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- इजरायल को अगर जंग जीतनी है तो उसे चौतरफा युद्ध करना होगा.
- गाजा में हमास से तो लेबनान की सीमाओं पर हिज्बुल्ला से भी मोर्चा संभालना होगा.
- इजरायल जानता है कि हिज्बुल्ला कभी भी हमास से ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है.
नई दिल्ली, इजरायल जिस तरह से अपनी फौज उत्तर की दिशा की ओर भेज रहा है, लेबनान पर खतरा बढ़ता जा रहा है. इरान समर्थित आतंकी संगठन हिज्बुल्ला ने यहीं अपना ठिकाना बनाया हुआ है. हमास के हमले को कवर देने के लिए हिज्बुल्ला ने उत्तरी इजरायल पर कुछ रॉकेट दागे हैं, और यहीं उसने भूल कर दी है. हिज्बुल्ला एक लेबनानी शिया लड़ाकों का संगठन है, जिसे इजरायल और अधिकांश पश्चिमी देशों ने आतंकवादी समूह मानते हैं और इस संगठन पर रोक लगाई हुई है. लेकिन ईरान इसका खुलकर समर्थन करता है. 1982 में दक्षिणी लेबनान पर इजरायल के कब्ज़े के ख़िलाफ़ लड़ने वाली फ़ोर्स के रूप में इसकी स्थापना की गई थी. ईरान समर्थित यह समूह यहूदी राज्य के विनाश के लिए प्रतिबद्ध है.इसलिए आज इज़रायल के लिए सबसे गंभीर खतरा बना हुआ है.
इजरायल को हमास के बाद सबसे ज्यादा खतरा हिजबुल्ला
हिज्बुल्ला भले ही एक लड़ाकों का संगठन है पर अपने रॉकेटों के विशाल शस्त्रागार और पड़ोसी सीरिया के गृहयुद्ध में युद्ध का अनुभव प्राप्त करने वाले हजारों अनुभवी लड़ाकों के चलते वह किसी देश की आर्मी से कम ताकतवर नहीं है. यही कारण है कि हिज्बुल्ला को लंबे समय से इज़रायल एक दुर्जेय लड़ाकू शक्ति के रूप में देखता है. दक्षिणी लेबनान पर इजरायली कब्जे से लड़ने के लिए 1982 में स्थापित, हिज्बुल्ला एक शक्तिशाली संगठन बन चुका है. जिसके नेता हसन नसरल्लाह ने इस आतंकी संगठन को देश के अंदर एक प्रभावशाली राजनीतिक ताकत का चोला भी पहना दिया. इजरायली डिफेंस फोर्सेस का मानना रहा है कि हिजबुल्ला को करीब 70 करोड़ डॉलर से ज्यादा का फंड हर साल मिलता है. इसका सबसे बड़ा हिस्सा ईरान से आता है. ईरान इसे केवल फंड नहीं देता बल्कि ट्रेनिंग से लेकर , हथियार और खुफिया जानकारी भी देता है. इजरायल का दावा है कि हिज्बुल्ला के शस्त्रागार में 120000 से 130000 मिसाइलें हैं. इनमें कुछ लंबी दूरी की मिसाइलें भी शामिल हैं, जो पूरे इजरायल तक मार करने में सक्षम हैं. हिज्बुल्ला के पास किसी संप्रभु राष्ट्र की तरह एंटी टैंक मिसाइलें, दर्जनों ड्रोन, एंटी शिप मिसाइल, एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल और एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम भी मौजूद हैं.
इजरायल को दुनिया के नक्शे से मिटाने की ईरान की कसम
हिजबुल्ला को समझने के लिए लेबनान के इतिहास पर एक नजर जरूरी है. लेबनान में हुए एक समझौते के अनुसार देश की सत्ता जिसकी जितनी आबादी -उसकी उतनी हिस्सेदारी के आधार पर धार्मिक गुटों बांटा गया. इस समझौते के अनुसार एक सुन्नी मुसलमान ही प्रधानमंत्री बन सकता है, राष्ट्रपति के लिए ईसाई और संसद के स्पीकर के शिया मुसलमान तय किया गया है. लेकिन यह धार्मिक संतुलन बहुत लंबे वक्त तक कायम नहीं रह पाया. फिलिस्तीनियों के लेबनान में बसने के बाद देश में सुन्नी मुसलामानों की संख्या बढ़ गई. ईसाई अल्पसंख्यक चूंकि सत्ता में थे इसलिए उन्हें अपने हाशिए पर जाने का डर नहीं था.पर शिया मुसलामानों को अपने सताए जाने का डर सताने लगा. 1975 में देश में गृह युद्ध छिड़ने का शायद यही कारण रहा. इसी बीच इजरायल ने 1978 में लेबनान के दक्षिणी हिस्से पर कब्जा कर लिया.दरअसल फिलिस्तीन के लड़ाके इस इलाके का इस्तेमाल इजरायल के खिलाफ हमले के लिए कर रहे थे. इस बीच ईरान को भी मध्य पूर्व में अपना दबदबा बढ़ाने का मौका दिखने लगा. ईरान ने शिया मुसलमानों के डर को कैश करना शुरू किया.1982 में लेबनान में हिज्बुल्ला नाम का एक शिया संगठन बना जिसका मतलब था “अल्लाह की पार्टी”. ईरान ने इसे इजरायल के खिलाफ आर्थिक मदद देना शुरू किया.