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- भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि आईओएने संप्रभुता पूरी तरह से भारत को हस्तांतरित कर दी है.
नई दिल्ली. जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व में बनाए गए संविधान पीठ के सामने सुनवाई कई दिनों से जारी है. इसी कड़ी में सुनवाई के दौरान 370 के फैसले के खिलाफ याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ताओं ने संविधान पीठ को दलील दी कि 1947 के विलय पत्र (आईओए), जिसके द्वारा जम्मू और कश्मीर को भारत के प्रभुत्व में सौंप दिया गया था, उन्होंने (राजा हरि सिंह) भारत को सभी संप्रभुता नहीं सौंपी थी. वहीं बीते 10 अगस्त को मामले की सुनवाई कर रही पांच सदस्यीय संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि आईओएने संप्रभुता पूरी तरह से भारत को हस्तांतरित कर दी है. बुधवार को, जेएंडके पीपुल्स कॉन्फ्रेंस की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने पीठ से कहा, ‘ऐसा लगता है कि विलय समझौतों की स्थिति पर कुछ गलतफहमी हुई है.’ बता दें कि संविधान पीठ में सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस एसके कौल, संजीव खन्ना, बीआर गवई और सूर्यकांत भी शामिल हैं. इस मामले पर आज भी सुनवाई होगी.
साल 2019 में हटाया गया था आर्टिकल 370
जम्मू कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पांच अगस्त, 2019 को राज्यसभा में पेश किया गया और पारित किया गया था और अगले दिन लोकसभा में पेश किया गया और पारित किया गया था। इसे नौ अगस्त, 2019 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली थी. प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन से यह सवाल पूछा, जिस पार्टी ने संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने के अलावा 19 दिसंबर, 2018 को पूर्ववर्ती राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाये जाने तथा तीन जुलाई, 2019 को इसे छह महीने के लिए बढ़ाये जाने का भी विरोध किया है.
सीजेआई ने अधिवक्ता धवन से पूछा सवाल
प्रधान न्यायाधीश ने धवन से पूछा, ‘क्या संसद अनुच्छेद 356 की उद्घोषणा के लागू रहने की अवधि के दौरान अपनी शक्ति का इस्तेमाल करते हुए कोई कानून (जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम) बना सकती है.’ धवन ने जवाब दिया कि संसद संविधान के अनुच्छेद 3 और 4 में वर्णित सभी सीमाओं के अधीन एक कानून पारित कर सकती है. धवन ने पीठ को बताया कि संविधान के अनुच्छेद 3 और 4 के तहत नए राज्यों के गठन और मौजूदा राज्य के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में बदलाव से संबंधित एक अनिवार्य शर्त है जहां राष्ट्रपति को मामले को राज्य विधायिका के पास भेजना होता है.