धार्मिक स्थल एवं स्थापत्य से जुड़े चार मामलों को लेकर देशभर में चर्चा हो रही है। चारों ही मामलों में गुरुवार को न्यायालयों में सुनवाई भी हुई। जहाँ काशी के ज्ञानवापी परिसर में स्थित तथाकथित मस्जिद, मध्यप्रदेश की भोजशाला और मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर के मामले में हिन्दू पक्ष की ओर से प्रस्तुत तर्र्कों एवं तथ्यों पर न्यायालय में संज्ञान लिया है, वहीं ताजमहल मामले में न्यायालय ने याचिकाकर्ता को और अध्ययन करके आने का परामर्श दिया है। हालाँकि, ताजमहल के मामले में भी ऐसे अनेक तथ्य हैं, जिनको ध्यान में रखते हुए मामले की आगे सुनवाई की जा सकती है। बंद 22 दरवाजों के पीछे का रहस्य ही नहीं अपितु स्थापत्य में शामिल हिन्दू प्रतीकों एवं अन्य दस्तावेजों के आधार पर यह संशय उत्पन्न होता है कि अन्य इमारतों की तरह ताजमहल भी कभी हिन्दू स्थापत्य रहा होगा। बहरहाल, काशी स्थिति ज्ञानवापी परिसर में स्थित तथाकथित मस्जिद में होने वाले सर्वेक्षण को रुकवाने का प्रयास कर रहे समूहों को न्यायालय ने आईना दिखाने का काम किया है। न्यायालय का कहना है कि न तो सर्वेक्षण की टोली का नेतृत्व कर रहे आयुक्त को हटाया जाएगा और ना हीं सर्वे को रोका जाएगा। न्यायालय का यह निर्णय उन सब ताकतों को हतोत्साहित करेगा, जो संवैधानिक प्रक्रियाओं को रुकवाने के लिए ऐन-केन-प्रकारेण प्रयास करते हैं। विचारणीय प्रश्न है कि यदि तथाकथित मस्जिद सही है, तब फिर छिपाने की क्या बात है? इसी तरह न्यायालय ने मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले की सुनवाई तेज गति से करने और चार माह में सभी याचिकाएं निपटाने के निर्देश निचली अदालत को देकर बड़ा संदेश दिया है। इस तरह के मामलों की सुनवाई जितनी जल्दी हो, उतना अच्छा है। मामले लंबे चलने से असामाजिक तत्वों को सांप्रदायिक सौहार्द बिगाडऩे का अवसर मिलता है। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर मामले में हमने देखा है कि आपसी समझदारी से निपट रहे मामले को कम्युनिस्ट लेखकों एवं इतिहासकारों ने किस तरह बिगाडऩे का काम किया और मुस्लिम वर्ग को भड़काया। मध्यप्रदेश के धार जिले में स्थित भोजशाला विवाद की याचिका स्वीकार करके भी न्यायालय ने हिन्दुओं के मन में यह विश्वास पैदा किया है कि न्याय के मंदिर में देर है अंधेर नहीं। अब तक इस मामले की अनदेखी होती आ रही थी, लेकिन अब लगता है कि इस मामले में भी तथ्यों के आधार पर सच सामने आ जाएगा। यह माना जाता है कि कला एवं संस्कृति के उपासक राजा भोज ने मध्यप्रदेश में ज्ञान के केंद्रों के रूप में भोजशालाओं का निर्माण कराया था लेकिन आक्रांताओं ने अन्य स्थानों की तरह इस पर भी अतिक्रमण कर लिया। लंबे समय से हिन्दू समाज इस बात का आग्रह कर रहा है कि माँ सरस्वती को समर्पित इस स्थान को उसे सौंप दिया जाए। बहरहाल, सबके हित में रहेगा यदि इन मामलों के निर्णय जल्दी आएं। यह भी कि मुस्लिम समुदाय इन स्थानों को हिन्दुओं को सौंपकर सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल भी पेश कर सकता है। हालाँकि, इसकी उम्मीद कम ही है क्योंकि श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के मामला हमारे सामने है। जहाँ कट्टरपंथी इस्लामिक समूहों ने उदारवादी मुस्लिम वर्ग को सामाजिक सौहार्द का कदम उठाने नहीं दिया।
