देश में लंबे समय से माँग हो रही थी कि न्यायालय के निर्णय भारतीय भाषाओं में आने चाहिए। भारत में बहुसंख्यक जनसंख्या ऐसी है, जो अपनी मातृभाषा को भली प्रकार समझती है, अंग्रेजी नहीं। परंतु न्यायालय की मुख्य भाषा अंग्रेजी ही है। न्यायालय की कार्यवाही से लेकर निर्णय तक, सब कामकाज अंग्रेजी में होता है। इस कारण आम आदमी यह समझ ही नहीं पाता कि उसके प्रकरण में चल क्या रहा है। लोग अपने प्रकरण को समझ सकें और न्यायालय जो निर्णय सुनाए, उसको जान सकें, इसके लिए भारतीय भाषाओं में निर्णय देने की व्यवस्था बनाने की दिशा में कुछ ठोस पहल होने के संकेत मिले हैं। भारत के मुख्य न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने एक कार्यक्रम में इस बात के संकेत दिए हैं कि उच्चतम न्यायालय के निर्णयों को क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध कराने की दिशा में ठोस प्रयास किए जा रहे हैं। जब देश के मुख्य न्यायमूर्ति ने यह कह दिया है, तब इस बात पर भरोसा किया जा सकता है कि जल्द ही देशवासियों को बड़ी सौगात मिल सकती है। उल्लेखनीय है कि तकनीक के इस दौर में यह बहुत कठिन काम भी नहीं है। जब दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियां भारतीय ग्राहकों से संवाद करने के लिए और उन्हें आकर्षित करने के लिए तकनीक का उपयोग करके हमारी मातृभाषा को बढ़ावा दे रही हैं, तब भारत की संवैधानिक व्यवस्थाओं की तो यह पहली जिम्मेदारी बनती है कि भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता दी जाए और उन्हें मजबूत किया जाए। मुख्य न्यायमूर्ति ने इस ओर संकेत भी किया है कि न्यायालय के निर्णय को विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध कराने के लिए तकनीक का सहयोग भी लिया जा सकता है। मुख्य न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का यह वक्तव्य बहुत ही महत्वपूर्ण है। यदि उनके कार्यकाल में यह संभव हुआ तो उनका नाम इतिहास में सदैव के लिए दर्ज हो जाएगा। सही मायने में नागरिकों को बहुत बड़ी सहूलियत देनेवाली ऐसी किसी भी पहल की खुलेदिल से प्रशंसा करनी चाहिए। हमें यह समझना होगा कि यदि देश की सर्वोच्च न्यायपालिका जब यह पहल करेगी तब विभिन्न राज्यों में स्थापित उच्च न्यायालय एवं सत्र न्यायालय भी उसका अनुसरण करेंगे। याद रखें कि अपनी भाषा में सामग्री उपलब्ध कराना कोई कठिन काम नहीं है। उल्लेखनीय है कि जब अता तुर्क कमाल पाशा तुर्की का बादशाह बना तब उसने अरबी एवं रोपन भाषा को हटाकर तुर्की भाषा को प्रचलन में लेकर आए। उस समय वहाँ के प्रशासनिक प्रमुखों ने इस निर्णय को अव्यवहारिक बताया था और ऐसा करने में असमर्थता जताई थी, लेकर अता तुर्क ने साबित किया कि अपनी मातृभाषा में अच्छी प्रकार से देश का विकास होता है। यदि हम ठान लें तो कुछ भी असंभव या कठिन नहीं है। यह हमारा दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि स्वतंत्र भारत को ऐसा नेतृत्व प्राप्त हुआ, जिसने भारतीयता को बढ़ावा देने की अपेक्षा विदेशी ताकतों को संतुष्ट रखने का काम किया। उस समय के नेतृत्व ने महात्मा गांधी के आग्रह के बाद भी हिन्दी और ग्राम स्वराज्य के विचार को नकार दिया था। बहरहाल, इस संदर्भ में एक और अच्छी बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी सर्वोच्च न्यायालय की प्रशंसा की। उन्होंने ट्वीट किया कि हाल में एक कार्यक्रम में प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने उच्चतम न्यायालय के फैसलों को क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध कराने की दिशा में काम करने की बात कही। यह एक प्रशंसनीय विचार है, जो कई लोगों की मदद करेगा। उल्लेखनीय है कि भारतीय भाषाओं को नजदीक लाने एवं भाषाओं को जीवंत बनाए रखने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने महत्वपूर्ण पहल की है। उम्मीद है कि शीघ्र ही सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों की प्रतियां भारतीय भाषाओं में मिलना प्रारंभ हो जाएगी।
