शिक्षा की आड़ में जिस प्रकार से ईसाई और मुस्लिम संस्थाओं द्वारा कन्वर्जन को अंजाम दिया जा रहा है, यह चिंताजनक है। एक के बाद एक मामले सामने आने से स्थितियों के और भयावह होने की आशंका है। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह संदिग्ध शैक्षिक संस्थाओं की व्यापक जाँच-पड़ताल करे और सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ने की साजिश में लगी सभी संस्थाओं के प्रमुखों पर कड़ी कार्रवाई हो और उन संस्थाओं पर हमेशा के लिए ताला लगाया जाए। जिस प्रकार के तथ्य सामने निकलकर आ रहे हैं, उससे यह भी साफ होता है कि यह गतिविधियां केवल अपने मत के विस्तार तक सीमित नहीं हैं। ये संस्थाएं कन्वर्टेड लोगों के माध्यम से गैर-कानून काम भी करा रही हैं। जैसे भोपाल के जैन समुदाय से मुस्लिम बना युवक आतंक की गतिविधियों में संदिग्ध पाया गया है। लोगों का ब्रेनवॉश करके पहले उनका धर्म बदला जाता है, उसके बाद उन्हें अन्य लोगों को भी कन्वर्टेड करने के लिए उकसाया जाता है। यह भी तथ्य सामने आये हैं कि जनसांख्कीय असंतुलन पैदा करके राजनीति ताकत प्राप्त करके इस देश की सत्ता को अपने हिसाब से चलाने की मंशा भी कुछ ताकतों की है। इस्लामिक स्कॉलर सोएब जमई के विचार सुनकर संभावित खतरे के संकेत स्पष्ट तौर पर मिलते हैं। मध्यप्रदेश में पहले गंगा-जमुना स्कूल का मामला सामने आया, जहाँ शिक्षकों से लेकर बच्चों तक को इस्लामिक शिक्षाएं दी जा रही थीं और उन्हें मुस्लिम बनने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा था। चिंता की बात यह है कि प्रशासनिक तंत्र इस सब पर ध्यान नहीं देता है या जानबूझकर यह सब चलने देता है। गंगा-जमुना स्कूल के मामले में स्थानीय कलेक्टर ने पहले स्कूल प्रबंधन को क्लीनचिट ही दे दी थी। लेकिन बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष ने गंभीर जाँच-पड़ताल के लिए सरकार से आग्रह किया, जब एक से बढ़कर एक चौंकानेवाले मामले उजागर हुए। जरा सोचिए, यदि मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार न होती, तब कलेक्टर की क्लीनचिट के बाद स्कूल की दोबारा गंभीरता से जाँच होती? शिक्षा की आड़ में कन्वर्जन के लिए जमीन तैयार करनेवाले स्कूल पर कोई कार्रवाई होती? सब इसका उत्तर भली प्रकार जानते हैं। उन सब राज्य सरकारों की स्थिति को देख लीजिए, जहाँ गैर-भाजपा सरकारें हैं। उन राज्यों में बाल संरक्षण आयोग जैसे संवेदनशील संस्था के अध्यक्ष के पत्रों की अनदेखी की जाती है। जब वे स्वयं वहाँ जाँच के लिए जाते हैं, तब उनका सहयोग करने की जगह, उनके काम में बाधा उत्पन्न की जाती है। इसलिए मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार से उम्मीद है कि वह पूरे प्रदेश में इस प्रकार की संदिग्ध संस्थाओं की जाँच कराए। गंगा-जमुना स्कूल के बाद दमोह में चर्च द्वारा सेवा और शिक्षा की आड़ में चलाए जानेवाला एक और स्कूल सामने आया है, जहाँ भोले-भाले बच्चों को बाइबिल पढ़ाई जा रही थी। देश के विभिन्न राज्यों से इन बच्चों को अच्छी शिक्षा का सपना दिखाकर लाया गया, लेकिन यहाँ उनके मन से मूल धर्म की पहचान मिटाकर, उनके मन में बाइबिल की कहानियां बैठाई जा रही हैं। स्मरण रहे कि शिक्षा एवं सेवा की आड़ में यह सब करने की स्वतंत्रता किसी को नहीं दी जा सकती। इस प्रकार की गतिविधियों से आपसी सामाजिक एवं सांप्रदायिक सौहार्द की दीवार भी कमजोर होती है। यह सब रुकना चाहिए।
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