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बिहार में जातीय जनगणना के आंकड़े पेश होने के बाद हलचल तेज

बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आंकड़े पेश करते हुए शुभ मंगल कार्य की शुरुआत कर सभी वर्गों के लिए आर्थिक स्थिति की जानकारी जुटाकर विकास के लिए आगे की कार्यवाही करने का भरोसा दिया है।जातीय जनगणना की इस विचारधारा से सियासी हलचल तेज हो गई है।बिहार में विपक्ष जोर लगा रहा है।बिहार में जातिगत आंकड़ो से देश मे इंडिया गठबंधन ने सबसे बड़ा दांव खेला है।

बिहार का मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को हाईकोर्ट जाने की सलाह दी। हाईकोर्ट ने फैसला दिया कि जातिगत सर्वे वैध है और पूरी तरह कानूनी है। बिहार सरकार और गठबंधन खेल बिगाड़ने का पासा फेंका है। विपक्षी दलों का कहना है कि जातिगत सर्वे से योजनाओं का सीधा लाभ मिल सकेगा।लेकिन यह पहलू राजनैतिक वोटबैंक का भी है। सबसे बड़ी आबादी पिछड़ी है। जबकि कुल आबादी में 52 फीसद पिछड़ी जाति है।वी पी सिंह की सरकार ने मंडल आयोग लागू किया।देश मे बहुत बवाल हुआ। नेहरू के समय कालेकर आयोग बना,लेकिन फिर भी पिछड़ा वर्ग ठगा महसूस करने लगा।इंडिया गठबंधन केवल लोगो को भ्रमित कर वोटबैंक की राजनीति करना चाहता है। पहले की सरकारों ने इन गरीब तबक़े के लोगों की कायापलट क्यो नही की गई। आज भी लालच बताकर वोट खींचने के बाद इन गरीबो को उनके हवाले पर छोड़ दिया जाएगा।

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कर्नाटक चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने एक नारा दिया था।जितनी आबादी उतना हक है।ओबीसी को ताकत देने वाली कांग्रेस क्या सचमुच गरीब हितेषी है?भूतकाल टटोलने से पता चल जाएगा।राम मनोहर लोहिया नारा देते थे पिछड़े वर्ग की हिस्सेदारी 60 फीसदी होनी चाहिए।जगदेव प्रसाद की विचारधारा थी कि 90 फीसदी शोषित वर्ग है। कांशीराम का नारा था, जिसकी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी। ये सब राजनीति फील्ड में जनता के साथ बने रहने के नारे थे।आज भी गरीब गरीब है। दो जून की रोटी के लिए तरस रहे है।जबकि नेतागण मौज में है। बिहार में जातीय जनगणना के आंकड़े और पुरानी पेंशन योजना का मुद्दा उठाने की रणनीति भले इंडिया गठबन्धन को सफलता कोसो दूर नजर आ रही है।लेकिन कांग्रेस खेल बिगड़ने की कोशिश में है। परंतु यह मुश्किल डगर है।

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कांतिलाल मांडोत

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