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जिद हारी, संविधान जीता

दिल्ली के प्रशासन को अपने हिसाब से चलाने की आम आदमी पार्टी की जिद लोकतंत्र के मंदिर ‘संसद’ में संविधान के सामने परास्त हो गई। केंद्र सरकार के ‘दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन संशोधन विधेयक 2023’ पर आम आदमी पार्टी और उसके साथ खड़े सभी राजनीतिक दलों को मुंह की खानी पड़ी। याद रखें कि आआपा ने इस विधेयक को पारित होने से रोकने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगाया था। आआपा के सर्वेसर्वा एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सभी गैर-भाजपा सरकारों के मुख्यमंत्रियों एवं भाजपा विरोधी राजनीतिक दलों से विधेयक पर समर्थन जुटाने के लिए ‘भारत भ्रमण’ तक कर लिया था। दिल्ली कांग्रेस के विरोध के बाद भी कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व को मजबूर कर दिया कि वह लोकसभा और राज्यसभा में इस विधेयक के खिलाफ आम आदमी पार्टी का साथ दें। इसके बाद भी आआपा के हाथ जब कुछ नहीं आया, तो उसके नेताओं ने अन्य अनैतिक रास्ते भी अपनाने का प्रयास किया। राज्यसभा में आआपा के सांसद राघव चड्ढा ने ‘दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन संशोधन विधेयक 2023’ को सिलेक्ट कमिटी के पास भेजे जाने का प्रस्ताव रखा। सत्ता पक्ष के पाँच सदस्यों ने कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि उनकी सहमति के बिना प्रस्ताव में उनके नाम डाले गए और इस मामले को विशेषाधिकार समिति के पास भेजा जाए। उपसभापति हरिवंश ने इस मामले में जाँच की बात कही है। यह हद दर्जे की मनमानी और फर्जीवाड़ा है। किसी सांसद से बिना उसकी अनुमति के कहीं भी उसकी सहमति को दिखाना, यह एक अपराध है। संभव है कि इसके लिए आआपा के सांसद राघव चड्ढा को सजा भी हो जाए। संसद के भीतर जालसाजी के आरोपों में फंसी आआपा ने खेद प्रकट करने की जगह कार्रवाई के डर से, अभी से शोर मचाना शुरू कर दिया है कि भाजपा अब उसके सांसद राघव चड्ढा के पीछे पड़ गई है। यह तो वही बात हुई कि ‘एक तो चोरी और ऊपर से सीनाजोरी’। यदि राघव चड्ढा सही हैं, उन्होंने कोई फर्जीवाड़ा नहीं किया है, तब उन्हें और उनकी पार्टी के नेताओं को डरने की जरूरत क्यों होनी चाहिए? आआपा की दिशा और तौर-तरीकों को देखकर यही प्रतीत होने लगा कि ये लोग फर्जीवाड़ा करने को सामान्य मानते हैं। इन्हें लगता है कि हर कहीं जनता की आँखों में धूल झौंकने के लिए कुछ भी कह दो, बाद में माफी माँगकर आगे बढ़ जाएंगे। परंतु राजनैतिक वितंडावाद को ही राजनीति समझनेवाले आआपा के नेताओं को समझना चाहिए कि संसद जैसा मंच इस प्रकार की ओछी हरकतों के लिए नहीं है। संसद के किसी भी पटल पर, कोई भी बात गंभीरता से, जाँच-पड़ताल करके के उपरांत ही रखनी चाहिए। परंतु जिन्होंने दिल्ली की विधानसभा को ही अपनी राजनीतिक खुन्नस निकालने का अखाड़ा बना लिया हो, उनसे संसद की गरिमा की अपेक्षा करना कितना उचित होगा? बहरहाल, गृहमंत्री अमित शाह ने इस विधेयक पर सरकार का पक्ष रखते हुए बहुत ही तार्किक ढंग से आआपा के सभी प्रश्नों का उत्तर दिया। नि:संदेह गृहमंत्री के भाषण के बाद देश की जनता को भी दिल्ली सरकार की भूमिका एवं उसकी सीमाओं को लेकर स्पष्टता हुई होगी।

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