हर साल अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन जीवित्पुत्रिका का व्रत मनाया जाता है।इस साल जितिया का व्रत 6 अक्टूबर को रखा जाएगा। जितिया व्रत को कई जगह जीवित्पुत्रिका और जीउतिया के नाम से भी जाना जाता है। यह मुख्य रूप से यूपी, बिहार और झारखंड मे मनाया जाता है यहाँ जितिया व्रत का विशेष महत्व है। महापर्व छठ के बाद जितिया को ही सबसे कठिन व्रतों में से एक माना गया है।इस दिन महिलाएं 24 घंटे का निर्जला उपवास कर अपनी संतान की लंबी आयु, स्वस्थ जीवन और सुख समृद्धि कि कमना करती है।धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, जितिया व्रत को करने से संतान दीर्घायु होते हैं और उनपर आने वाला हर संकट टल जाता है। आईये जानते है क्या हैं जितिया व्रत पुजा का शुभ मुहूर्त, पुजान कि सही विधि, व्रत का कथा और आरती।
जीवित्पुत्रिका व्रत पुजा का शुभ मुहूर्त
उदयातिथि के अनुसार, जीवित्पुत्रिका व्रत इस बार 6 अक्टूबर को ही रखा जाएगा. अष्टमी तिथि 6 अक्टूबर यानी आज सुबह 6 बजकर 34 मिनट से शुरू हो चुकी है और तिथि का समापन 7 अक्टूबर को सुबह 8 बजकर 8 मिनट पर होगा। इस दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 33 मिनट तक रहेगा. आप इस अबूझ मुहूर्त में पूजा कर सकते हैं।
जीवित्पुत्रिका व्रत कि सही पूजन विधि
जिन माताओं को जितिया व्रत रखना है। वे अष्टमी के दिन यानी 6 अक्टूबर को प्रात: स्नान आदि से निवृत होकर साफ वस्त्र पहन लें। उसके बाद जितिया व्रत एवं पूजन का संकल्प करें। इसके बाद शाम के समय प्रदोष काल में यानी सूर्यास्त के बाद और रात्रि से पूर्व के समय में जीमूतवाहन की मूर्ति कुश से बना लें। फिर एक जलपात्र में उसे स्थापित करें ।इसके बाद उनको लाल और पीली रुई अर्पित करें। वंश की सुरक्षा एवं वृद्धि के लिए जीमूतवाहन को धूप, दीप, बांस के पत्ते, अक्षत्, फूल, माला, सरसों का तेल और खल्ली अर्पित करें।
अब गाय के गोबर और मिट्टी से मादा सियार और मादा चील की मूर्ति बनाएं। उनको सिंदूर, खीरा और भींगे हुए केराव चढाएं। चील और सियारिन को चूड़ा-दही भी अर्पित करें। इसके बाद चिल्हो-सियारो की कथा या गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन और पक्षीराज गरुड़ की कथा सुनें। फिर पूजा के अंत में आरती करें।
जितिया व्रत की कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत युद्ध के दौरान जब द्रोणाचार्य की मृत्यु हुई तो इसका बदला लेने के लिए उनके पुत्र अश्वत्थामा ने क्रोध में आकर ब्रह्मास्त्र चला दिया, जिसकी वजह से अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे की मौत हो गई। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की संतान को फिर से जीवित कर दिया। बाद में उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया। कहते हैं कि तभी से अपनी संतान की लंबी आयु के लिए माताएं जितिया का व्रत करने लगी।
चील और सियारिन की कथा
प्रचलिए पौराणिक कथा के मुताबिक, एक पेड़ पर चील और सियारिन रहती थीं। दोनों की आपस में खूब बनती थी। चील और सियारिन एक-दूसरे के लिए खाने का एक हिस्सा जरूर रखती थीं। एक दिन गांव की औरतें जितिया व्रत की तैयारी कर रही थीं। उन्हें देखकर चील का भी मन व्रत करने का कर गया। फिर चील ने सारा वाक्या सियारिन को जाकर सुनाया। तब दोनों ने तय किया कि वो भी जितिया का व्रत रखेंगी। लेकिन अगले दिन जब दोनों ने व्रत रखा तो सियारिन को भूख और प्यास दोनों लगने लगी। सियारिन भूख से व्याकुल इधर-उधर घूमने लगी। व्रत के दिन गांव में किसी की मृत्यु हो गई यह देखकर सियारिन के मुंह में पानी आ गया। फिर सियारिन ने अधजले शव को खाकर अपनी भूख को शांत किया। वह भूल गई उसने जितिया का व्रत रखा है। वहीं चील ने पूरी निष्ठा और मन से जितिया का व्रत और पारण किया।
जितिया व्रत का मंत्र
1.कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।
2.सर्व मंगल मांग्लयै शिवे सर्वार्थ साधिके |
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते ||
3.वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् ।
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ।।
जीवित्पुत्रिका व्रत आरती
ओम जय कश्यप नन्दन, प्रभु जय अदिति नन्दन।
त्रिभुवन तिमिर निकंदन, भक्त हृदय चन्दन॥ ओम जय कश्यप…
सप्त अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।
दु:खहारी, सुखकारी, मानस मलहारी॥ ओम जय कश्यप….
सुर मुनि भूसुर वन्दित, विमल विभवशाली।
अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥ ओम जय कश्यप…
सकल सुकर्म प्रसविता, सविता शुभकारी।
विश्व विलोचन मोचन, भव-बंधन भारी॥ ओम जय कश्यप…
कमल समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।
सेवत सहज हरत अति, मनसिज संतापा॥ ओम जय कश्यप…
नेत्र व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा हारी।
वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥ ओम जय कश्यप…
सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।
हर अज्ञान मोह सब, तत्वज्ञान दीजै॥ ओम जय कश्यप…
ओम जय कश्यप नन्दन, प्रभु जय अदिति नन्दन।