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अब बदल रही कश्मीर की तस्वीर! 33 साल बाद निकला ‘ताजिया’

  • शिया समुदाय ने गुरुवार को गुरुबाजार से डलगेट मार्ग पर मुहर्रम जुलूस निकाला.
  • जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा अनुमति दिए जाने के बाद समुदाय के लोगों ने जुलूस निकाला.
    श्रीनगर :
    श्रीनगर में करीब तीन दशक से अधिक समय के अंतराल के बाद शिया समुदाय ने गुरुवार को गुरुबाजार से डलगेट मार्ग पर मुहर्रम जुलूस निकाला, जिसमें सैकड़ों लोगों ने भाग लिया. जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा अनुमति दिए जाने के बाद समुदाय के लोगों ने जुलूस निकाला. अधिकारियों ने व्यस्त लाल चौक क्षेत्र से गुजरने वाले मार्ग पर जुलूस के लिए सुबह 6 बजे से 8 बजे तक दो घंटे का समय दिया था, इसलिए लोग सुबह करीब 5.30 बजे ही गुरुबाजार में एकत्र होने लगे थे. 90 के दशक में कश्मीर में आतंकवाद फैलने के बाद मुहर्रम का जुलूस नहीं निकाला गया था. कश्मीर के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक विजय कुमार ने संवाददाताओं को बताया कि जुलूस के लिए पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था की गई थी. उन्होंने कहा, ‘पिछले कुछ वर्षों से शिया समुदाय जुलूस की अनुमति की मांग कर रहे थे. प्रशासन द्वारा निर्णय लेने के बाद हमने पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था की हुई थी.’ 30 से अधिक वर्षों में यह पहली बार है कि इस मार्ग पर मुहर्रम के आठवें दिन के जुलूस को अनुमति दी गई है. कश्मीर के मंडलायुक्त वीके भिदुरी ने बुधवार को कहा था कि चूंकि जुलूस कार्यदिवस पर निकाला जा रहा है, ऐसे में इसके लिए सुबह 6 बजे से सुबह 8 बजे तक का समय तय किया गया है ताकि लोगों को असुविधा का सामना न करना पड़े. उन्होंने कहा था, ‘हमारे शिया भाइयों की लंबे समय से मांग थी कि गुरुबाजार से डलगेट तक पारंपरिक जुलूस की अनुमति दी जाए. पिछले 32-33 वर्षों से इसकी अनुमति नहीं थी.’ मंडलायुक्त ने कहा था कि जुलूस की अनुमति देने का प्रशासन का निर्णय एक ‘ऐतिहासिक कदम’ है. तीन दशकों से अधिक समय से जुलूस को अनुमति नहीं म‍िलने के पीछे बड़ी वजह यह थी कि सरकार जुलूस निकालने वालों को अलगाववादी आंदोलन के प्रति नरम मानती थी. इसके चलते 1990 में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की शुरुआत में इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. बुधवार को अपने आदेश में, प्रशासन ने जुलूस निकालने वालों से कहा कि वे किसी भी राष्ट्र-विरोधी/प्रतिष्ठान-विरोधी भाषण/नारेबाजी या प्रचार में शामिल न हों. आदेश में कहा गया है कि जुलूस के दौरान ऐसी कोई गतिविधि नहीं होनी चाहिए जो ‘राज्य की सुरक्षा और संप्रभुता के लिए हानिकारक हो, और प्रतिभागियों को ‘किसी भी राष्ट्रीय प्रतीक/प्रतीक का अनादर नहीं करना चाहिए.’ जुलूस की अनुमत‍ि देने वाले आदेश में यह भी साफ और स्‍पष्‍ट क‍िया गया है क‍ वे (जुलूस निकालने वाले) उत्तेजक नारे/पाठ और/या आतंकी संगठनों की तस्वीरें, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर प्रतिबंधित संगठनों के लोगो वाला कोई झंडा नहीं फहराएंगे. जुलूस में शामिल होने वाले प्रतिभागियों की गतिविधियां पूर्णतः कार्यक्रम तक ही सीमित रहनी चाहिए. वे जनहित में स्थानीय पुलिस और अन्य सुरक्षा एजेंसियों के साथ उनकी इच्छानुसार सहयोग करेंगे.’ परंपरागत रूप से, शिया शोक मनाने वाले घाटी में दो बड़े जुलूसों का आयोजन करते हैं – 8वें मुहर्रम का जुलूस शहर के शहीद गुंज इलाके से शुरू होता है जोक‍ि शहर के केंद्र लालचौक से होकर गुजरता है और श्रीनगर के डलगेट इलाके में समाप्त होता है. जबकि 10वीं मुहर्रम का जुलूस शहर के शिया बहुल इलाकों से होकर गुजरता है.

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