चीन ने भारत के आखिरी पत्रकार को भी देश छोड़ने का आदेश दे दिया है। यह पत्रकार न्यूज एजेंसी पीटीआई का है और उसके चीन में रहने से संबंधित डॉक्यूमेंट्स को रिन्यू नहीं किया गया है।
चीन का आरोप है कि भारत में उसके जर्नलिस्ट्स से सही बर्ताव नहीं किया जाता। लिहाजा, वो भी सख्त कदम उठाने पर मजबूर है। हालांकि सोमवार को चीन के रुख में कुछ नरमी देखी गई। उसकी फॉरेन मिनिस्ट्री ने कहा- उम्मीद है, दोनों देश इस तनाव को दूर करने के लिए बीच का रास्ता निकाल लेंगे।
बहरहाल, भारत से पहले यही सलूक अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ भी किया जा चुका है। डोनाल्ड ट्रम्प जब प्रेसिडेंट थे, तब उन्होंने चीन की इन हरकतों का माकूल जवाब दिया था।
चीन का भारत पर आरोप
सोमवार को पहली बार चीन के विदेश मंत्रालय ने दोनों देशों में पत्रकारों को लेकर चल रहे तनाव पर रिएक्शन दिया। फॉरेन मिनिस्ट्री के स्पोक्सपर्सन वांग वेनबिन ने कहा- हालिया कुछ सालों में चीन के पत्रकारों के साथ भारत में सही बर्ताव नहीं किया गया। वह भेदभाव का शिकार हुए। इसके बावजूद हमें उम्मीद है कि भारत हमारे पत्रकारों को वीजा जारी करता रहेगा।
वांग ने आगे कहा- हम ये भी उम्मीद करते हैं कि भारत में हमारे जर्नलिस्ट्स के लिए जो परेशानियां पैदा की जाती हैं, उन्हें खत्म किया जाएगा। ऐसे हालात बनाए जाएंगे, जिससे दोनों देशों के पत्रकार एक-दूसरे के देश में सुकून से काम कर सकें।
आखिर मसला क्या है
दो महीने पहले तक चीन में भारत के कुल तीन पत्रकार थे। पिछले दिनों चीन सरकार ने 2 जर्नलिस्ट्स के वीजा डॉक्यूमेंट्स और बाकी जरूरी पेपर्स रिन्यू करने से इनकार कर दिया। लिहाजा, इन दोनों को भारत लौटना पड़ा।
चीन की तरफ से कहा गया कि भारत भी उसके पत्रकारों के साथ यही सलूक करता है। उसने भी दो चीनी पत्रकारों के वीजा रिन्यू नहीं किए थे। बहरहाल, चीन में जो भारत का आखिरी पत्रकार बचा था, वो न्यूज एजेंसी पीटीआई के लिए काम करता है। उसे भी इसी महीने देश लौटना होगा।
न्यूज एजेंसी ‘रॉयटर्स’ के मुताबिक दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी में अब दुनिया की सबसे बड़ी डेमोक्रेसी का कोई जर्नलिस्ट नहीं होगा। दूसरी तरफ, चीन का आरोप है कि भारत ने 2020 के बाद उसके किसी जर्नलिस्ट को वीजा इश्यू नहीं किया है, जबकि एक वक्त वहां 14 चीनी पत्रकार थे।
भारत से बातचीत की पेशकश
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग ने कहा- ये अफसोसनाक है कि भारत ने इस मसले को हल करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। हम चाहते हैं कि भारत सरकार इस मामले को म्यूचुअल रिस्पेक्ट के बेस पर हल करे। हम चाहते हैं कि बातचीत से कोई हल निकाला जा सके।
एक रिपोर्ट के मुताबिक मई में SCO की मीटिंग के लिए भारत ने चीनी पत्रकारों को टेम्परेरी वीजा जारी किए थे। इस महीने की शुरुआत में भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा था- उम्मीद है कि चीन हमारे पत्रकारों को वहां काम करने देगा। हम उनके जर्नलिस्ट्स के साथ कोई भेदभाव नहीं करते, लेकिन चीन हमारे जर्नलिस्ट्स के काम में अड़ंगे लगाता है।
चीन को सबसे दिक्कत
चीन सरकार भारत के पत्रकारों के मामले में दोहरा रवैया अपनाती है। भारत के सिर्फ तीन पत्रकारों को चीन में काम करने की मंजूरी दी जाती है, लेकिन बीजिंग चाहता है कि उसके जितने चाहे उतने पत्रकार भारत में रहें। अब भारत ने पहली बार सख्त रवैया अपना लिया है और चीन परेशान है।
वैसे भारत ही क्यों, चीन इसी तरह के मामलों में ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका से भी टकरा चुका है। डोनाल्ड ट्रम्प के दौर में अमेरिका ने चीन की मीडिया कंपनियों का स्टेटस बदलकर फॉरेन मिशन्स का कर दिया था और इनकी संख्या भी तय कर दी थी। चीन इससे बिफर गया था। चीन ने इसके जवाब में अमेरिकी मीडिया कंपनियों पर तमाम तरह की पाबंदियां लगा दी थीं।
2020 में दो ऑस्ट्रेलियाई जर्नलिस्ट्स को चीन छोड़ने पर मजबूर किया गया था। इन दोनों को तो पांच दिन कॉन्स्यूलेट में गुजारने पड़े थे। चीन का आरोप था कि ऑस्ट्रेलिया में उसकी मीडिया कंपनियों पर छापे मारे जा रहे हैं और उनकी प्रॉपर्टी जब्त की जा रही है।