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हीट वेव से प्रभावित होता इंसान

  • नृपेन्द्र अभिषेक नृप
    प्रकृति ने हमें जीवन दिया है और साथ में समय के साथ बदलते हुए मौसम भी। तभी मानव कभी ठंड से परेशान होता है तो कभी गर्मी से। अभी पूरा उत्तर भारत हीट वेब के चपेट में है, जिसका सीधा प्रभाव हमारे निजी जीवन पर पड़ रहा है और मानव स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। पिछले कुछ वर्षों से ग्रीष्मकाल में हीट वेब का प्रकोप देश में रुग्णता और मृत्यु दर को बढ़ावा दे रहा है।आईएमडी के अनुसार, एक दशक में गर्मी की लहर के दिनों की संख्या 413 (1981-1990) से बढ़कर 600 (2011-2020) हो गई है। ग्रीष्म लहर भारत में आपदा प्रबंधन के लिये एक बढ़ती हुई चिंता का विषय है, जिससे व्यापक स्तर पर स्वास्थ्य एवं पर्यावरण संबंधी प्रभाव उत्पन्न हो रहा है। पिछले कुछ सालों से हीट वेव की घटनाएं लगातार बढ़ी हैं. हीट वेब अत्यधिक गर्म मौसम की स्थिति होती है, जो आमतौर पर दो या दो से ज्यादा दिनों तक रहती है। जब किसी क्षेत्र का तापमान ऐतिहासिक औसत से अधिक हो जाता है तो उसे हीट वेब या लू कहा जाता है। मैदानी क्षेत्र में जब भी तापमान 40 डिग्री या उससे अधिक हो जाता है तब लू या हीट वेब का असर दिखने लगता है। मौसम वैज्ञानिकों ने भी इसे परिभाषित किया है। मौसम विज्ञान विभाग आइएमडी के मुताबिक जब कभी मैदानी इलाकों का अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक और पहाड़ी क्षेत्रों का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है तो लू चलने लगती है और यह स्‍वास्‍थ्‍य पर बुरा असर डालती है। अत्यधिक गर्म मौसम की अवधि को हीट वेब कहते हैं। हीट वेब उच्च आर्द्रता वाली और बिना आर्द्रता वाली भी हो सकती है तथा यह एक बड़े क्षेत्र को कवर करने की क्षमता रखती है। इसकी भीषण गर्मी बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित करती है। अगर तापमान 47 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, तो इसे खतरनाक लू की श्रेणी में रखा जाता है। भारत में हीट वेब मुख्य रूप से मार्च से जून के बीच चलती है। कुछ दुर्लभ मामलों में यह जुलाई में भी चल सकती है। भारत में सबसे अधिक हीट वेब ज्यादातर मई के महीने में चलती है। हीट वेब आने के कारणों की बात करें तो, इसकी शुरुआत तब होती है , जब वायुमंडल में उच्च दबाव बनता है और उसके बाद यह गर्म हवा को भूमि की ओर ले जाता है। यह प्रभाव समुद्र से उठने वाली ऊष्मा के कारण होता है, जिससे एक प्रवर्द्धन लूप बनता है। सतह से नीचे की ओर पड़ने वाली उच्च दाब प्रणाली लंबवत रूप से फैलती है, जिससे अन्य मौसम प्रणालियों की गतिविधियों में भी तीव्र परिवर्तन होता है। यह हवा और बादलों के आवरण को भी कम करता है, जिससे हवा अधिक कठोर हो जाती है। यही कारण है कि एक हीट वेब कई दिनों तक या काफी अधिक समय तक एक क्षेत्र में प्रवाहित होती रहती है। इस तरह से मौसम में अचानक हुए परिवर्तन से तेज लू चलने लगती है और हमारा जीवन काफ़ी प्रभावित हो जाता है। इसमें जलवायु परिवर्तन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जब लगतार तापमान बढ़ने लगता है तो इसके वजह से मौसम में काफ़ी गर्माहट आ जाती है और फिर भूमि पर हीट वेब एक नियमित घटना के रूप में शुरू हो जाती हैं। हालांकि जलवायु परिवर्तन ने इन्हें पहले की तुलना में गर्म बनाने के साथ-साथ इनकी अवधि तथा आवृत्ति वृद्धि को बढ़ाने में मदद की है।

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