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राहुल गांधी की सजा बने सबक

लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान अपमानजनक भाषाशैली का उपयोग करने के लिए सूरत के सत्र न्यायालय ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को दो वर्ष की सजा सुनायी है। राहुल गांधी उस समय कहा था कि “सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है…”। दरअसल, उनका लक्ष्य प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रतिष्ठा पर चोट पहुँचाना था। कांग्रेस के नेताओं में प्रधानमंत्री मोदी के प्रति एक दुराग्रह देखा ही जाता रहा है। राहुल गांधी ही नहीं, पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी से लेकर प्रवक्ता पवन खेड़ा तक अनेक नेताओं ने प्रधानमंत्री मोदी को लेकर अपमानजनक भाषाशैली का उपयोग किया है। परंतु प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं पर हुए अपमानजनक वार के लिए कभी कानूनी प्रक्रिया का सहारा नहीं लिया, वे तो जनता के न्यायालय में गए। जहाँ जनता ने उनके साथ हमेशा न्याय किया और अपमानजनक भाषाशैली पर कांग्रेस के नेताओं को आईना भी दिखाया परंतु कांग्रेसी नेताओं ने कभी कोई सबक नहीं लिया। प्रधानमंत्री मोदी के प्रति अब भी उनके विरोध एवं सोच का स्तर वैसा ही है, जिसमें सहजता नहीं अपितु नकारात्मकता दिखायी देती है। परंतु इस बार राहुल गांधी फंस गए क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी को घेरने के चक्कर में उन्होंने उपनाम ‘मोदी’ को ही ‘चोर’ का पर्याय बताने की सामाजिक भूल कर दी। नि:संदेह राहुल गांधी का बयान उन सबके लिए असहनीय और अपमानजनक था, जिनका उपनाम ‘मोदी’ है। जिस पार्टी के नेता इस बात की वकालत करते हों कि आतंकवाद की घटनाओं में भले ही मुसलमान पकड़े जाते हैं लेकिन प्रत्येक मुसलमान आतंकवादी नहीं होता है, उसी पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी यह कहें कि ‘सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है…’ तब प्रश्न तो उठेंगे ही। तब यह तर्क भी स्वीकार नहीं किया जा सकता कि ऐसा कहने के पीछे राहुल गांधी की मंशा गलत नहीं थी, उन्होंने भ्रष्टाचार के मामलों को उठाने के लिए यह कहा था। उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ वर्षों में आपत्तिजनक एवं मानहानिकारक भाषा-शैली हमारे नेताओं, विशेषकर विपक्षी दलों के नेताओं की आदत बन गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर स्वातंत्र्यवीर सावरकर को लेकर और हिन्दू धर्म के आस्था के प्रतीकों एवं सामाजिक संगठनों को लेकर कितनी ही अमर्यादित टिप्पणियां पिछले आठ-नौ वर्षों में विपक्षी नेताओं द्वारा की गईं, यदि उनका हिसाब लगाने बैठा जाए तो लंबी सूची बनेगी। आम नागरिकों की ओर से भी इस प्रकार की अभद्र भाषाशैली के लिए आक्रोश व्यक्त किया जा चुका है, लेकिन हमारे नेता न जाने किस भ्रम में हैं कि वे किसी का अपमान करके खुद के लिए सम्मान कमा लेंगे। जब से कांग्रेस ने कम्युनिस्टों के प्रभाव में आकर स्वातंत्र्यवीर सावरकर का अपमान करना शुरू किया है, तब से आम नागरिकों की ओर से ही कांग्रेस और उसके नेताओं के स्याह पहलू जनता के सामने लाए जा चुके हैं। यानी कांग्रेस ने खुद की ही किरकिरी कराई है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संदर्भ में गलतबयानी करने के मामले में भी मानहानि का एक मामला चल रहा है। इसके साथ ही राहुल गांधी ने राफेल विमान के मामले में गलत ढंग से न्यायालय को उल्लेखित करके न्यायालय की अवमानना की थी। हालाँकि इस मामले में सजा से बचने के लिए उन्हें उच्चतम न्यायालय से माफी माँगनी पड़ी थी। बहरहाल, राहुल गांधी को मिली यह सजा बाकी नेताओं के लिए सबक बननी चाहिए, ताकी अपमानजनक भाषा के उपयोग की बढ़ती प्रवृत्ति पर रोक लग सके। नेताओं को यह बात भली प्रकार समझ लेनी चाहिए कि आक्रामकता का अभिप्राय अपमानजनक एवं घृणास्पद बयानबाजी कतई नहीं है। शालीन भाषा में भी आक्रामक ढंग से जनता के मुद्दों को उठाया जा सकता है। नेता जिस तरह का आचरण करते हैं, समाज में उनके अनुयायी भी वैसा ही आचरण करते हैं। समाज का वातावरण अच्छा रहे इसलिए भी नेताओं को संभलकर बोलना चाहिए।

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