भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गटबंधन (राजग) ने राष्ट्रपति पद के लिए जब द्रोपदी मुर्मू के नाम की घोषणा की, तब न केवल राजनीतिक विश्लेषक चकित रह गए बल्कि विपक्षी दल भी पस्त हो गए। राजनीतिक विश्लेषक भाजपा के इस निर्णय की सराहना कर रहे हैं और कांग्रेस को आईना दिखा रहे हैं कि एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल के पास ऐसा साहस और दृष्टिकोण होना चाहिए। भाजपा ने एक बहुत बड़ा सन्देश मुर्मू के नाम की घोषणा के साथ दिया है। भाजपा ने एक ऐसी जनप्रतिनिधि को देश के सर्वोच्च पद के लिए चुना है, जिसका जीवन संघर्ष, परिश्रम और प्रेरणा से भरा हुआ है। जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों के सामने हताश न होकर उन्होंने संघर्ष का पथ चुना और न केवल अपने परिवार को संभाला बल्कि देश-समाज की सेवा की। द्रोपदी मुर्मू ओड़िसा से आती हैं और उनका सम्बन्ध अनुसूची जनजाति समुदाय से है। जनजाति समुदाय के विकास के लिए उनके प्रयास स्तुत्य हैं। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस और कम्युनिस्ट सहित अन्य विपक्षी राजनीतिक दलों के साथ उनके सहयोगी लेखक-पत्रकार भाजपा पर मुस्लिम विरोधी, दलित विरोधी, महिला विरोधी और आदिवासी विरोधी मिथ्यारोप लगाते रहते हैं। वैसे तो उनके इन आरोपों का कोई आधार नहीं है लेकिन सामूहिक रूप से झूठ बोलने से समाज में भ्रम का एक वातावरण बन ही जाता है। सोचिये, जिन्होंने इस तरह के आरोप लगाये हैं, उन्होंने इन सभी वर्गों को आगे बढ़ाने के लिए क्या किया? वहीं, भाजपा ने इन आरोपों से परे सबको साथ लेकर काम किया है। इस बार भाजपा ने जनजाति समुदाय की महिला नेता का नाम देश के सर्वोच्च पद के लिए प्रस्तावित करके स्पष्ट सन्देश दे दिया है कि उसकी दृष्टि अधिक व्यापक है।भाजपा के निर्णय से स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद पहली बार जनजाति समुदाय से कोई राष्ट्रपति बनेगा। वहीं, इससे पूर्व जब भाजपा को पहली बार अवसर मिला था तो उसने आदर्श मुस्लिम एवं वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति बनवाया और दूसरी बार में अनुसूची जाति से आने वाले जनप्रतिनिधि श्री रामनाथ कोविंद को इस पद पर सुशोभित कराया। भले ही भाजपा विरोधी भ्रम फैलाते रहे लेकिन भाजपा ने अपने व्यवहार और निर्णयों से सभी समुदायों का विश्वास अर्जित किया और सबको आगे बढाया है। अपने इस निर्णय से भाजपा ने यह भी संदेश दिया है कि भाजपा का सामान्य कार्यकर्ता भी बड़े से बड़े पद पर पहुंच सकता है। भाजपा में द्रोपदी मुर्मू की यात्रा सामान्य कार्यकर्ता, पार्षद से लेकर विधायक, मंत्री और राज्यपाल से होते हुए अब देश के सर्वोच्च पद तक पहुंचेगी। भाजपा के इस निर्णय से विपक्ष चित्त हो गए हैं। एक तो अब भाजपा को ओडिसा के मुक्ख्यमंत्री नवीन पटनायक का समर्थन मिल गया है और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भी दाएं–बाएं होने की आशंका लगभग समाप्त हो गई है। अन्य दल भी अनुसूचित जनजाति की महिला नेत्री का विरोध करने का जोखिम मोल नहीं लेना चाहेंगे। कांग्रेस भी भाजपा के इस निर्णय से फंस गई है। यदि कांग्रेस कथित साझा विपक्ष के प्रत्याशी यशवंत सिन्हा के समर्थन में रहती है तो जनजाति समुदाय को लेकर उसकी सोच उजागर हो जायेगी। अच्छा तो यही होगा कि यशवंत सिन्हा भी अपना नाम वापस ले लें। क्योंकि ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के सहयोग के बाद से द्रोपदी मुर्मू अजेय बढ़त ले चुकी हैं। जहां विपक्ष के 18 दलों की वोट वैल्यू 3,81,051 ही है। वहीं, बीजद के आने से एनडीए की वोट वैल्यू 5,63,825 हो गई है, जबकि जीत के लिए 5.4 लाख से ज्यादा चाहिए थे। स्पष्ट है कि विपक्ष के प्रयासों पर भाजपा की रणनीति भारी पड़ गई।
