अयोध्या धाम में आकार ले रहे भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर में रामलला के नये विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा उत्सव का निमंत्रण ठुकरा चुकी कांग्रेस को अब राम नाम से भी दिक्कत हो रही है। राहुल गांधी की कथित न्याय यात्रा के शुभारंभ अवसर पर अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने ऐसी बात कही, जिससे यही ध्वनित होता है कि उन्हें राम का नाम लेने से भी दिक्कत है। राम का नाम जपनेवाले लोग उन्हें ढोंगी दिखायी देते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपने वक्तव्य में कहा कि “मोदी जी समंदर में सैर करने जाते हैं, राम-राम जपते हैं लेकिन मणिपुर नहीं आते। उनके मुंह में राम और बगल में छुरी है”। यह प्रश्न उठाना विपक्ष का अधिकार है कि प्रधानमंत्री मणिपुर क्यों नहीं गए? लेकिन, यह प्रश्न उठाते समय जबरन भगवान राम को बीच में लाने का क्या तुक है? “राम–राम जपते हैं लेकिन मणिपुर नहीं आते”। इस वाक्यांश से क्या अर्थ निकाला जाए? क्या प्रधानमंत्री मोदी को राम–राम जपना छोड़ देना चाहिए? यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम के नाम का जाप कर रहे हैं तो इससे कांग्रेस को दिक्कत क्यों होनी चाहिए? उल्लेखनीय है कि एक ओर कांग्रेस है, जिसने ‘राम के निमंत्रण’ को ठुकराया है। वहीं, दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं जिन्होंने रामलला की प्राण प्रतिष्ठा विधि को संपन्न करने के लिए 11 दिन का विशेष अनुष्ठान प्रारंभ किया। प्रधानमंत्री जो अनुष्ठान कर रहे हैं, उसके नियम–आचरण बहुत कठिन है। धर्म का ढोंग करनेवालों के लिए इस अनुष्ठान का विधिपूर्वक पालन करना कठिन ही नहीं, अपितु असंभव है। जो लोग चुनावी लाभ के लिए अचानक से माथे पर चंदन लपेटकर मंदिर–मंदिर परिक्रमा करते हैं, उनको यह बात समझ नहीं आएगी। कांग्रेस जिस प्रकार के भ्रम के जाल में फंसी हैं, वहां से उसको यह कतई समझ नहीं आएगी कि ‘मुंह में राम और बगल में छुरी’ कहावत सही अर्थों में किन नेताओं और राजनीतिक दल पर चरितार्थ होती है। देश की जनता को यह बताने की आवश्यकता नहीं कि बनावटी ढंग से राम का नाम कौन लेता और कौन सही अर्थों में राम के प्रति समर्पित है। देश की जनता के पास इतना विवेक है। देश जनता है कि किसने राम मंदिर के लिए संघर्ष और बलिदान दिया है, वहीं कौन अभी तक उपहास उड़ाते हुए पूछता था– “मंदिर वहीं बनाओगे लेकिन तारीख नहीं बताओगे”। देश की जनता को यह भी भली प्रकार मालूम है कि किसने उनके राम को न्यायालय में काल्पनिक सिद्ध करने के लिए जोर लगाया था। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बयान का सूक्ष्म विश्लेषण किया जाए तो ‘राम–राम जपने’ से उनका अभिप्राय प्रधानमंत्री मोदी द्वारा किए जा रहे विशेष अनुष्ठान से है, जो वे रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के लिए कर रहे हैं। राम का न्योता ठुकराने के कांग्रेस के निर्णय का चहुंओर विरोध हो रहा है। कांग्रेस के भीतर से भी इसको लेकर खुलकर विरोध प्रारंभ हो गया है। राम विरोधी कहे जा रहे इस निर्णय के बाद से कांग्रेस के कई नेताओं ने पार्टी से मुक्ति पा ली है। लेकिन इस सबके बाद भी कांग्रेस के बड़े नेता सबक नहीं ले रहे हैं। वे अब भी उसी पगडंडी पर आगे बढ़ रहे हैं जो राम से दूर ले जाती है। भले ही कांग्रेस लोकसभा चुनाव से पूर्व अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने के लिए न्याय यात्रा निकालने का उपक्रम कर रही है और जनता के बीच जा रही है लेकिन वास्तविकता यही है कि मौजूदा समय में कांग्रेस जनाकांक्षाओं को समझ नहीं पा रही है। कांग्रेस का समूचा आचरण जनाकांक्षाओं के विरुद्ध दिखाई दे रहा है। कांग्रेस में इस समय इस प्रकार का नकारात्मक वातावरण बन गया है कि जाने–अनजाने उसके नेता इस प्रकार की भाषा–शैली, मुहावरों और उदाहरणों का उपयोग कर देते हैं जो हिन्दूहित के विरुद्ध दिखाई पड़ती है। कांग्रेस के नेताओं को चाहिए कि वे सही अर्थों में राम–राम नहीं जप सकते तो कम से कम राम के नाम पर मौन ही रहें। अन्यथा कांग्रेस स्वयं का राजनीतिक नुकसान तो कर ही रही है, अपने गठबंधन के राजनीतिक दलों को भी साथ ले डूबेगी। राम का नाम जो भी जपे, उसका स्वागत हो। राम जाप करनेवाले का तिरस्कार करना कहीं से उचित नहीं। वर्तमान समय में देश के नागरिक कतई यह स्वीकार नहीं करेंगे कि राम–राम के प्रति श्रद्धा व्यक्त करनेवालों पर कोई अपमानजनक टिप्पणी करे।
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