कांग्रेस की पहलकदमी पर विपक्षी दल यानी आईएनडीआईए गठबंधन मोदी सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव ला रहा है। सरकार को इस अविश्वास प्रस्ताव से कोई खतरा नहीं हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कह भी दिया है कि विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाना चाहता है तो लाने दीजिए, उसे इससे कुछ हासिल नहीं होगा। याद हो, मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में जब सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाया गया, तब ही प्रधानमंत्री मोदी ने कह दिया था कि कांग्रेस अब 2023 में अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी करे। वहीं, इस बार उन्होंने एक बार फिर तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने की सुस्पष्ट घोषणा कर दी है। विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव के विरुद्ध संसद के भीतर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार के पास जनता का दिया भरपूर विश्वास है। संसद के बाहर भी जिस प्रकार का वातावरण दिख रहा है, वह सरकार के पक्ष में ही है। हालांकि, यह बात विपक्षी दल भी भली प्रकार जानते हैं कि वे मोदी सरकार को हिला नहीं सकते हैं। उनका उद्देश्य है मणिपुर की घटना पर प्रधानमंत्री को घेरना। परंतु लगता नहीं कि विपक्षी दल अपने इस एजेंडे में सफल हो पाएंगे। पिछली बार भी कांग्रेस एवं उसके सहयोगी दलों ने यही प्रयत्न किया था। उस समय भी विपक्ष का दांव उल्टा पड़ गया। कांग्रेस प्रधानमंत्री मोदी को घेरने चली थी लेकिन बाद में आफत उसके ही गले पड़ गई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने वक्तव्य में कांग्रेस पर जिस प्रकार का हमला किया था, उसकी गूँज 2019 के लोकसभा चुनाव तक रही। ऐसा तो नहीं है कि कांग्रेस ने एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी को वैसा ही अवसर दे दिया है। देश को इस बात की उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी महिला अपराध को समग्रता से देखेंगे और मणिपुर ही नहीं अपितु राजस्थान, छत्तीसगढ़ और केरल के मामलों को भी उठाएंगे। महिलाओं की सुरक्षा के प्रति संवेदनशीलता के मायने तो यही हैं कि सबके लिए समान रूप से चिंता होनी चाहिए। बहरहाल, विपक्ष यदि नियमानुसार चर्चा के लिए जाता, तब भी संभवत: प्रधानमंत्री अपने वक्तव्य में मणिपुर की हिंसा का जिक्र कर देते। पता नहीं किसने विपक्षी दलों के कान में यह मंत्र फूंक दिया कि नियमानुसार प्रक्रिया से चर्चा होगी तब सरकार की ओर से केवल गृह मंत्री ही जवाब देंगे, क्योंकि यह उनके ही विभाग का मामला है। नि:संदेह यह गृह मंत्रालय की ही चिंता है लेकिन घटना पर इस प्रकार का वातावरण बन चुका है कि उसका दूर तक प्रभाव हो रहा है, ऐसे में यह स्वाभाविक ही था कि प्रधानमंत्री भी सदन में इस मुद्दे पर समग्रता से बोलते। यह भी संभव है कि नियमानुसार बहस होती तब सरकार केवल मणिपुर की घटना पर ही जवाब देती। यही उसे करना भी चाहिए था। गृह मंत्री अमित शाह ने इस संदर्भ में समूचे विपक्ष को खुली चिट्ठी भी लिखी, जिसमें उन्होंने कहा कि वे केवल मणिपुर पर ही चर्चा के लिए तैयार हैं लेकिन विपक्ष संसद तो चलने दे। यह भी मजेदार बात है कि सत्ता पक्ष चर्चा के लिए विपक्ष को बुला रहा है लेकिन विपक्ष किसी न किसी बहाने से दूर भाग रहा है। दरअसल, विपक्ष भी केवल एक जिद पकड़कर अड़ गया कि सबसे पहले प्रधानमंत्री इस विषय पर संसद में अपना भाषण दें। विपक्ष की इस एकमात्र जिद के पीछे उनकी कोई गहरी चालाकी सूझ पड़ती है। दोनों ही पक्षों के अपने-अपने आग्रहों के कारण लगातार संसद का मानसून सत्र धुल रहा है। यह ठीक बात नहीं है। देखना होगा कि अविश्वास प्रस्ताव की कार्यवाही के बाद संसद का गतिरोध समाप्त होता है या नहीं।
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