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झारखण्ड के 7 ऐसा प्रसिद्ध मंदिर जहाँ एक बार जरूर दर्शन करने जाएं, सारी मनोकामनाएं होंगी पूरी

झारखंड हमेशा अपने यहाँ की हरयाली, माइन्स और अपनी अनूठी संस्कृति के चलते पुरे देश भर में जान जाता है। यहाँ कई सरे सुन्दर पहाड़, झरने और डेम्स मौजूद है। हर साल लाखो के तादाद में लोग झारखंड में घूमे और यहाँ के प्रकृति का लउकत उठाने आते है। लेकिन ऐसे बहुत काम हे लोग होंगे जो यहाँ के प्रशिद मंदिरो के बारे में जानते होंगे और कवी घुमा होगा। आइये आज आपको यहाँ के 7 प्रशिद मंदिरो के बारे में बताते है।


बाबा वैद्यनाथ धाम (देवघर)


वैद्यनाथ मन्दिर भारतवर्ष के झारखण्ड राज्य के देवघर नामक स्‍थान में अवस्थित एक प्रसिद्ध तीर्थस्थलों और 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है।इसे भगवान शिव का सबसे पवित्र स्थल माना जाता है। शिव का एक नाम ‘वैद्यनाथ भी है, इस कारण लोग इसे ‘वैद्यनाथ धाम’ भी कहते हैं। ये एक ज्योतिर्लिंग है, जो शक्तिपीठ भी है। मान्यता है कि इसकी स्थापना स्वंय भगवान विष्णु ने की थी. इस मंदिर में आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं इसलिए मंदिर में स्थापित शिवलिंग को कामना लिंग के नाम से भी जाना जाता है।


यह एक सिद्धपीठ है। इस कारण इस लिंग को “कामना लिंग” भी कहा जाता हैं।देवघर में शिव का अत्यन्त पवित्र और भव्य मन्दिर स्थित है। हर वर्ष सावन के महीने में स्रावण मेला लगता है जिसमें लाखों श्रद्धालु “बोल-बम!” “बोल-बम!” का जयकारा लगाते हुए बाबा भोलेनाथ के दर्शन करने आते हैं। ये सभी श्रद्धालु अजगैबीनाथ मंदिर , सुल्तानगंज से पवित्र गंगा का जल लेकर लगभग सौ किलोमीटर की अत्यन्त कठिन पैदल यात्रा कर बाबा को जल चढाते हैं।

नौलखा मंदिर (देवघर)


बाबा वैद्यनाथ की नगरी में अपनी सुंदरता एवं वास्तुकला का अनूठा संगम नौलखा मंदिर देवघर के सबसे प्रसिद्ध धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थलों में से एक है।भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप को समर्पित यह मंदिर नौ-लाख रुपये की लागत से बना अतः यह मंदिर जनमानस के बीच नौलखा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।मंदिर में विग्रह स्वरूप भगवान श्री कृष्ण बाल रूप में विराजमान हैं, साथ ही साथ संत बालानंद ब्रह्मचारी जी की एक मूर्ति भी स्थापित है। अतः मंदिर का वास्तविक नाम गुरु और गोविंद के स्वरूप को समर्पित जुगल मंदिर है।


नौलखा मंदिर की ऊंचाई 146 फीट है। मंदिर झारखंड के देवघर शहर से सिर्फ 2 किमी दूर स्थित है तथा अपनी स्थापत्य कला की सुंदरता के लिए भक्तों एवं पर्यटकों दोनों के ही बीच अत्यधिक प्रसिद्ध है। मंदिर की वास्तुकला कोलकाता में बेलूर मठ अर्थात रामकृष्ण मिशन के मुख्यालय से प्रेरित जान पड़ती है।


देउड़ी मंदिर (रांची)


देउड़ी मंदिर या देउड़ी दिरि भारत के झारखंड राज्य के रांची जिले में तामाड़ के दिउरी गांव में स्थित एक धार्मिक स्थल है, जहां आदिवासी और हिंदू संस्कृति का संगम देखा जा सकता है।इस प्राचीन मंदिर का मुख्य आकर्षण मां देवी दुर्गा (काली) की 16 भुजाओं वाली 700 साल पुरानी मूर्ति है। इसे आदिवासी भूमिज-मुंडा समुदाय में माता देवरी दिरि के नाम से जाना जाता है।


किंवदंतियों के अनुसार, जिसने भी इस मंदिर की संरचना को बदलने की कोशिश की है, उसे देवताओं के क्रोध का सामना करना पड़ा है और परिणाम भुगतना पड़ा है।देउड़ी मंदिर को एकमात्र ऐसा मंदिर भी माना जाता है जहां छह दिन आदिवासी पुजारी, जिन्हें पाहन के नाम से जाना जाता है, अनुष्ठान करते हैं और एक दिन ब्राह्मण पुजारियों पूजा करते हैं, जिन्हें मुख्य रूप से पांडा के रूप में जाना जाता है।


