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राम के आमंत्रण को इनकार क्यों

अयोध्या धाम में बन रहे राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा उत्सव के लिए जोर-शोर से तैयारियां चल रही है। उत्सव के लिए श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास की ओर से राम मंदिर आंदोलन में योगदान देने वाले रामभक्तों के साथ ही देश के ख्यातनाम एवं प्रमुख लोगों को आमंत्रण दिया जा रहा है। इनमें राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के प्रमुख नेताओं के नाम भी शामिल है। न्यास और उसके कामकाज को देखने वाले साधु-संन्यासियों एवं महानुभावों की उदारता ही है कि उन्होंने उन लोगों को भी आमंत्रित किया, जिन्होंने कदम-कदम पर श्रीराम मंदिर का विरोध किया। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी, वर्तमान अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी को भी न्यौता दिया गया है लेकिन अब तक उन्होंने उत्सव में शामिल होने की अपनी सहमति नहीं दी है। हालांकि कांग्रेस की ओर से निमंत्रण के लिए आभार प्रदर्शित किया गया है। उल्लेखनीय है कि राम मंदिर को लेकर भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को ताने देने में कांग्रेस के नेता सबसे आगे दिखायी देते थे। कांग्रेसियों की ओर से यहाँ तक कहा जाता था कि ‘मंदिर वहीं बनाएंगे लेकिन तारीख नहीं बताएंगे’। यह ईश्वर की ही माया है कि कांग्रेसियों को श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा उत्सव की तिथि सहित आमंत्रण प्राप्त हो गया। कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं को भी उत्सव का आमंत्रण दिया गया है लेकिन उनकी ओर से स्पष्ट मना कर दिया गया है। सीपीआई(एम) के महासचिव सीताराम येचुरी आमंत्रण को ठुकराते हुए कहा है कि भाजपा और आरएसएस ने धार्मिक आयोजन का राजनीतिकरण कर दिया है। धर्म एक निजी पसंद है, जिसे राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। इसी तरह पोलित ब्यूरो की सदस्य बृंदा करात ने कहा कि उनकी पार्टी राम मंदिर के उद्घाटन में शामिल नहीं होगी, क्योंकि यह धर्म का राजनीतिकरण करने के लिए किया जा रहा कार्यक्रम है। भाजपा राजनीति के लिए धर्म का इस्तेमाल कर रही है, जो गलत है। कम्युनिस्टों की यह मानसिकता बताती है कि उन्हें भारत में हिन्दू धर्म से कितनी चिढ़ है। भगवान राम और हिन्दू धर्म से दूरी बनाना, कम्युनिस्टों का पुराना इतिहास है। श्रीराम मंदिर जन्मभूमि के लिए चले आंदोलन को विवादित स्वरूप देने और इस प्रकरण को बिगाड़ने में भी कम्युनिस्टों की बड़ी भूमिका रही है। कम्युनिस्टों ने राम मंदिर आंदोलन के समय हिन्दू और मुस्लिम समुदाय को लड़ाने एवं एक-दूसरे के विरुद्ध खड़ा करने में भी सक्रिय हिस्सेदारी निभायी थी। खुदाई के बाद मिले प्रमाणों के बाद ज्यादातर मुस्लिम इस बात के लिए सहमत हो गए थे कि यह स्थान राम मंदिर के लिए हिन्दुओं को सौंप देना चाहिए। लेकिन कम्युनिस्ट खेमे के तथाकथित इतिहासकारों ने इस प्रकरण में कूदकर कट्‌टरपंथी मुस्लिम वर्ग को भड़काने का काम किया। साक्ष्यों को नकारकर झूठे तथ्य रखे गए। इस संदर्भ में प्रख्यात पुरातात्विद केके मोहम्मद ने कई बार कहा है कि कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने लोगों को बरगलाया, जिससे मामला पेचीदा होता गया। इसलिए यदि कम्युनिस्ट प्राण प्रतिष्ठा उत्सव में न भी आएं तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वास्तव में कम्युनिस्टों को अपने गिरेबां में झांककर देखना चाहिए कि धर्म की राजनीति किसने अधिक की है। यही कम्युनिस्ट अन्य मत-संप्रदायों के धार्मिक आयोजनों में शामिल होते हैं, तब धर्म की राजनीति नहीं होती। केवल हिन्दू धर्म से जुड़े आनंद के प्रसंग में शामिल होने से धर्म की राजनीति होती है। इसी दोहरे आचरण ने कम्युनिस्टों को भारत में अप्रासंगिक कर दिया है। दरअसल, जो भी राजनीतिक दल या नेता श्रीराम मंदिर में आयोजित होने जा रहे प्राण प्रतिष्ठा समारोह के आमंत्रण को ठुकरा रहा है, वह वास्तव में अपने विशेष संप्रदाय के वोटबैंक की खुशामद करना चाहता है। राम मंदिर के आयोजन में शामिल होकर ये नेता अपने वोटबैंक को नाराज नहीं करना चाहते हैं। हिन्दू वर्ग की अनदेखी और अन्य का तुष्टीकरण, इनकी नीति बन गई है।

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