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न्याय यात्रा बनाम कांग्रेस में टूट

कांग्रेस के साथ बड़ी विडम्बना है कि हर संभव प्रयास करने के बाद भी पार्टी मजबूत होने की बजाय कमजोर होती जा रही है। उसका एक बड़ा कारण है कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व जनाकांक्षाओं से कटा हुआ है। वह जनता के साथ जुड़ना तो चाह रहा है लेकिन जनता के मन को समझने में भूल कर रहा है। भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गांधी की अगुवाई में न्याय यात्रा निकाली जा रही है। मणिपुर से शुरू हुई यह यात्रा मुंबई में पूरी होगी। न्याय यात्रा के माध्यम से कांग्रेस अपनी खोयी हुई राजनीतिक जमीन कितना प्राप्त करेगी, यह तो आने वाले लोकसभा चुनाव में पता चल ही जाएगा लेकिन फिलहाल तो कांग्रेस टूट से कमजोर होती जा रही है। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भी कांग्रेस को कई प्रमुख बड़े नेता छोड़कर गए। न्याय यात्रा के प्रारंभ होते ही मिलिंद देवड़ा जैसे युवा एवं प्रभावशाली राजनेता ने कांग्रेस का हाथ छोड़ दिया। ज्योतिरादित्य सिंधिया से लेकर मिलिंद देवड़ा तक एक-एक करके कांग्रेस के युवा नेता अन्य राजनीतिक दलों का हिस्सा बन चुके हैं। एक तरह से कांग्रेस की द्वितीय पंक्ति खत्म होती जा रही है। एक ओर भाजपा है, जो अपनी आनेवाली पीढ़ी को आगे बढ़ा रही है वहीं दूसरी ओर कांग्रेस है, जिसकी दूसरी पीढ़ी उसका साथ छोड़ रही है। राजनीतिक अंदरखानों में यही चर्चा है कि राहुल गांधी को स्थापित करने के कारण कांग्रेस के युवा नेतृत्व की अनदेखी हो रही थी। इसके साथ ही कांग्रेस ने जिस प्रकार की नकारात्मक राजनीति की राह पकड़ी है, उससे से भी सकारात्मक सोच रखनेवाले युवा नेता असहज महसूस करने लगे थे। प्रत्येक अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लेकर जिस प्रकार की तीखी बयानबाजी की जाती है, उससे किसी भी सकारात्मक सोच के नेताओं का असहज होना स्वाभाविक ही है। उनके सामने यह भी दुविधा खड़ी हो गई कि यदि वे प्रधानमंत्री मोदी और आरएसएस के प्रति नकारात्मक बयानबाजी न करें, तो उनकी अनदेखी होगी और वे पार्टी में आगे नहीं बढ़ सकते। राजस्थान में सचिन पायलट की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है। एक तरह से कहा जा सकता है कि राजस्थान में कांग्रेस ने सचिन पायलट के साथ अन्याय किया। यह अन्याय भी राजस्थान चुनाव में पराजय का एक प्रमुख कारण रहा है। वर्तमान समय में भगवान श्रीराम के प्राण प्रतिष्ठा उत्सव को लेकर जिस प्रकार का वातावरण है, उसमें भी कांग्रेस ने जनता के मनोभावों के विपरीत राह पकड़ी है। कह सकते हैं कि जब देश अयोध्या की ओर जा रहा है, तब कांग्रेस मणिपुर की ओर भाग रही है। ‘राम का निमंत्रण’ ठुकराने के बाद कांग्रेस के भीतर से ही जिस प्रकार की आवाजें आईं, उनके शोर ने शीर्ष नेतृत्व के माथे पर बल तो डाल दिया है। यही कारण है कि अब कांग्रेस के प्रमुख नेता यह कहने लगे हैं कि जो भी कांग्रेसी नेता अयोध्या जाना चाहता है, वह जाने के लिए स्वतंत्र है। दरअसल, शीर्ष नेतृत्व द्वारा राम मंदिर से दूरी बनाने का निर्णय लिए जाने के बाद से कई स्थानों पर नेताओं एवं कार्यकर्ताओं ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता छोड़ दी। बहरहाल, राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा को शुरुआत में ही युवा एवं प्रभावशाली नेता मिलिंद देवड़ा ने जोर का झटका दिया है। पार्टी छोड़ते हुए मिलिंद देवड़ा ने जिस प्रकार के भावुक होकर अपनी व्यथा कही है, उसे ही कांग्रेस सुन ले तो उसकी आगे की राह आसान हो जाए। कांग्रेस को चाहिए कि एक न्याय यात्रा पार्टी के भीतर निकाली जाए, ताकि युवा नेताओं को न्याय मिल सके। अगर कांग्रेस इसी तरह अड़ियर रुख बनाए रखेगी तो इस बात की पूरी संभावना है कि आनेवाले समय में कुछ और प्रभावशाली राजनेता उसका हाथ छोड़कर चले जाएं।

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