प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छता के प्रति एक वातावरण बना दिया है। अपने पहले कार्यकाल से ही उन्होंने स्वच्छता को लेकर देश को जगाने का कार्य किया। जिसके सुफल परिणाम भी प्राप्त हुए। हम कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने महात्मा गांधी के विचार को आगे बढ़ाने का काम किया है। हालांकि अब भी स्वच्छता के मामले में हमें थोड़े और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। पिछले आठ-दस वर्षों में जिस प्रकार का वातावरण बन गया है, उसे और व्यापक एवं स्थायी स्वरूप देने के लिए सामूहिक प्रयत्नों की आवश्यकता है। आज जब हम महात्मा गांधी का स्मरण करें, तब स्वच्छता के प्रति भी संकल्पबद्ध हों। समूचा देश इस बात को स्वीकार करता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले आठ-दस वर्षों में स्वच्छ भारत अभियान को एक बड़ा अभियान बना दिया है। यह प्रधानमंत्री के बड़े हृदय को दिखाता है कि वे इसका सारा श्रेय देश की जनता को देते हैं। प्रधानमंत्री कहते हैं कि इस अभियान को व्यापक एवं प्रभावी बनाने में देश के प्रत्येक वर्ग का योगदान है। हमें प्रधानमंत्री के उस आग्रह को स्वीकार करके उसे आगे बढ़ाना चाहिए, जिसमें वे कह रहे हैं कि भारत को स्वच्छ बनाने के प्रयासों को तब तक जारी रखना है जब तक कि स्वच्छता भारत की पहचान न बन जाए। प्रधानमंत्री मोदी की यह टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण है। भारत कितना स्वच्छ है इसका जवाब हम सब जानते हैं। स्वच्छ भारत के प्रभाव से आए व्यापक परिवर्तन के बाद भी हम देश की राजधानी दिल्ली से लेकर छोटे शहरों एवं कस्बों तक सार्वजनिक स्थलों पर भयंकर गंदगी दिख जाती है, जो एक प्रकार से हमें चिढ़ाती है। हमें गंभीरता से विचार करना चाहिए कि स्वच्छता को लेकर शासकीय स्तर पर जनजागृति चलना किसी सभ्य समाज के लिए कलंक की तरह नहीं है? स्वच्छता तो हमारा स्वभाव होना चाहिए। जिस प्रकार हम अपना घर-आंगन साफ रखते हैं, क्या उसी तरह अपने गाँव-शहर को साफ रखना हमारी जवाबदेही नहीं है? महात्मा गांधी से लेकर प्रधानमंत्री मोदी तक ने हमें स्वच्छता का महत्व एवं उसकी आवश्यकता समझाने का प्रयत्न किया है। हम अपने नेतृत्व एवं आदर्शों को मानते तो बहुत हैं, लेकिन उनकी सीखों को अपने आचरण में कितना उतारते हैं, इस बारे में भी विचार करना चाहिए। दुनिया में भारत की छवि स्वच्छता के लिए बने, इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी ने सत्ता में आने के पहले ही वर्ष में गांधी जयंती पर ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का शुभारंभ किया था। इस दिशा में सरकार के स्तर पर उल्लेखनीय कार्य हुए। देश के लगभग सभी घरों में आज शौचालय बन गए हैं। खुले में शौच की समस्या से लगभग निजात पा लिया गया है। उल्लेखनीय है कि जिस वर्ष प्रधानमंत्री मोदी ने स्वच्छता अभियान शुरू किया था तब खुले में शौच करनेवालों की संख्या लगभग 45 करोड़ थी। केंद्रीय मंत्री गजेन्द्र शेखावत के जो जानकारी देश के सामने रखी है, उसके अनुसार वर्तमान में देश के 75 प्रतिशत अर्थात् लगभग 4 लाख 40 हजार गाँव खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैं। अभी पूरी तरह खुले में शौच से मुक्ति के लिए भी काम करने की आवश्यकता है। घरों से निकलनेवाले कचरे का प्रबंधन ठीक प्रकार से होने लगा है। नगर निगम की गाड़ियां घर-घर पहुँच रही हैं। परंतु इसके बाद भी हमें कॉलोनियों में जगह-जगह कचरे के ढेर दिख जाते हैं। स्वच्छता के लक्ष्य को प्राप्त करने में नागरिक समुदाय को भी अपनी भूमिका का निर्वहन करना होगा। जब तक हम स्वच्छता के आग्रही नहीं बनेंगे और स्वच्छता को आदत नहीं बना लेंगे, तब तक सरकार कितने भी प्रयास कर ले, स्वच्छता के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता। मध्यप्रदेश के इंदौर के नागरिक समुदाय से सबको सीख लेना चाहिए। इंदौर लगातार स्वच्छता में प्रथम स्थान प्राप्त करता है क्योंकि वहाँ नागरिक समुदाय अपने शहर को स्वच्छ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। गांधीजी का सार्थक स्मरण यही हो सकता है कि हम स्वच्छता को अपनी आदत बना लें।
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