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हर अवसर पर भारत की बुराई क्यों?

जब नईदिल्ली में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन में समूची दुनिया भारत का सामर्थ्य को देख रही थी और विश्व के दिग्गज नेता भारत की प्रशंसा कर रहे थे, उसी समय कांग्रेस के मुख्य नेता राहुल गांधी बेल्जियम से भारत की तथाकथित कमियां या अव्यवस्थाएं गिना रहे थे। मान लिया कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी को भारत में कमियां दिख रही होंगी लेकिन उनके लिए भारत को कोसने का यह उचित समय था क्या? राहुल गांधी की तथाकथित ‘मोहब्बत की दुकान’ पर दुनिया को भारत के संदर्भ में कुछ अच्छा दिखाने के लिए नहीं था, तब क्या अच्छा नहीं होता कि राहुल गांधी थोड़ा ठहर कर अपनी नकारात्मकता को बेचते? कांग्रेस के नेताओं के इसी प्रकार के आचरण ने उसके प्रति जनता में एक अविश्वास एवं नकारात्मकता का भाव पैदा किया है। यह भी देखने की बात है कि राहुल गांधी का अनुकरण करते हुए दूसरी-तीसरी एवं आखिरी पंक्ति के नेताओं ने भी जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान भाँति-भाँति के कुतर्कों के आधार पर नकारात्मक वातावरण बनाने का प्रयास किया। सोने-चाँदी की थालियां में भोजन परोसे जाने की अफवाह को लेकर ही कांग्रेस के दिग्गज नेता हो-हल्ला मचाने लगे। जयराम रमेश जैसे वरिष्ठ नेता इस महत्वपूर्ण आयोजन में हुए व्यय पर ही आपत्ति जताने लगे हैं। कांग्रेस को इस बात की भी चिंता हो रही है कि प्रधानमंत्री मोदी ने प्रेसवार्ता को संबोधित क्यों नहीं किया? देश की राजधानी की सजावट के लिए किए गए प्रयत्न भी उन्हें चुभने लगे। कांग्रेसी नेताओं की तरह ही उसके समर्थक पत्रकारों एवं बुद्धिजीवियों के बीच भी एक होड़ लगी थी कि किस प्रकार भारत की छवि को दुनिया के सामने नकारात्मक ढंग से प्रस्तुत किया जाए। परंतु, इन सब ताकतों के प्रयत्न विफल रहे। दुनिया ने भारत के नेतृत्व की भूरि-भूरि प्रशंसा भी की और भविष्य के भारत के प्रति अपनी आशाएं भी व्यक्त कीं। वहीं, इस अवसर पर राहुल गांधी कह रहे थे कि “भारत में बड़े पैमाने पर लोकतांत्रिक संस्थानों पर हमला हो रहा है। देश के संविधान को बदलने की कोशिश हो रही है। अल्पसंख्यकों और दलितों पर हमले हो रहे हैं। सरकार दहशत में है और प्रधानमंत्री मुख्य मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश करते हैं”। राहुल गांधी यही बातें बार-बार दोहराते रहते हैं। सोचने वाली बात यह है कि उनकी ‘मोहब्बत की दुकान’ पर भारत के संदर्भ कुछ सकारात्मक बातें हैं या नहीं? कई बार यह समझना भी मुश्किल हो जाता है कि उनकी दुकान पर सच में मोहब्बत मिलती है या फिर केवल नफरत ही है? पिछली विदेश यात्राओं के दौरान भी उन्होंने ऐसे बयान दिए थे, जिन पर भारत में खूब विरोध हुआ था। चूँकि इस बार देश और दुनिया भारत के गौरवगान में आनंदित थी, इसलिए राहुल गांधी की नकारात्मक बातों पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। राहुल गांधी की विदेश यात्राओं में उनके आसपास दिखनेवाले एवं आयोजकों को लेकर भी प्रश्न उठते हैं। इस बार भी पेरिस में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने क्रिस्टोफ जाफ्रेलॉट के साथ मंच साझा किया। इस फ्रेंच इंडोलोजिस्ट की पहचान ‘हिंदुत्व के कट्टर विरोधी’ के नाते है। क्रिस्टोफ जाफ्रेलॉट विभिन्न मंचों और माध्यमों से लगातार हिन्दुत्व और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आलोचना करता है। भारत की नकारात्मक छवि बनानेवाली पुस्तकें भी उन्होंने लिखी हैं। यह प्रश्न स्वाभाविक ही है कि विश्व में भारत की छवि बिगाड़ने पर तुले क्रिस्तोफ जाफ्रेलॉट के साथ दिखकर कांग्रेस के नेता राहुल गांधी क्या संदेश देना चाह रहे हैं? बहरहाल, कांग्रेस और राहुल गांधी को समझना होगा कि भारत के संबंध में विदेशी धरती से नकारात्मक विचार व्यक्त करके वे अपना ही नुकसान कर रहे हैं। भारत में इस प्रकार की मानसिकता को स्वीकार्यता नहीं है।

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