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पश्चिम बंगाल में रुक नहीं रही हिंसक घटनाएं

देश में पश्चिम बंगाल ऐसा राज्य बन गया है जहां बिगड़ती कानून व्यवस्था को लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को न्यायालयों से सर्वाधिक फटकार और निर्देशों का सामना करना पड़ा है। लेकिन इसके बाद भी उनके स्वभाव एवं प्रशासन में कोई बदलाव नजर नहीं आता है। पश्चिम बंगाल से लगातार राजनीतिक हिंसा के समाचार आ रहे हैं और उनके आरोप तृणमूल कांग्रेस पर लग रहे हैं। नदिया जिले के राणाघाट संसदीय क्षेत्र में रविवार रात को ‘जय श्रीराम’ बोलने पर भाजपा कार्यकर्ता दंपती की घर में घुसकर बेरहमी से पिटाई की गई, जिसमें महिला की मृत्यु हो गई। पति गंभीर हालत में चिकित्सालय में भर्ती है। तृणमूल कांग्रेस के नेता आरोपियों पर कड़ी कार्रवाई करने की माँग करने की जगह यह सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं कि दंपती भाजपा के कार्यकर्ता नहीं थे। उपद्रवियों की भीड़ इतनी बेखौफ है कि वह एनआईए और पुलिस दलों पर भी हमला करने में भय नहीं खाते हैं। पश्चिम बंगाल के ईस्ट मेदिनीपुर इलाके में शनिवार तड़के भीड़ ने एनआईए अधिकारियों पर हमला किया था, जिसके बाद वहाँ राजनीति गरमा गई। भाजपा ने आरोप लगाए कि यह सब हमले तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने किए हैं। इसके बाद उपद्रवियों ने सोमवार रात को संदेशखाली में पुलिस दल पर हमला कर दिया। हमले में एक पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल है। याद रहे कि इसी वर्ष जनवरी में भी संदेशखाली प्रकरण की जाँच करने गई प्रवर्तन निदेशालय के दल पर भीड़ ने हमला किया था। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राज्य में हो रही हिंसा पर खामोश रहती हैं या फिर इधर-उधर की बातें करके ध्यान भटकाने की कोशिश करती हैं। मुख्यमंत्री का यह रवैया भी राज्य में अराजक स्थितियों के जिम्मेदार है। संदेशखाली की घटना के बाद उच्च न्यायालय ने जिस तरह की टिप्पणी ममता सरकार के खिलाफ की है, उससे स्पष्ट है कि पश्चिम बंगाल में कानून-व्यवस्था रसातल में जा रही है। ममता की पार्टी तृणमूल का एकमात्र उद्देश्य रह गया है अपने विरोधियों की आवाज बंद करना, इसके लिए चाहे गैरकानूनी तरीकों का इस्तेमाल ही क्यों न करना पड़ा। संदेशखाली मामले को लेकर कलकत्ता उच्च न्यायालय ने बंगाल के प्रशासन और सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस पार्टी को भी बेहद तल्ख लहजे में फटकार लगाई। न्यायालय ने कहा कि अगर संदेशखाली मामले में एक प्रतिशत भी सच है तो प्रशासन और सत्ताधारी पार्टी इसकी जिम्मेदार है। न्यायालय ने कहा कि यह मामला बेहद शर्मनाक है और पूरा प्रशासन और सत्ताधारी पार्टी इसके लिए नैतिक तौर पर 100 प्रतिशत जिम्मेदार हैं। न्यायालय की इस तीखी टिप्पणी की बाद भी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं पर कोई असर नहीं हुआ। पश्चिम बंगाल में हिंसा अब भी जारी है। सोचिए, ममता सरकार ने राज्य में कैसी स्थितियां बना दी हैं कि जय श्रीराम बोलने पर दंपती की पिटाई कर दी जाती है। यह बात किससे छिपी है कि जय श्रीराम बोलने पर स्वयं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी किस प्रकार लोगों को भड़क जाती हैं। ममता सरकार के इस रवैये और तृणमूल कांग्रेस की हिंसक मानसिकता के विरुद्ध पश्चिम बंगाल की जनता में जनाक्रोश दिखायी दे रहा है। पश्चिम बंगाल में शांतिपूर्ण वातावरण बनाने के लिए न्यायपालिका से लेकर केंद्र सरकार को विशेष प्रयत्न करने चाहिए। सही अर्थों में संविधान और लोकतंत्र की रक्षा करने की आवश्यकता कहीं है, तो वह पश्चिम बंगाल है।

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