बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जनसंख्या नियंत्रण के संदर्भ में जिस प्रकार का भाषण विधानसभा और विधान परिषद में दिया, वह घोर निंदनीय है। जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश क्यों लग रहा है, इस पर उन्होंने जिस प्रकार के तर्क रखे, वे बहुत ही ओछे और शर्मनाक हैं। उनकी भाषा एवं शारीरिक हाव-भाव किसी अनुभवी राजनेता और प्रबुद्ध व्यक्ति के नहीं थे, अपितु कहना होगा कि यह सब सड़कछाप शैली में था। दुर्भाग्य की बात है कि वहाँ बैठे अन्य पुरुष मंत्री/विधायक भी ओछी भाषा-शैली पर हँस रहे थे। महिला विधायकों ने तो शर्म के मारे मुँह छिपा लिया था। जरा सोचिए, नीतीश कुमार ने किस प्रकार का वर्णन किया होगा। लोकतंत्र के मंदिर में उन्होंने जो कुछ कहा, उसे लिखा भी नहीं जा सकता। हद है कि उन्होंने पहले विधानसभा में घटिया भाषण दिया और उसके बाद वही सब बातें उन्होंने विधान परिषद में भी दोहरायीं। सोचिए कि इस बीच उनके किसी भी नेता ने उन्हें आईना नहीं दिखाया कि आप यह सब बातें कहते हुए बेहूदे दिख रहे हो। बल्कि उनके सहयोगी नेता नीतीश कुमार की ‘सेक्सिस्ट’ और ‘अश्लील’ टिप्पणियों को ‘सेक्स एजुकेशन’ बताते नजर आने लगे। बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने तो यहाँ तक कह दिया कि उनका बयान यौन शिक्षा के बारे में था, जो विद्यालयों में भी पढ़ाया जाता है। वहीं, जनता की ओर से सोशल मीडिया में तत्काल ही इस पर आक्रोश व्यक्त किया गया। मुख्यमंत्री के भाषण के लिए कहा गया कि उन्होंने महिलाओं और संपूर्ण बिहार का शर्मसार किया है। राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी इस मामले पर संज्ञान लिया है। आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा, “उन्होंने विधानसभा में जिस तरह का बयान दिया है वह सी ग्रेड फिल्म का डायलॉग लग रहा था। यह बयान उन्होंने विधानसभा में सभी महिलाओं और पुरुषों के सामने दिया और सबसे बुरा ये था कि वहां पर बैठे पुरुष इस पर हंस रहे थे”। आयोग ने विधानसभा स्पीकर को इस मामले में कार्रवाई करने के लिए पत्र लिखा है। इधर, आम लोगों के साथ ही विपक्षी दलों की ओर से नीतीश कुमार से त्याग-पत्र की माँग की जा रही है। उनके कहा गया कि वे महिलाओं से क्षमा माँगें। परंतु उस समय तो नीतीश कुमार किसी और ही भाव में रहे होंगे लेकिन बाद में जब उन्हें समझ आया या फिर उन्हें समझाया गया, तब दूसरे दिन सुबह उन्होंने अपने भाषण के लिए माफी माँगी। अपने वक्तव्य के लिए स्वयं की निंदा की। देखना होगा कि उनकी माफी स्वीकारी जाती है या नहीं। फिलहाल तो नीतीश कुमार के साथ ऐसा विवाद चिपक गया है, जो वर्षों तक भारतीय राजनीति में याद रखा जाएगा। नीतीश कुमार को अब तक दल-बदल के लिए जाना जाता था लेकिन अब उनकी पहचान यह विवाद बन सकता है। इस प्रकरण के बाद विपक्षी गठबंधन ‘आईएनडीआईए’ में उनकी स्थिति और कमजोर हो सकती है। पहले ही कांग्रेस ने उन्हें दरकिनार करना शुरू कर दिया है। जबकि विपक्षी गठबंधन को आकार देने का बुनियादी कार्य नीतीश कुमार ने ही किया है। परंतु यह राजनीति है, इसमें अवसरों एवं मुद्दों की तलाश रहती है। नीतीश कुमार को पीछे धकेलने के लिए अब कांग्रेस के पास एक ठोस मुद्दा मिल गया है। बहरहाल, हमारे नेताओं को यह समझना होगा कि जनता उनसे गंभीर संवाद की अपेक्षा करती है। नेताओं को हल्की और ओछी भाषा-शैली के प्रयोग से बचना चाहिए। उम्मीद है कि नीतीश कुमार के इस प्रकरण से उन्होंने स्वयं ने तो सीख ली ही होगी, अन्य राजनेताओं को भी सबक मिला होगा।
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