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जानिए केदारनाथ मंदिर की मान्यताओं के बारे में

  • केदारनाथ धाम मन्दाकनी नदी के किनारे 3553 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

केदारनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित हिन्दुओं का प्रसिद्ध मंदिर है।ये प्रसिद्ध मंदिर रुद्रप्रयाग से 86 km दूर है।यह मन्दिर कात्युहरी शैली में एक छह फीट ऊंचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है इसके निर्माण में भूरे रंग के बड़े पत्थरों का प्रयोग बहुतायत किया गया है. मंदिर की छत लकड़ी की बनी हुई है, जिसके शिखर पर सोने का कलश है मंदिर को तीन भागों में बांटा गया है पहला – गर्भगृह, दूसरा – दर्शन मंडप (जहां पर दर्शनार्थी एक बड़े प्रांगण में खड़े होकर पूजा करते हैं) और तीसरा – सभा मंडप (इस जगह पर सभी तीर्थ यात्री जमा होते हैं)..कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डवों के पौत्र महाराजा जन्मेजय ने कराया था। यहाँ स्थित स्वयम्भू शिवलिंग अति प्राचीन है। आदि शंकराचार्य ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया। केदारनाथ धाम मन्दाकनी नदी के किनारे 3553 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमनोत्री आदि में से एक धाम भी है।हिन्दू मान्यताओं में इस धाम को बहुत महत्व दिया जाता है मान्यता है कि यहां पहुंचने मात्र से भक्तों को समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है।
हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन करने यहाँ आते है, केदारनाथ मंदिर न सिर्फ तीन पहाड़ बल्कि पांच नदियों का संगम भी है यहां- मं‍दाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी।
ऐसी मान्यता है कि द्वापर काल में जब पांडवों ने महाभारत का युद्ध जीत लिया था. तब उन्हें इस बात की ग्लानि हो रही थी कि उन्होंने अपने भाइयों, सगे-संबंधियों को मारने करने का पाप किया है जिसके बाद पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव के दर्शन करने काशी पहुंचे
लेकिन भगवान शिव पांडवों से नाराज होकर केदारनाथ चले गए पांडव भी भोलेनाथ के पीछे-पीछे केदारनाथ पहुंच गए तब भगवान शिव बैल का रूप धारण कर पशुओं में शामिल हो गए जिसके बाद भीम ने अपना विराट रूप धारण किया और दो पहाड़ों पर अपने पैर रखकर खड़े हो गये. सभी पशु भीम के पैरों के नीचे से चले गए,बैल बने भगवान शिव पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। और बैल रूप में अंतर्ध्यान होने ही वाले थे कि।यह देख भीम बलपूर्वक बैल पर झपटे, और भग भोलेनाथ की पीठ पकड़ ली।
पांडवों की इस लालसा और दृढ़ संकल्प को देखकर शिव बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन दिए। इसके बाद पांडव इस पाप से मुक्त हुए . इसके बाद पांडवों यहां पर केदारनाथ के मंदिर का निर्माण करवाया था. जिसमें आज भी बैल के पीठ की आकृति-पिंड के रूप में पूजा की जाती है.
ऐसी भी मान्यता है कि केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के नर और नारायण अवतार ने तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर और उनकी प्रार्थनानुसार शिवजी ने सदा ज्योतिर्लिंग के रूप में वास करने का वर प्रदान किया था। (रिंकी कुमारी)

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