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पायलट की बगावत

पार्टी में चल रही उठापटक को कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व संभाल नहीं पा रहा है। कथित ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बाद भी कांग्रेस की स्थिति में कोई सुधार नहीं हो सका है। राजस्थान का प्रकरण देखकर यही लगता है कि कांग्रेस के नेतृत्व को अब भारत जोड़ो नहीं अपितु कांग्रेस जोड़ो यात्रा निकालनी चाहिए। कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ झंडा बुलंद करते हुए इस बार गंभीर संकेत दिए हैं। उन्होंने अपनी घोषणा के अनुसार पिछली सरकार के कार्यकाल में हुए कथित भ्रष्टाचार के मामलों में कदम नहीं उठाने पर गहलोत सरकार के खिलाफ एक दिन का अनशन किया। यह अनशन न केवल गहलोत सरकार के खिलाफ खुली बगावत है अपितु नेहरू–गांधी परिवार को भी चुनौती देता हुआ प्रतीत हुआ। अनशन स्थल पर लगाए गए होर्डिंग/पोस्टर में न तो कांग्रेस के प्रतीक चिन्ह थे और न ही सोनिया, राहुल और प्रियंका के चित्र थे। बैनर पर केवल महात्मा गांधीजी का चित्र था। इस घटनाक्रम को देखें तो संकेत मिलता है कि पायलट ने कांग्रेस से अलग होकर स्वतंत्र राह पकड़ने का संदेश दिया है। इस संदर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि कांग्रेस के प्रमुख नेताओं ने कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ सचिन पायलट के अनशन को खुले तौर पर पार्टी विरोधी गतिविधि के रूप में रेखांकित किया है। अब प्रश्न यह भी है कि भ्रष्टाचार के नाम पर हो–हल्ला करनेवाला कांग्रेस के नेतृत्व ने सचिन की पीठ पर हाथ क्यों नहीं रखा? क्यों कांग्रेस का नेतृत्व बार–बार गहलोत के साथ ही खड़ा नजर आ रहा है जबकि राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के दौरान अशोक गहलोत ने पार्टी लाइन का पालन नहीं किया था। उस समय उन्होंने एक तरह से सोनिया गांधी और राहुल गांधी की इच्छा के अनुरूप व्यवहार नहीं किया था। मगर राजस्थान में कांग्रेस विधायकों के बीच गहलोत की मजबूत पैठ के पुख्ता सबूत मिलते रहे हैं। संभवत: यही कारण है कि पार्टी नेतृत्व उन्हें छेड़ने के मूड में नहीं लग रहा है। जयराम रमेश और प्रदेश कांग्रेस प्रभारी रंधावा के अशोक गहलोत के समर्थन में आए बयान भी यही संकेत दे रहे हैं। दूसरी तरफ, पायलट का रुख भी बताता है कि वह अब इंतजार करते-करते थक गए हैं। देखने वाली बात यह होगी कि अपनी मांग पर जोर देने के क्रम में पायलट कितने कदम आगे बढ़ाते हैं। क्या वह पार्टी की सीमा भी पार कर लेंगे या पार्टी के अंदर से ही नेतृत्व पर दबाव बनाते रहेंगे। यह साफ होने में थोड़ा वक्त लगेगा, लेकिन इतना तय है कि समय रहते किसी तरह सुलझाई न जा सकी तो दोनों नेताओं की यह आपसी लड़ाई अगले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को काफी कमजोर करेगी। फिलहाल तो पायलट का एक दिन का अनशन बिना किसी परिणाम के समाप्त हो गया। पायलट की स्थिति भी कांग्रेस में कमजोर होती जा रही है। वह कई बार अपनी आवाज बुलंद तो करते हैं लेकिन उनकी बात पार्टी नेतृत्व सुनता नहीं है। उन्हें लगातार अनसुना किया जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों के साथ ही आम लोगों को भी यह समझना मुश्किल हो रहा है कि सचिन पायलट अपनी स्थिति को लगातार हास्यास्पद क्यों बनाते जा रहे हैं? हालांकि इस बार पायलट ने कांग्रेस नेतृत्व का सिरदर्द बढ़ा दिया है। कहां तो पार्टी अपना पूरा ध्यान कर्नाटक विधानसभा चुनावों पर केंद्रित करना चाहती थी और कहां राजस्थान में असमय ही यह बखेड़ा खड़ा हो गया। 

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