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भारत को 5 साल में मिलेगा पहला ध्रुवीय अनुसंधान पोत, खर्च होंगे 2600 करोड़

  • भारत का लक्ष्य अंटार्कटिका में अपने ठिकानों को बनाए रखने के लिए अगले 5 सालों में अपना पहला ध्रुवीय अनुसंधान पोत बनाना है.
    नई दिल्ली:
    भारत इन दिनों विज्ञान के क्षेत्र में झंडे गाड़ रहा है. अब इस मोर्चे पर एक और बड़ी खबर आ गई है. केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरेन रिजिजू ने हाल ही में कहा कि भारत का लक्ष्य अंटार्कटिका में अपने ठिकानों को बनाए रखने के लिए अगले पांच सालों में अपना पहला ध्रुवीय अनुसंधान पोत बनाना है. राज्यसभा में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि पोत के संबंध में एक प्रस्ताव चालू वित्त वर्ष के दौरान कैबिनेट की मंजूरी के लिए जाने की उम्मीद है. केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री ने कहा साल 2014 में कैबिनेट ने पोत के अधिग्रहण के लिए 1,051 करोड़ रुपये की मंजूरी दी थी. इसके लिए टेंडर भी निकाला गया था. सरकार ने बाद में इस परियोजना को छोड़ दिया, क्योंकि जिस कंपनी को पोत बनाने का आदेश मिला था उसने कुछ शर्तें बढ़ा दी थीं जो टेंडर प्रक्रिया का हिस्सा नहीं थीं. रिजिजू ने आगे कहा कि ‘हालांकि एक और प्रयास शुरू किया गया था और अब, हम EFC (व्यय वित्त समिति) द्वारा पेश किए जाने वाले प्रस्ताव के साथ तैयार हैं.’ उन्होंने कहा कि पोत की लागत अब 2,600 करोड़ रुपये होने का अनुमान है. रिजिजू ने कहा कि ‘मुझे उम्मीद है कि इस वित्तीय वर्ष में, हमें इस अनुमान का प्रस्ताव करने और कैबिनेट में स्थानांतरित करने के लिए तैयार होना चाहिए. अगले पांच सालों में, हमें जहाज के साथ तैयार होना चाहिए.’ उन्होंने कहा कि सरकार अन्य देशों के साथ बातचीत कर रही है जिनके पास ऐसे पोत बनाने में विशेषज्ञता है. हालांकि रिजिजू ने कहा कि सरकार पोत का निर्माण देश में ही करना चाहेगी. उन्होंने कहा कि ‘मुझे उम्मीद है कि अगले पांच साल में हम भारत में पोत बनाने में सक्षम होंगे.’ बता दें कि भारत के वर्तमान में अंटार्कटिका के ध्रुवीय क्षेत्र में तीन अनुसंधान बेस स्टेशन हैं – भारती, मैत्री और दक्षिण गंगोत्री. किरेन रिजिजू ने कहा कि देश को अनुसंधान स्टेशनों तक निरंतर पहुंच के लिए पोतों की आवश्यकता है जो विभिन्न कारणों से आवश्यक हैं. विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन और अन्य अनुसंधान मामलों की बेहतर समझ के लिए. PRV न केवल ध्रुवीय क्षेत्र में अनुसंधान का कार्य करता है बल्कि दक्षिणी महासागर सहित समुद्री क्षेत्र में अनुसंधान करने के लिए वैज्ञानिकों के लिए एक अनुसंधान मंच के रूप में भी काम कर सकता है.

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