राहुल गांधी की तथाकथित ‘भारत जोड़ो यात्रा’ जम्मू-कश्मीर पहुँच गई है। यात्रा के समापन अवसर पर कांग्रेस ने श्रीनगर में तिरंगा फहराने की घोषणा की है। यह अच्छी बात है कि कांग्रेस भी अब श्रीनगर में तिरंगा फहराएगी। एक वह भी समय था जब भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय विचार के लोग श्रीनगर के लालचौक पर तिरंगा फहराते थे, तब कांग्रेस की ओर से उसक प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष विरोध किया जाता था। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने ऐसे ही एक प्रसंग का उल्लेख करके कांग्रेस को आईना दिखाने का काम किया है। उन्होंने कहा है कि “आज जम्मू कश्मीर में कोई भी, कहीं भी तिरंगा फहरा सकता है। अब कोई रोक नहीं है क्योंकि नरेन्द्र मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35ए को समाप्त कर दिया है…. 2011 में जब वह भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष थे, तब उन्होंने कोलकाता से कश्मीर तक तिरंगा यात्रा निकाली थी और यह केवल 11 वर्ष पुरानी बात है। तब केंद्र में कांग्रेस की ही गठबंधन सरकार थी और जम्मू कश्मीर में कांग्रेस-नेशनल कांफ्रेंस की सरकार ने तिरंगा यात्रा का विरोध किया था। मुझे, लोकसभा एवं राज्यसभा में प्रतिपक्ष के तत्कालीन नेताओं सुषमा स्वराज और अरुण जेटली को जेल में डाल दिया गया था”। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का यह कहना उचित ही है कि जब कश्मीर में अलगाववादी अनुच्छेद लागू था तब कांग्रेस वहाँ तिरंगा फहराने से लोगों को रोकती थी, वहीं अब जब कश्मीर के हालात बदल रहे हैं, तब वहाँ तिरंगा फहराकर कांग्रेस क्या संदेश देना चाहती है? यकीनन जब सही मायने में जम्मू-कश्मीर को देश के साथ एकाकार करने के प्रयास करने चाहिए थे, तब कांग्रेस वहाँ किसी प्रकार की यात्राएं नहीं निकाल रही थी, लेकिन अब जब भारत एकजुट है, तब कांग्रेस दावा कर रही है कि वह भारत को जोड़ने के लिए यात्रा निकाल रही है। बहरहाल, आज की स्थिति में कांग्रेस को उन परिस्थितियों एवं बाधाओं का सामना नहीं करना पड़ेगा, जिनका सामना भाजपा को कांग्रेस के शासनकाल में करना पड़ता था। निश्चित ही राहुल गांधी सुरक्षित वातावरण में बिना किसी रोक-टोक के श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहरा सकेंगे। देर से ही सही उनके इस कदम का स्वागत है। जम्मू-कश्मीर में भारत जोड़ो यात्रा के पहुँचने से उन सब यात्राओं को भी याद किया जा रहा है, जो जम्मू-कश्मीर को मुख्यधारा में लाने के लिए हुई हैं। सही मायने में जम्मू-कश्मीर को भारत से जोड़ने या कहें कि भारत को जोड़ने में उन यात्राओं की बड़ी भूमिका रही है। स्वतंत्रता के बाद तत्कालीन नेतृत्व की भ्रमित नीतियों के कारण जम्मू-कश्मीर में दो निशान, दो विधान और दो प्रधान की स्थिति बन गई थी और वहाँ जाने के लिए परिमिट लगता था। कुलमिलाकर जम्मू-कश्मीर के साथ भारत के शेष प्रांतों से अलग व्यवहार किया जाता था, तब जनसंघ ने यात्रा निकाली थी। जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ‘एक निशान, एक विधान और एक प्रधान’ का नारा लेकर जम्मू-कश्मीर पहुँचे तब उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया और ऐसे वातावरण में रखा गया, जो उनके स्वास्थ्य के लिए प्रतिकूल था। वहीं रहस्यमयी परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। उनका यह बलिदान रंग लाया और आगे चलकर जम्मू-कश्मीर से यह अलगाववादी व्यवस्था समाप्त कर दी गई। इसी तरह एक दौर था जब कट्टरपंथियों और आतंकवादियों की धमकी के कारण श्रीनगर में तिरंगा नहीं फहराया जाता था, तब 1992 में वरिष्ठ भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी कन्याकुमारी से कश्मीर तक ‘एकता यात्रा’ लेकर गए। यह यात्रा वास्तव में एकात्म स्थापित करनेवाली थी। इस यात्रा में जोशी जी के साथ वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी थे। आतंकियों की धमकी के बाद भी जोशीजी और मोदीजी ने लालचौक पर तिरंगा फहराया। उसके बाद से प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस पर कोई न कोई लालचौक पर तिरंगा फहरा देता है। भाजपा सरकार ने भारत जोड़ने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बढ़ाते हुए अलगाववादी अनुच्छेद-370 एवं 35ए निष्प्रभावी कर दी। जनता के बीच यह चर्चा छिड़ गई है कि आखिर भारत जोड़नेवाली वास्तविक यात्राएं कौन-सी हैं? बहरहाल, जब राहुल गांधी जम्मू-कश्मीर पहुँच ही गए हैं और तिरंगा भी फहराएंगे, तब उन्हें यह भी बताना चाहिए कि भारत को कमजोर करनेवाला एवं विभाजनकारी अनुच्छेद-370 एवं 35ए पर उनके क्या विचार हैं? यदि वाकई वह भारत को जोड़ने निकले हैं, तब उन्हें बेबाकी से इस प्रश्न का उत्तर देना चाहिए।
