बजट के बाद अब तेजी से विकास कार्यों के लिए फाइल बनाकर टेंडरिंग की प्रक्रिया शुरू करने पर जोर है, लेकिन फाइलें बनने के बाद वह गायब न हो और जब चाहे तब सामने आ जाए, इसलिए फाइलों को डिजिटली रखा जाएगा। फाइल या नस्ती के नंबर कंप्यूटर में दर्ज करने से पूरी जानकारी सामने होगी । सभी आदेश-निर्देश से लेकर प्रक्रियाएं डिजिटली रखी जाएगी, ताकि विवाद की स्थिति न बने । इसका सबसे बड़ा लाभ एक ही काम की दो फाइलें, फर्जी फाइलें व एक ही काम के दोबार भुगतान की स्थिति नहीं बनेगी । निगम प्रशासन इसके लिए अपने सॉफ्टवेयर में बदलाव कर रहा है । आगामी दो से तीन माह में इससे काम शुरू हो जाएगा । निगमायुक्त केवीएस चौधरी का कहना है कि सिस्टम में बेहतरी के लिए लगातार बदलाव कर रहे हैं । इनसे शहर को लाभ होता है ।
गौरतलब है कि निगम ने हाल में 33 अरब रुपए का बजट पास किया है । पार्षदों को अपने वार्ड में 25 लाख रुपए तक खर्च के लिए राशि दी है, जबकि एमआईसी को 50 लाख रुपए का अधिकार दिया है । एक अनुसार के अनुसार इस राशि से शुरुआत में ही करीब 3000 फाइलें बनने की स्थिति है । निगम ने फाइलों में जीआईएस मेप लगाने का प्रावधान रखा है, लेकिन इसमें गड़बड़ी हो जाती है । करीब 1700 फाइलें तो रखरखाव के नाम पर ही बनेगी। ऐसे में निगम का सॉफ्टवेयर में बदलाव गलत भुगतान पर नजर रखने के साथ अंकुश बनाए रखेगा ।
वार्ड में इंजीनियर बनाते हैं 30 हजार की फाइलें, इससे ही राजस्व लीकेज
– वार्ड स्तर पर जूनियर इंजीनियर को 30 हजार रुपए तक की फाइलें अपने स्तर पर ही बनाने का अधिकार दिया हुआ है । यानि इतनी राशि के काम के लिए कहीं मंजूरी की जरूरत नहीं है । ऐसे में एक ही काम की कई फाइलें बनाकर इंजीनियर अपने स्तर पर ही लाखों रुपए का काम कर खर्च कर देते हैं । नए सिस्टम से एक ही काम की कई फाइलें भी मुश्किल होगा।
ऑफलाइन टेंडर से हर पार्षद पांच लाख लेने की कोशिश में
– ऑफलाइन टेंडर से काम देने में भ्रष्टाचार व मिलीभगत की शिकायतों के बाद शासन ने टेंडर पूरी तरह ऑनलाइन कर दिए। अब नई सरकार पार्षदों को पांच लाख रुपए तक के काम बिना टेंडर कराने का अधिकार देने की कोशिश कर रही है । ऐसा हुआ तो इन पांच लाख रुपए का कोई हिसाब नहीं रहेगा। 85 पार्षदों ये राशि 4.25 करोड़ रुपए बनती है। ये एक बड़ा अमाउंट है ।
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