स्वदेश ब्यूरो, भोपाल

उमरिया जिले के बांधवगढ़ नेशनल पार्क में लगी आग पर गुरुवार को काबू पा लिया गया, लेकिन पार्क के कुछ हिस्सों में इसका उठता धुंआ इससे हुए नुकसान की भयावहता की कहानी बयां कर रहा है। इसी बीच पार्क के मगधी रेंज में एक बाघिन की संदिग्ध मौत का मामला भी सामने आया है।
विभागीय सूत्रों के अनुसार बाघिन का शव गुरुवार को मगधी रेंज के खुसरवार बीट के बचहा हार क्षेत्र में मिला। टाइगर रिजर्व के अधिकारियों ने इस बारे में कुछ नहीं बताया, लेकिन स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि बाघिन की मौत आग में झुलसने से हुई और इसलिए उसका चुपचाप अंतिम संस्कार कर दिया गया। गौरतलब है कि पार्क में आग की सूचना मिलने पर दो दिन पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस पर चिंता जताते हुए वन अधिकारियों से आग पर नियंत्रण व वन्य प्राणियों को नुकसान न होने देने के लिए आवश्यक उपाय किए जाने के निर्देश दिए थे।
आधा दर्जन क्षेत्रों में आग से नुकसान
टाइगर रिजर्व में आग की शुरुआत सोमवार को हुई जो तेजी से फैलते हुए छह वन क्षेत्रों में फैल गई। ग्रामीणों की मदद से चौथे दिन इस पर काबू तो पा लिया गया, लेकिन जंगल के अंदरूनी इलाकों में यह अब भी सुलग रही है। वन्य प्राणी विशेषज्ञों की आशंका है कि आग के चलते बड़ी तादाद में वन्य प्राणियों की मौत हुई है, लेकिन इस बारे में अब तक आधिकारिक रूप से कुछ नहीं बताया गया। देश में बाघों की सबसे ज्यादा संख्या वाले टाइगर रिजर्व में शामिल बांधवगढ़ में प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 7-8 बाघ रहते हैं। यह 105 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है। वर्ष 1993 में इसे टाइगर रिजर्व घोषित किया गया था।
जैव प्रौद्योगिकी को नुकसान, बढ़ेगा पलायन
सूत्रों के अनुसार, जंगल में कई जगह आग लगने से घास के मैदान और पर्यटन जोन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। हालांकि जंगल में सफ ारी निरंतर जारी है और पर्यटकों के वाहनों को नहीं रोका गया है। जिस तरह से जंगल में आग लगी है उससे न सिर्फ घास के मैदान उजड़ गए हैं बल्कि इसकी वजह से बांधवगढ़ की जैव विविधता पर भी बुरा असर होने की पूरी आशंका उत्पन्न हो गई है। घास के मैदान उजड़ जाने से जंगल के शाकाहारी जानवर यहां से पलायन कर जाएंगे, जिसकी वजह से बाघ और दूसरे जानवर भी उनके पीछे यहां से दूर जाने लगेंगे।
आग लगने की यह भी एक वजह
बताया जाता है कि आग से पार्क के खितौली, मगधी और ताला जोन में खासा नुकसान हुआ है। सूत्रों का दावा है कि आग की वजह महुआ बिनाई के दौरान ग्रामीणों द्वारा घांस व पतझड़ में गिरे पत्तों को जलाना भी हो सकता है। दरअसल, महुआ बीनने के लिए ग्रामीण आमतौर पर यह प्रयोग करते हैं ताकि जमीन पर बिखरा महुआ जल्दी चुना जा सके। बहरहाल, आग पर काबू होने से पार्क प्रबंधन ने राहत की सांस ली है और कुछ हिस्सों में धधक रही आग को बुझाने व इसे आगे न बढऩे देने के प्रयास किए जा रहे हैं।