विदेशी मीडिया में अकसर भारत के प्रति दुराग्रह दिखायी देता है। न्यूयॉर्क टाइम्स से लेकर बीबीसी तक में भारत के विरुद्ध चयनित तथ्यों या मिथ्या तथ्यों के आधार पर बढ़ा-चढ़ाकर समाचारों को प्रकाशित किया जाता है। भारत हर बार इस प्रकार के दुष्प्रचार का खंडन करता है और विदेशी मीडिया को आईना दिखाने का प्रयास भी करता है। लेकिन इस बार अमेरिका ने ही अपने यहाँ के मीडिया को गलत बता दिया है। भारत के दृष्टिकोण से यह अच्छी बात है। दरअसल, अमेरिकी मीडिया लगातार भारत में हो रहे लोकसभा चुनाव को मुसलमानों के खिलाफ बता रहा है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने 19 मई को एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें कहा गया था कि भारत में रह रहे मुस्लिम परिवारों को दरकिनार कर दिया गया है। वहां उनकी पहचान तक पर सवाल उठाए जा रहे हैं। इस प्रकार के मिथ्यारोपों पर भारत सरकार ने तो जवाब दिया ही है, अब अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने भी इस पर सफाई देते हुए भारत की धार्मिक स्वतंत्रता की प्रशंसा की है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा कि हम इन रिपोर्ट्स को सिरे से खारिज करते हैं। अमेरिका दुनिया भर में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करने के लिए हमेश तैयार रहता है। हमें इसके लिए भारत समेत कई अन्य देशों का साथ मिला है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने मीडिया रिपोर्ट को खारिज करने के साथ ही अपनी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट को भी खारिज कर दिया, जिसमें बताया गया था कि भारत में मुसलमानों का दमन हो रहा है। उल्लेखनीय है कि एक सप्ताह में यह दूसरी बार है जब अमेरिका की तरफ से भारत के समर्थन में इस प्रकार का बयान दिया गया है। इससे पहले 17 मई को व्हाइट हाउस ने कहा था कि दुनिया में भारत से अधिक जीवंत लोकतंत्र कहीं और नहीं हैं। भारतीयों के वोट देने और सरकार के खिलाफ आवाज उठाने की क्षमता प्रशंसनीय है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रभाव के कारण से वैश्विक स्तर पर भारत की एक प्रतिष्ठा बन गई है। प्रभावशाली देश भी भारत के साथ अपने संबंध अच्छे रखना चाहते हैं। भारत की कूटनीतिक प्रतिक्रियाओं ने भी उन्हें भारत के प्रति अपना दृष्टिकोण ठीक रखने के लिए बाध्य किया है। हमें याद रखना चाहिए कि भारत के विकास तथा उसके वैश्विक प्रभाव को बाधित करने की मंशा से कुछ ताकतें हमारे विरुद्ध तरह-तरह का दुष्प्रचार कर रही हैं। ऐसा केवल सरकारों की ओर से नहीं किया जा रहा है, बल्कि इसमें मीडिया और संगठनों की भूमिका भी है। जॉर्ज सोरोस और उनका फाउंडेशन तो खुलकर अपनी मंशा जाहिर कर चुका है। भारत सरकार को अस्थिर करने और उसे बदलने के लिए जॉर्ज सोरोस ने एक बड़ा-भारी बजट भी तय किया है। नि:संदेह, उसका उपयोग भारत विरोधी दुष्प्रचार के लिए भी किया जा रहा होगा। भारत पर चोट करने के लिए लोकसभा चुनाव को इन ताकतों ने एक अवसर की तरह देखा है। इसलिए इस समय अधिक सक्रियता से भारत के विरोध में प्रोपेगेंडा खड़े किए जा रहे हैं। लेकिन अब वह समय गया, जब भारत की प्रतिष्ठा को धूमिल करना आसान था। नये भारत की स्थिति वैश्विक परिदृश्य में मजबूत है।
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