वैज्ञानिकों का उत्साहवर्धन करने के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेश यात्रा से सीधे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) पहुंचे। यहां उन्होंने चंद्रयान–3 की उपलब्धि पर हर्ष व्यक्त किया है। इस अवसर पर उनके चेहरे पर गजब का आत्मविश्वास दिखाई दे रहा था। मानो वे भारत की इस सफलता का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। मानो चंद्रयान–2 की आंशिक विफलता के बाद उन्होंने पूर्ण सफलता का संकल्प ले रखा हो। यह सच भी है। इसरो के वैज्ञानिकों ने खुलकर इस बात को कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें चंद्रयान सहित अन्य परियोजनाओं के लिए प्रोत्साहित किया है। उनके जैसा नेतृत्व मिलना कठिन है। उनके कारण से वैज्ञानिक क्षेत्र को एक संबल मिला है। हम सबको याद है कि पिछली बार रोवर की सफल लैंडिंग नहीं होने पर जब वैज्ञानिक निराश हो रहे थे तब प्रधानमंत्री मोदी से उन्हें गले लगाकर संबल दिया और फिर से तैयारी करने को कहा। हमें वह दौर भी याद है जब नांबी नारायण जैसे महान वैज्ञानिक को फंसाने के लिए षड्यंत्र किया गया। उनको अनेक प्रकार से प्रताड़ित किया गया। दोनों समय का यही फर्क है। बहरहाल, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के युवा वैज्ञानिकों को एक बड़ा काम सौंपा है। उन्होंने युवा वैज्ञानिकों का आह्वान किया है कि वे आगे आएं और पुरानी खगोलीय गणनाओं को वैज्ञानिक तौर पर साबित करें। भारत के पास विज्ञान के ज्ञान का खजाना है। वह गुलामी में छिप गया था उसे अब खंगालना है। प्रधानमंत्री के इस आह्वान को युवा वैज्ञानिकों को स्वीकार करना चाहिए। भारत की ज्ञान–परंपरा में विज्ञान का खजाना छिपा हुआ है। वेदों से लेकर अन्य ग्रंथों में विज्ञान सूत्र रूप में मिलता है। भारत में विज्ञान की परंपरा कितनी उज्ज्वल और समृद्ध थी इस बात को समझने के लिए आज अनेक पुस्तकें उपलब्ध हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक सुरेश सोनी ने अपनी पुस्तक ‘भारत में विज्ञान की उज्ज्वल’ में बहुत सरलता से ज्ञान के इस खजाने की झलक दिखाई है। इसके अलावा प्रसिद्ध गांधीवादी एवं इतिहासकार हुए धर्मपाल ने भी अपनी पुस्तकों में इस पर प्रकाश डाला है। भारत की इस ज्ञान–परंपरा को अनेक लोग खारिज कर देते हैं। वे हमसे अपेक्षा करते हैं कि हम उसे वैज्ञानिक कसौटी पर कसकर सिद्ध करें। परंतु विडंबना देखिए कि वे सब बिना किसी शोध एवं अध्ययन के ही भारत की महान विज्ञान परंपरा को खारिज कर देते हैं। खैर, अब अवसर आ गया है कि भारतीय ज्ञान परंपरा को आधुनिक वैज्ञानिक कसौटी कसें और उसे सिद्ध करें। हमारे सामने यह भी तथ्य है कि अनेक खोजों ने भारतीय विज्ञान की पुष्टि की है। ऐसे में यदि हम लक्ष्य बनाकर इस काम में लगते हैं तो दुनिया को संदेश दे सकते हैं कि विज्ञान भारत के डीएनए में है। एक कालखंड आया था जब हम विज्ञान से दूर हुए लेकिन वैज्ञानिकता हमारे भीतर से खत्म नहीं हुई। इसलिए आज भी हम पुनः विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी देश बन गए हैं। इसके साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने एक और आग्रह किया है– “हमारी युवा पीढ़ी को आज की आधुनिक तकनीक के नए आयाम देने हैं। आसमान से लेकर समंदर तक करने के लिए बहुत कुछ है। नई पीढ़ी के कंप्यूटर बनाइए”। बहरहाल, आज की युवा पीढ़ी यदि प्रधानमंत्री मोदी के ये दोनों आह्वान स्वीकार कर लेती है, तो आनेवाले भारत की तस्वीर कुछ और होगी। अपने ग्रंथों में वर्णित उच्च कोटि के विज्ञान को हम फिर से जन कल्याण के लिए साकार कर सकेंगे।
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