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सिंगुर मामले से राजनेता लें सीख

पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और टाटा मोटर्स के बीच विवाद का परिणाम यह है कि न्यायालय ने टाटा के पक्ष में 766 करोड़ रुपये भुगतान करने का आदेश राज्य सरकार को दिया है। सत्ता पाने के लिए तृणमूल कांग्रेस ने लगभग 17 वर्ष पूर्व टाटा मोटर्स का विरोध करके सिंगुर में नैनो कार बनाने की परियोजना को साकार नहीं होने दिया। तृणमूल कांग्रेस के आंदोलन के कारण पश्चिम बंगाल को दोहरा नुकसान उठाना पड़ा है। पहला, यदि टाटा मोटर्स पश्चिम बंगाल के सिंगुर में नैनो कार बनाने की परियोजना को शुरू करती तब स्थानीय नागरिकों को बड़े पैमाने पर रोजगार मिलता। कहा जा सकता है कि भारतीय व्यवसायियों का विरोध करने की संकीर्ण राजनीति ने पश्चिम बंगाल के नागरिकों का रोजगार छीना। दूसरा, एक राजनीतिक दल के आंदोलन के कारण आज जनता की गाढ़ी कमाई से भरे सरकारी खजाने से 766 करोड़ रुपये देने पड़ रहे हैं। अर्थात् तृणमूल कांग्रेस की राजनीतिक महत्वाकांक्षा की बलिवेदी पर पश्चिम बंगाल की जनता का दोहरा नुकसान हुआ है। हमारे राजनेताओं को समझना होगा कि उद्योगपतियों का बेजा विरोध करने से तात्कालिक तौर पर राजनीतिक लाभ मिल सकता है, लेकिन उसका दीर्घकालीन तक नुकसान जनता को उठाना पड़ता है। देश की जनता को भी चाहिए कि वह इस प्रकार की राजनीति का विरोध करे, जिसमें अंततोगत्वा उसे ही नुकसान उठाना है। आजकल अडानी समूह के विरोध में कांग्रेस और राहुल गांधी ने इसी प्रकार का अभियान चला रखा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी के लभगभ सभी भाषणों में अडानी का जिक्र आ ही जाता है। राहुल गांधी किसी और मुद्दे पर भी प्रेसवार्ता को संबोधित कर रहे होंगे, तब भी अडानी को कहीं न कहीं से बातचीत में घसीट ही लाते हैं। उनका तर्क तो यहाँ तक है कि घरों में बिजली का स्विच दबाने भर से लोगों का पैसा अडानी की जेब में पहुंचने लगता है। भारतीय उद्योगपतियों के प्रति इस प्रकार के नकारात्मक अभियान चलाने से भला किसे फायदा पहुँचेगा? स्वाभाविक ही है कि भारतीय उद्योगपति कमजोर होंगे तो विदेशी कंपनियों को उसका सीधा लाभ मिलगा। एक समय तक कांग्रेस और राहुल गांधी की ओर से अडानी के साथ-साथ अंबानी पर भी हमले किए जाते थे लेकिन देखने में आ रहा है कि कुछ समय से अंबानी पर हमले नहीं किए जा रहे हैं? इसका क्या कारण होगा, इसको लेकर अनेक प्रकार की चर्चाएं राजनीतिक गलियारों से लेकर सामाजिक क्षेत्र की चौपालों तक हैं। सिंगुर टाटा मोटर्स परियोजना के संबंध में न्यायालय का जो आदेश आया है, उससे हमारे राजनेताओं को सबक लेना चाहिए। अपनी राजनीति चमकाने के लिए देश के व्यवसायियों को निशाना बनाने का अभ्यास हमारे नेताओं को छोड़ना होगा। हमें भूलना नहीं चाहिए कि व्यवसायियों के कारण देश में आर्थिक गतिविधियां बढ़ती हैं और बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर भी निर्मित होते हैं। यदि हम अपने राजनीतिक हित साधने या अन्य कंपनियों को लाभ पहुँचाने के लिए भारतीय व्यवसायियों को हतोत्साहित करेंगे, तब उसका नुकसान राजनीतिक दल नहीं उठाते अपितु जनता को ही हर्जाना भुगतना पड़ता है। न्यायालय को चाहिए कि सरकार पर नहीं अपितु जिस राजनीतिक दल के कारण आर्थिक नुकसान पहुंचा, उस पर ही जुर्माना लगाना चाहिए। क्योंकि हम देखते हैं सिंगुर टाटा मोटर्स नैनो कार परियोजना के मामले में ममता बनर्जी को तो सत्ता की मलाई मिल गई लेकिन अगर किसी की हार हुई तो वह पश्चिम बंगाल की जनता है। उसे न उद्योग मिला, न रोजगार, प्रदेश की नकारात्मक छवि बनी और ममता बनर्जी आमार सोनार बांगला गाती रह गईं।

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