धार्थ का 16 साल की उम्र में दंडपाणि शाक्य की कन्या यशोधरा के साथ विवाह हुआ। इनके बेटे का नाम राहुल था। सिद्धार्थ जब कपिलवस्तु की सैर पर निकले उन्होंने चार दृश्य देखें।
1 एक बूढ़ा व्यक्ति
2 एक बीमार व्यक्ति
3 एक शव
4 एक सन्यासी सांसारिक समस्याओओं से दुखी होकर सत्य की खोज लिए बुद्ध ने 29 साल की उम्र गृह त्याग दिया। इस घटना को माहाभिनिष्क्रमण कहा जाता हैं।


बौद्ध धर्म की कुछ विशेषताएं-


महात्मा बुद्ध ने अपने उपदेश पाली भाषा में दिए थे। बौद्ध धर्म दुनिया का पहला विश्व धर्म होने के साथ-साथ पहला प्रचारक धर्म भी था जो
अपने मूल स्थान से निकलकर पूरी दुनिया में दूर-दूर तक फैला था। शक्षाओं को ”धम्म के रूप में भी जाना जाता हैं, जिसका अर्थ है सिद्धांत ,सत्य ,या कानून बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म की मान्यता है। बौद्ध धर्म अनीश्वरवादी है और इसमें आत्मा की परिकल्पना भी नहीं हैं।
धार्मिक जुलूस सबसे पहले बौद्ध धर्म में ही निकाला गया था।

बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांत त्रिपिटक में संग्रहीत हैं। ये क्रमश: सुत्त पिटक,विनय् पिटक और अभिधम्म पिटक के नाम से जाने जाते हैं।
बौद्धों का सबसे पवित्र एवं महत्वपूर्ण वैशाख की पूर्णिमा है,जिसे बुद्ध पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। प्रविष्ठ बौद्ध धर्म के त्रिरत्न हैं-


1बुद्ध
2धम्म
3संघ
बौद्ध धर्म का मूलाधार चार आर्य सत्य हैं। ये चार आर्य सत्य हैं -दु:ख, दु:ख समुदाय , दु:ख निरोध और दु:ख निरोध-गामिनी -प्रतिपदा(दु:खक निवारक मार्ग) यानी अष्टांगिक मार्ग।


अष्टांग मार्ग


बौद्ध धर्म में सांसारिक दुखों से मुक्ति के लिए अष्टांगिक मार्ग अपनाने की बात कही गई है।
1सम्यक दृष्टि
2सम्यक संकल्प
3सम्यक वाणी
4सम्यक कर्मांत
5सम्यक आजीविका
6सम्यक व्यायाम
7सम्यक स्मृति
8सम्यक समाधि
अष्टांग मार्ग का अनुसरण करते समय जिन नियमों का पालन किया जाता है उसे पंचशील कहते है। यह पंचशील अहिंसा, सत्य ,अस्तेय ,इंद्रिय सयम तथा मादक पदार्थ का सेवन न करना है।
रिंकी कुमारी

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