प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार को घेरने के लिए विपक्ष की ओर से लाया गया ‘अविश्वास प्रस्ताव’ औंधे मुंह गिर गया। यही उसकी नियति थी। जनता का विश्वास प्राप्त सरकार को अविश्वास प्रस्ताव के बहाने मणिपुर के मामले पर घेरने का दांव विपक्ष को उल्टा पड़ गया। सरकार तो अविश्वास के दायरे में नहीं आई किंतु विपक्ष अवश्य ही ‘अविश्वास’ के कठघरे में आ गया है। दोनों ही पक्षों की ओर से जो भाषण दिए गए, उनमें भी सत्ता पक्ष ने बाजी मार ली। विपक्ष की ओर से गौरव गोगोई का भाषण ही थोड़ा-बहुत प्रभावी रहा। उन्होंने तीखे प्रश्न किए। संयमित भाषा में मणिपुर के मुद्दे को उठाया। जिसका एक-एक बिंदु पर भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने उत्तर दिया। संसद में जिन राहुल गांधी के भाषण की प्रतिक्षा की जा रही थी, उन्होंने अपने भाषण में कुछ भी तार्किक बात नहीं की। अपितु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति अत्यंत नकारात्मक बातें कहकर अपनी ही पार्टी और विपक्ष को कठघरे में खड़ा कर दिया। ‘भारतमाता की हत्या’ का जुमला उछालकर उन्होंने इस विमर्श को अत्यंत नकारात्मक रूप दे दिया। देश का कोई भी नागरिक अपनी मातृभूमि के प्रति इस प्रकार की उपमा या विश्लेषण सहन नहीं कर सकता। संभव है कि समूचे विपक्ष को राहुल गांधी के इस नकारात्मक भाषण का खामियाजा भविष्य में उठाना पड़े। प्रारंभ में जब राहुल गांधी अपनी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के अनुभव सुना रहे थे, तब लगा कि वह अपनी कर्कशता को छोड़कर नये रूप में आए हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने भी उन्हें नसीहत दी है कि सार्वजनिक बयानबाजी में सावधानी बरतनी चाहिए। परंतु अपने भाषण के आखिरी क्षण में उन्होंने जाहिर कर दिया कि वह कहने को ‘मोहब्बत की दुकान’ चलाते हैं लेकिन वास्तव में आक्रामकता एवं नकारात्मकता ही उनके हथियार हैं। बहरहाल, पहले गृहमंत्री अमित शाह ने अपने लंबे उत्तर में बताया कि सरकार ने मणिपुर में शांति के प्रयास किस स्तर पर जाकर किए। यह याद रखना चाहिए कि स्वयं गृहमंत्री मणिपुर रहकर आए थे। इसके साथ ही उन्होंने समूचे देश के सामने यह सच प्रस्तुत किया कि कांग्रेस के शासनकाल में मणिपुर ने कितनी भयावह स्थितियां देखी हैं। 1993 में कुकी और नागाओं के बीच इसी प्रकार का जातीय संघर्ष हुआ, जिसमें 700 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई, तब न तो कांग्रेस के प्रधानमंत्री ने और न ही अन्य किसी मंत्री ने अपनी संवेदनाएं प्रकट कीं। गृहमंत्री ने अन्य उदाहरणों के माध्यम से भी विपक्ष की बनावटी संवेदनशीलता को उजागर करके रख दिया। वहीं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में पूरी संवेदनशीलता के साथ अपने विचारों को देश के सामने रखा। इसके साथ ही उन्होंने विपक्ष की नीयत पर भी प्रश्न उठाए। विपक्ष के नेताओं को प्रधानमंत्री मोदी से संवाद कला सीखनी चाहिए। भाषा की मर्यादा बनाए रखकर कैसे, अपनी बात रखी जाती है, यह सार्वजनिक जीवन में रहनेवाले सभी जनप्रतिनिधियों को सीखनी चाहिए। विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव से प्रधानमंत्री मोदी विचलित नहीं दिखे, अपितु उन्होंने इसे एक अवसर की तरह उपयोग किया। संसद से देश की जनता के सामने अपनी सरकार के संकल्प को रखने के लिए उन्होंने इस अवसर का उपयोग किया। यदि दृष्टि सकारात्मक हो, तब किसी भी प्रकार के अवसर को अपने हित में किया जा सकता है। बहरहाल, जिस बात की संभावना राजनीतिक पंडित व्यक्त कर रहे थे, वहीं हुआ भी कि विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव लाकर गलती की है। विपक्ष ने अपने हाथों प्रधानमंत्री मोदी और सरकार को एक सुअवसर दिया है। सरकार ने अवसर को भली प्रकार भुनाया है।
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