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खालिस्तान पर लगे लगाम

खालिस्तान एक बार फिर अपना सिर उठाने लगा है। भारत में भले ही खालिस्तान की गतिविधियां खुलेतौर पर न दिखती हों, लेकिन पर्दे के पीछे से भारत विरोध गतिविधियों को अंजाम देने में यह सक्रिय है। भारत के बाहर विभिन्न देशों में खालिस्तानी नेटवर्क काफी सक्रिय है। फिलहाल, अमेरिका और कनाडा से लगभग एक साथ आई खालिस्तान समर्थकों की गतिविधियों के समाचार चिंताजनक हैं। अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास में न केवल तोड़फोड़ की गई बल्कि उसमें आग भी लगा दी गई। वहीं, कनाडा में खालिस्तान समर्थकों ने दो भारतीय राजनयिकों की तस्वीर वाले पोस्टर लगाए। वे इन राजनयिकों को कनाडा में पिछले दिनों हुई खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का दोषी बता रहे हैं। निज्जर की कनाडा में एक गुरुद्वारा के सामने अज्ञात लोगों ने पिछले महीने गोली मार कर हत्या कर दी थी। सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास में हुई तोड़फोड़ और आगजनी की घटना का वीडियो साक्षा करते हुए भी निज्जर की हत्या से जुड़े समाचारों की कतरनें दी गई थीं। ध्यान रहे, सैन फ्रांसिस्को में यह इस तरह की पहली घटना नहीं है। इसी वर्ष मार्च में खालिस्तान समर्थकों ने वहां वाणिज्य दूतावास में तोड़फोड़ की थी। दो जुलाई की घटना में हालांकि ज्यादा नुकसान नहीं हुआ, आग पर तुरंत काबू पा लिया गया, सभी स्टाफ भी सुरक्षित बताए जाते हैं, लेकिन यह घटना बेहद गंभीर है। कनाडा में भारतीय राजनयिकों की तस्वीर प्रचारित करना तो और भी खतरनाक है। भारत सरकार ने ठीक ही इसे गंभीरता से लेते हुए जहां कनाडा के हाईकमिश्नर को समन किया, वहीं अमेरिकी सरकार से भी उपयुक्त कार्रवाई के लिए कहा है। दोनों सरकारों ने इस पर एक्शन लेने की बात कही भी है, लेकिन सचाई यही है कि खालिस्तान समर्थक तत्वों से निपटने में ये सरकारें अभी तक प्रभावी साबित नहीं हुई हैं। अमेरिका और कनाडा ही नहीं, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भी हैं जिनके भारत से बेहद करीबी रिश्ते हैं, लेकिन वहां खालिस्तान समर्थकों की गतिविधियां खबरें बनती रहती हैं। इन सरकारों का तर्क है कि जब तक ये संगठन शांतिपूर्ण विरोध करते हैं और किसी तरह की अवैध गतिविधियों में लिप्त नहीं होते, तब तक इनके खिलाफ कार्रवाई करना इसलिए मुश्किल है क्योंकि उसे वहां के नागरिक अधिकारों के खिलाफ माना जाएगा। मगर ये संगठन और उनसे जुड़े लोग अक्सर इसी लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल करते हुए आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं। इसका ताजा उदाहरण अमृतपाल सिंह का है, जो धर्म की आड़ में सीधे कानून-व्यवस्था को चुनौती देने पर उतर आया था। यही वजह है कि भारत इन तमाम मित्र देशों की सरकारों से बार-बार कह रहा है कि इन तत्वों को अपने यहां जगह न दें। यह भारत की संप्रभुता और एकता एवं अखंडता से जुड़ा मसला है। यह सुनिश्चित करना सबके हित में है कि हिंसा में लिप्त आतंकवादी या अलगाववादी तत्वों को किसी तरह की आड़ न मिलने दी जाए। मित्र देशों को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि आज नहीं तो कल ये अराजक तत्व उनके लिए भी समस्या बन सकते हैं। इसलिए समय रहते भारत के आग्रह पर विचार करें और खालिस्तानियों को रोकने के उपाय करें।

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