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‘स्व’ की ओर एक कदम और

यह शुभ संकेत हैं कि मोदी सरकार लगातार भारत के ‘स्व’ के आधार पर आगे बढ़ रही है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अंग्रेजों द्वारा बनाए गए भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य कानून को समाप्त करके भारतीय समाज जीवन के आधार पर तीन नये विधेयक सदन के सामने रखे हैं, जो आगे चलकर कानून का रूप लेंगे। लंबे समय से देश में यह विमर्श चल रहा था कि अंग्रेज जमाने के कानूनों को हम कब बदलेंगे? उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने प्रारंभ में भी ऐसे अनेक कानूनों को समाप्त किया है, जो आज कतई प्रासंगिक या उचित नहीं थे। बहरहाल, अंग्रेजी शासन व्यवस्था की ओर से बनाए गए ये कानून गुलामी के प्रतीक और परिचायक थे। अंग्रेजों ने इन कानूनों को बनाया ही इसलिए था ताकि भारतीयों का दमन किया जा सके और अंग्रेजी व्यवस्था की नींव मजबूत की जा सके। इन कानूनों का उद्देश्य भारत की जनता को न्याय देना कम, बल्कि उन्हें येन-केन-प्रकारेण दंडित करना अधिक था। अच्छा होता कि इन कानूनों में बदलाव बहुत पहले ही कर दिया जाता। परंतु स्वतंत्रता के समय जिनके हाथ में सत्ता के सूत्र आए, वे भारत के ‘स्व’ से बहुत दूर थे। उनकी सोचा बाह्य विचार से प्रभावित थी। विदेशी व्यवस्थाओं का अनुसरण करने को से श्रेयकर मानते थे। भले ही वे व्यवस्थाएं भारतीय मानस के अनुकूल न हो। ईश्वर का शुक्र है कि भारत को वर्तमान समय में ऐसा नेतृत्व मिला है, जो भारत को केंद्र में रखकर नीतियां बनाता है। इसलिए कहना होगा कि देर से ही सही, मोदी सरकार ने अंग्रेजों के बनाए कानूनों में परिवर्तन करने का जो फैसला लिया, वह समय की मांग के अनुरूप है। हालांकि ये तीनों विधेयक व्यापक चर्चा के बाद ही तैयार किए गए हैं, लेकिन उन पर और नीर-क्षीर ढंग से विचार-विमर्श हो सके, इसलिए उन्हें गृह मामलों से संबंधित संसद की स्थायी समिति को भेजा जा रहा है। इसके अतिरिक्त यह अपेक्षा भी की गई है कि पुराने तीन कानूनों की जगह जो नए तीन विधेयक-भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम लाए गए हैं, उनके मसौदे पर विधि आयोग के साथ-साथ बार काउंसिल और अन्य न्यायविद भी व्यापक विचार-विमर्श करेंगे। कानूनों में परिवर्तन पर सरकार के पक्ष से पता चलता है कि अंग्रेजों के बनाए कानूनों में आमूलचूल परिवर्तन किया जा रहा है। इन विधेयकों के कानून बन जाने के बाद जहां एक ओर भगोड़ों को भी सजा सुनाई जा सकेगी, वहीं दूसरी ओर संगठित अपराधों पर भी लगाम लगाई जा सकेगी। इसके अतिरिक्त महिलाओं और बच्चियों के साथ होने वाले अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए भी कई महत्वपूर्ण प्रविधान किए जा रहे हैं। राजद्रोह कानून को समाप्त करने का बड़ा निर्णय सरकार ने लिए है, जो सबको चकित भी करता हैं। क्योंकि कोई भी यह अपेक्षा भारतीय जनता पार्टी की सरकार से नहीं कर रहा होगा कि वह राजद्रोह जैसे कठोर कानून को समाप्त करेगी। दरअसल, यह कानून भी अंग्रेजों के भारत की प्रतिष्ठा के लिए नहीं, अपितु भारतीय नागरिकों के दमन के लिए बनाया था। जो आज की परिस्थितियों के अनुरूप नहीं था। हालांकि, देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता पर हमला करनेवाले लोग यह न सोचें कि इस कानून के समाप्त होने से भारत विरोध की खुली छूट उन्हें मिल जायेगी। मोदी सरकार देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता को चुनौती देने वाले अराजक तत्वों पर लगाम लगाने के लिए नए प्रविधान कर रही है। यह भी उल्लेखनीय है कि जब ये तीनों विधेयक कानून का रूप लेंगे तो पुलिस के साथ-साथ वकील और न्यायाधीश भी जवाबदेह बनेंगे। पुलिस को अधिक जवाबदेह होना होगा। नागरिकों पर पुलिस का डंडा अनावश्यक रूप से नहीं चलेगा। यह भी आशा की जाती है कि अब न्यायालयों में प्रकरण के लंबित रहने की प्रवृत्ति पर भी लगाम लगेगी। कुलमिलाकर कहना होगा कि सरकार भारत के नागरिकों को केंद्र में रखकर कानून व्यवस्था को आकार दे रही है, जो स्वागत योग्य निर्णय है।

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