जम्मू कश्मीर में विधानसभा और लोकसभा चुनाव क्षेत्रों का नए सिरे से निर्धारण करने के लिए गठित परिसीमन आयोग ने गुरुवार को अपनी अंतिम रिपोर्ट दे दी और जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव का रास्ता साफ कर दिया। वहां 2018 से ही निर्वाचित सरकार नहीं है। पीडीपी की तुष्टिकरण की राजनीति के कारण भाजपा ने अपना गठबंधन खत्म किया और सरकार से बाहर हो गई। उसके बाद से ही वहां राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है। इस बीच में वहां राष्ट्रीय महत्व का कदम केंद्र सरकार ने उठाया था और विभाजनकारी व्यवस्था अनुच्छेद-370 को निष्प्रभावी कर दिया था। लंबे समय से जम्मू-कश्मीर में चुनाव की मांग और प्रतीक्षा की जा रही है। लेकिन नए चुनाव करवाने की राह में सबसे बड़ी बाधा परिसीमन आयोग की अंतिम रिपोर्ट थी। परिसीमन की रिपोर्ट नहीं आने के कारण अब तक चुनावों की प्रक्रिया शुरू नहीं हो पा रही थी। अब परिसीमन की रिपोर्ट आ गई है तब निर्वाचन की उम्मीद बढ़ गई है। हालांकि, परिसीमन आयोग की रिपोर्ट ने बहुत सारे बदलाव किए हैं जिनके संभावित नतीजों का आकलन किया जा रहा है। उदाहरण के लिए जम्मू क्षेत्र की विधानसभा सीटों में बढ़ोतरी करते हुए इसे 37 से 43 कर दिया गया है जबकि कश्मीर क्षेत्र के लिए सिर्फ एक सीट बढ़ाई गई है। 90 सदस्यीय नई विधानसभा में अब कश्मीर क्षेत्र की 47 सीटें होंगी। चूंकि परिसीमन का आधार 2011 की जनगणना है, इसलिए उस आधार पर देखा जाए तो इन बदलावों के परिणामस्वरूप जम्मू और कश्मीर दोनों ही क्षेत्रों का संतुलन बन गया है। पूर्व में कश्मीर क्षेत्र का वर्चस्व था, जिसके कारण जम्मू क्षेत्र की जनता के साथ न्याय नहीं हो पाता था। कुछ लोग जम्मू को न्यायपूर्ण प्रतिनिधित्व दिए जाने का विरोध कर रहे हैं। ऐसे में उनके कुतर्कों के बरक्स यह ध्यान में रखें कि परिसीमन आयोग ने जम्मू और कश्मीर दोनों को एक इकाई के रूप में देखा है। दूसरी बात यह कि आयोग ने सिर्फ जनसंख्या को परिसीमन का आधार नहीं बनाया है। अलग-अलग क्षेत्रों की भू-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, भौगोलिक जुड़ाव, संपर्क और पाकिस्तान सीमा से दूरी जैसे तमाम कारकों को ध्यान में रखा गया है जो इस क्षेत्र की संवेदनशीलता के मद्देनजर जरूरी भी था। आयोग ने जनजाति समुदाय के लिए 9 सीटें आरक्षित करने और कश्मीरी पंडित समुदाय से दो लोगों को विधानसभा में मनोनीत करने जैसी सिफारिशें भी की हैं। इन सब पर अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं जो स्वाभाविक है। ऐसे मामलों में कोई भी आयोग ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं दे सकता जो समाज के सभी तबकों को पसंद ही आए। बड़ी बात यह है कि परिसीमन आयोग ने अपना काम तर्कसंगत ढंग से पूरा कर दिया है और अब सभी संबद्ध पक्षों को अगले विधानसभा चुनावों पर ध्यान देना चाहिए। बदले हालात में उम्मीद की जा सकती है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश में साल के अंत में होने वाले चुनावों के साथ ही जम्मू कश्मीर में भी चुनाव हो जाएं ताकि वहां सामान्य लोकतांत्रिक हालात बहाल हों और उसे राज्य का दर्जा वापस मिलने की स्थितियां बनें।
