पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव में हुई हिंसा को लेकर एक ही राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी है, जिसकी ओर से मुखर होकर आवाज उठाई है। बंगाल में ‘लोकतंत्र की हत्या’ पर वे सभी दल बेशर्म चुप्पी साधकर बैठ गए हैं, जो कथित तौर पर ‘लोकतंत्र की रक्षा’ के लिए राजनीतिक मजमा जुटाते हैं। पिछले दिनों पटना में एकत्र हुए अब आने वाले समय में बैंगलुरू में एकत्र होंगे। बाकी सब दलों को छोड़ भी दें, लेकिन कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों की चुप्पी तो समझ से परे है। बंगाल में हो रही राजनीतिक हिंसा में केवल भाजपा के समर्थक एवं कार्यकर्ता ही नहीं मारे गए हैं अपितु कांग्रेस और कम्युनिस्ट दलों के कार्यकर्ताओं की भी नृशंस हत्या हुई है। अपने कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट और उनकी हत्या के मामलों में क्या यह चुप्पी सिर्फ इसलिए है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को हराने के लिए तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन किया हुआ है? यह तो वही बात हुई कि बिगाड़ के डर से ईमान की बात कहने से परहेज कर लिया गया है। जो राजनीतिक दल अपने ही कार्यकर्ताओं के लिए आवाज नहीं उठा पा रहे, वे क्या लोकतंत्र और संविधान की रक्षा करेंगे। ऐसा लगता है कि सत्ता पाने के लिए राजनीतिक दल किसी भी स्तर तक जा सकते हैं। मानहानि के मामले में राहुल गांधी को सजा होती है, तब समूची कांग्रेस लगभग सभी प्रदेशों में ‘प्रदर्शन’ करती है लेकिन अपने कार्यकर्ताओं के साथ हो रही हिंसा पर एक राज्य में भी मुंह नहीं खोल पा रही है। विडम्बना देखिए कि एक ओर कांग्रेस के कार्यकर्ता बंगाल के रणक्षेत्र में खेत रहे हैं, उसी समय दूसरी ओर समूची कांग्रेस राहुल गांधी को संसद से अयोग्य किए जानेपर विभिन्न राज्यों में ‘सत्याग्रह’ कर रही है। जबकि राहुल गांधी के मामले में गुजरात के उच्च न्यायालय ने भी सजा कम करने या रोकने से इनकार कर दिया है। राजनीतिक क्षेत्र में ऐसी तस्वीरें कम ही देखने को मिलती हैं। बुधवार को सत्याग्रह पर बैठे कांग्रेस नेता अपने वक्तव्यों में यही दोहरा रहे थे कि मोदी सरकार ने संवैधानिक संस्थाओं पर कब्जा कर लिया और विपक्ष की आवाज को दबाने के प्रयास किए जा रहे हैं। जबकि इसी वातावरण में कांग्रेस हिमाचल से लेकर कर्नाटक तक में चुनाव जीत रहे हैं। खुलकर अपने विचार रख पा रहे हैं। वहीं, जिस पश्चिम बंगाल में सभी प्रकार की लोकतांत्रिक मर्यादाओं को कुचला जा रहा है, वहाँ की स्थिति पर सत्याग्रह कर रहे कांग्रेसियों ने कोई आक्रोश व्यक्त नहीं किया है। लोकतंत्र, जनता और अपने कार्यकर्ताओं की अनदेखी का ही परिणाम है कि पश्चिम बंगाल से कांग्रेस का सफाया हो गया है। पंचायत चुनाव में भी कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक है। जबकि विकराल हिंसा के बाद भी पश्चिम बंगाल की जनता भाजपा के साथ आती दिख रही है। इस बार के पंचायत चुनाव में भाजपा के दोगुने प्रत्याशी जीतकर आए हैं। हिंसा के बल पर भले की तृणमूल कांग्रेस पहले स्थान पर रही हो लेकिन वास्तविक जीत तो भाजपा के झोले में ही आई है। दरअसल, पश्चिम बंगाल की जनता देख रही है कि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी भाजपा उनके साथ खड़ी है और लोकतंत्र के लिए लड़ रही है।
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