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आसपास का जंगल कटा तो लगा कि अपने हाथ पैर कट गए

भोपाल के गांधी भवन में पर्यावरणविद और गांधीवादी चिंतक डॉक्टर वंदना शिवा ने कहा
भोपाल। मैं उत्तराखंड के देहरादून की हूं तो 1970 में मैं कनाडा पढ़ने जा रही थी तो मैने सोचा की एक बार अपने जंगलों में घूम आऊं क्योंकि मेरे पिताजी वन संरक्षण विभाग में थे। मैंने सोचा एक छोटा सा ट्रैक कर के फिर जाऊंगी,वो जंगल ही गायब था। मुझे तो लगा किसी ने मेरा हाथ पैर ही काट लिए। फ़िर एक गांव वाले ने बताया कि अब तो चिपको आन्दोलन शुरू हो गया,अब पेड़ कटना कम होगा। मैंने कहा अब तो मैं कनाडा जा रही लेकिन छुट्टियों में आ के इसमें जरूर अपनी भागीदारी सुनिश्चित करूंगी। तो छुट्टियों में आ के मैं चिपको को वॉलंटियर करती थी,हम पदयात्रा करते थे।मैने पहला कैमरा चिपको को दिया ताकि कुछ तो रिकॉर्ड हो। देशभर में जागरूकता फैलाते थे, रिपोर्ट लिखती थी और 81 में चिपको के वजह से पेड़ो की कटाई, पहाड़ों में रुका।

सबसे बड़ा कारण है फॉसिल फ्यूल का यूज
1972 में अलकनंदा में भयंकर लैंडस्लाइड आया था जिसमे गांव के गांव बह गए थे, ब्रिज टूट गए थे जो आज हमे हिमाचल में, उत्तराखंड में देखने को मिल रहा है। महिलाओं ने सीधा कनेक्ट किया कि जंगल कट रहा है, भूस्खलन हो रहा है। अगर जंगल कटान नहीं रुकेगा तो हम तबाह होते रहेंगे। 2013 में केदारनाथ आपदा हुआ,2021 में ऋषिगंगा आपदा हुआ। तो हमने अपने अध्ययन से देखा कि जहां जहां बांध बन रहे ,सड़के बन रही है,वहां ही ये देखने को मिल रहा है क्योंकि हिमालय अभी भी एक नया पर्वत है,अभी भी उसका निर्माण हो रहा है। इसी में हम डायनामाइट से,बड़े बड़े बॉम्ब ब्लास्ट कर के,सड़क बना रहे है,तो इसी का असर है ये।दूसरी बड़ी वजह है मौसम में बदलाव।मौसम में बदलाव का सबसे बड़ा कारण है फॉसिल फ्यूल का यूज।

पंजाब में हरित क्रांति हो रही थी
1984 में पंजाब में आतंक फैला और भोपाल में गैस त्रासदी हुई। मैं यूनाइटेड नेशन की यूनिवर्सिटी के लिए काम कर रही थी। मैंने सोचा ये क्या हो रहा, पंजाब में हरित क्रांति हो रही थी। तब मैंने एक किताब लिखा “violence of the green revolution”, मैंने कहा कि मैं अपनी जिंदगी में एक अहिंशिक खेती को बढ़ावा दूंगी। अहिंशिक खेती मतलब बिना जहर के। जहर कहां से आता है, वो आता है फॉसिल फ्यूल से। फर्टिलाइजर्स बनता है पेट्रोल से तेल से, पेस्टिसाइड की एक कार्बोरिल की फैक्ट्री थी भोपाल में।

पेट्रोकेमिकल से लोग मर रहे है
भोपाल ने दिखाया की पेट्रोकेमिकल से लोग मर रहे है। भोपाल ने 40 साल पहले ही लोगो को जगाने की कोशिश की थी कि संभल जाओ नही तो परिणाम बहुत खराब होंगे। अगर हम आज भी संभल जाए ,तो हमारी जलवायु आज भी सही हो जाएगी।

धरती के सेवा करने में,झूठ रोकने में करती हुं
मैंने चिपको की वजह से मैंने कहा कि जो चीज धरती पर आक्रमण कर रही है,वो महिलाओं को भी कुचल रही है।वो है हमारे समाज की पैतृक सोच। धरती और महिलाओं का शोषण भी एक है ओर लिबरेशन भी एक ही है। तो मुझे अवार्ड भी इसीलिए मिला था क्योंकि मैंने धरती का संकट और अपनी बहनों के संकट को जोड़ा था। उसके बाद भी बहुत अवॉर्ड्स मिले पर मेरा असली अवार्ड तो यही है की मुझे सेवा करने का मौका मिला। अपना दिमाग क्वांटम थ्योरी में इस्तेमाल करती थी,आज धरती के सेवा करने में,झूठ रोकने में करती हुं।

When the forest around was cut off, it felt as if my hands and legs were cut off

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