रजरप्पा (रामगढ़)


रजरप्पा भारत के झारखण्ड राज्य के रामगढ़ ज़िले के चितरपुर सामुदायिक विकास खंड में स्थित एक जलप्रपात और हिन्दू तीर्थस्थल है। यह दामोदर नदी में भेड़ा नदी (भैरवी नदी) का संगमस्थल है। यहाँ पर स्थित माँ छिन्नमस्तिका मन्दिर बहुत प्रसिद्ध है।यहाँ का झरना एवं माँ छिन्नमास्तिका का मंदिर प्रसिद्ध है।


इस मंदिर को ‘प्रचंडचंडिके’ के रूप से भी जाना जाता है।यहाँ कई मंदिर हैं जिनमें ‘अष्टामंत्रिका’ और ‘दक्षिण काली’ प्रमुख हैं।पुराणों में रजरप्पा मंदिर का उल्लेख शक्तिपीठ के रूप में मिलता है।मंदिर के निर्माण काल के बारे में पुरातात्विक विशेषज्ञों में मतभेद है। कई विशेषज्ञ का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण 6000 साल पहले हुआ था और कई इसे महाभारतकालीन का मंदिर बताते हैं।


शिखरजी (पारसनाथ)


शिखरजी या श्री शिखरजी भारत के झारखंड राज्य के गिरिडीह ज़िले में छोटा नागपुर पठार पर स्थित एक पहाड़ी है जो विश्व का सबसे महत्वपूर्ण जैन तीर्थ स्थल भी है। ‘श्री सम्मेत् शिखर जी’ के रूप में चर्चित इस पुण्य क्षेत्र में जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों (सर्वोच्च जैन गुरुओं) ने मोक्ष की प्राप्ति की। यहीं 23 वें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी निर्वाण प्राप्त किया था। माना जाता है कि 24 में से 20 जैन तीर्थंकरों ने यहां पर मोक्ष प्राप्त किया था। 1,350 मीटर (4,430 फ़ुट) ऊँचा यह पहाड़ झारखंड का सबसे ऊंचा स्थान भी है।यहाँ हर साल लाखों जैन धर्मावलंबियों आते है, साथ-साथ अन्य पर्यटक भी पारसनाथ पर्वत की वंदना करना जरूरी समझते हैं।


भुवनेश्वरी मंदिर (जमशेदपुर)


ब्रह्मांड की देवी, देवी भुवनेश्वरी को समर्पित, भव्य भुवनेश्वरी मंदिर, भुवनेश्वरी पहाड़ी (लगभग 500 फीट) के ऊपर स्थित है। जमशेदपुर का सबसे ऊँचा स्थान, यह शहर के शानदार दृश्य प्रस्तुत करता है। यह मंदिर वास्तुकला की विशिष्ट दक्षिण भारतीय शैली में बनाया गया है और इसमें 32 फीट ऊंचा गर्भगृह है जिसमें देवी की एक भव्य मूर्ति है।


मंदिर के भक्तों और पुजारियों के बीच एक लोकप्रिय धारणा है कि मंदिर के आठ स्तंभों में प्रत्येक पीठासीन देवी के विभिन्न अवतारों का घर है। इसका निर्माण 1978 में एक तमिल पुजारी, स्वामी रंगा राजन द्वारा किया गया था, और यह टाटा मोटर्स कॉलोनी में स्थित है। इसे आमतौर पर टेल्को भुवनेश्वरी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।


पहाड़ी मंदिर (रांची)


पहाड़ी मंदिर झारखंड की राजधानी रांची में पहाड़ी की चोटी पर स्थित एक मंदिर है। यह मंदिर शिव को समर्पित है। यह मंदिर समुद्र तल से 2140 फीट और जमीन से 350 फीट ऊपर स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए 468 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर से पूरा रांची शहर दिखाई देता है। पहाड़ी मंदिर में भगवान शिव की पूजा लिंग रूप में की जाती है। शिवरात्रि और सावन के महीने में यहां शिवभक्तों की काफी भीड़ होती है।
पहाड़ पर स्थित भगवान शिव का यह मंदिर देश की आजादी से पहले अंग्रेजों के कब्जे में था और वे स्वतंत्रता सेनानियों को यहीं फांसी देते थे। आजादी के बाद से इस मंदिर पर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के साथ धार्मिक झंडों के साथ राष्ट्रीय ध्वज भी फहराया जाता है । यह देश का पहला मंदिर है जहां तिरंगा फहराया जाता है।

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